उत्तराखंड में हर माह औसतन पांच व्यक्तियों की जान ले रहे वन्यजीव, नौ माह में 43 की मौत; 148 घायल
Human Wildlife Conflict उत्तराखंड में नवन्यजीव हर माह औसतन पांच व्यक्तियों की जान ले रहे हैं। बीते नौ माह में यहां वन्यजीवों के हमलों में 43 व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। वहीं 148 लोग घायल हुए हैं।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Wed, 27 Oct 2021 05:00 PM (IST)
केदार दत्त, देहरादून। नौ माह में 43 व्यक्तियों की मौत और 148 घायल। इसी अवधि में छह बाघ, 65 गुलदार और 11 हाथियों की गई जान। यह है उत्तराखंड में इस वर्ष सितंबर तक मानव-वन्यजीव संघर्ष का लेखा-जोखा। आंकड़े तस्दीक कर रहे हैं कि राज्य में गुलदार, हाथी व भालू के हमले तो बढ़े हैं ही, सर्पदंश से भी निरंतर जानें जा रही हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि मानव और वन्यजीवों के मध्य छिड़ी जंग किस कदर चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। तस्वीर से यह भी साफ है कि संघर्ष की रोकथाम के लिए उठाए गए कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं। इसे देखते हुए विभाग से लेकर शासन स्तर तक मंथन शुरू हो गया है, ताकि नई रणनीति के तहत संघर्ष थामने के उपाय किए जा सकें।
यह ठीक है कि उत्तराखंड में फल-फूल रहा वन्यजीवों का कुनबा उसे विशिष्ट पहचान दिलाता है। अलबत्ता, तस्वीर का इससे जुदा पहलू भी है और वह है मानव और वन्यजीवों के बीच गहराती जंग। यह थमने की बजाए और तेज होती जा रही है। आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2020 में वन्यजीवों के हमलों में 58 व्यक्तियों की जान गई थी, जबकि 251 घायल हुए। इस वर्ष सितंबर तक वन्यजीवों ने प्रति माह औसतन पांच व्यक्तियों को मार डाला, जबकि 16 से ज्यादा को घायल किया।
वन्यजीवों में भी गुलदारों के हमलों में सर्वाधिक जान जा रही है। इस साल अब तक गुलदारों ने 18 व्यक्तियों को मारा, जबकि गत वर्ष यह आंकड़ा 29 था। इसके अलावा हाथी, भालू, जंगली सूअर जैसे जानवरों के हमले भी निरंतर बढ़ रहे हैं। सूरतेहाल, चिंता बढ़ने लगी है। सभी की जुबां पर यही बात है कि आखिर यह संघर्ष कब थमेगा।
कुमाऊं में बढ़े गुलदार के हमले
इस वर्ष अब तक के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो कुमाऊं क्षेत्र के अल्मोड़ा, बागेश्वर, चम्पावत, पिथौरागढ़, हल्द्वानी, तराई पूर्वी, पश्चिमी व केंद्रीय वन प्रभागों के अंतर्गत गुलदारों के हमले बढ़े हैं। यहां गुलदारों ने 11 व्यक्तियों की जान ली। गढ़वाल क्षेत्र को लें तो लैंसडौन, हरिद्वार, नरेंद्रनगर, टिहरी, उत्तरकाशी, बदरीनाथ, गढ़वाल व रुद्रप्रयाग वन प्रभागों के क्षेत्रांतर्गत गुलदारों ने सात जानें लीं।
सर्पदंश से भी अब तक 14 मौत मानव-वन्यजीव संघर्ष को आपदा की श्रेणी में शामिल किया गया है। इसके तहत सर्पदंश से मृत्यु अथवा पीडि़त को भी मुआवजा देने का प्रविधान है। वन विभाग के मुताबिक चूंकि सांप भी वन्यजीव है, इसीलिए उसके काटने से मृत्यु अथवा पीड़ित होने पर मानव-वन्यजीव संघर्ष नियमावली के अनुसार मुआवजा राशि दी जाती है। इसीलिए इसे मानव-वन्यजीव संघर्ष की श्रेणी में रखा गया है। राज्य में इस वर्ष अब तक सर्पदंश से 14 व्यक्तियों की मृत्यु हुई, जबकि पिछले साल भी इतने ही व्यक्तियों की जान गई थी।
यह भी पढ़ें- बरसात में इनका डांस हाथियों को करता है काफी परेशान, बचने को मिट्टी में भी लोटते हैं गजराज मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग ने बताया कि मानव-वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम के लिए नए सिरे से रणनीति पर मंथन किया जा रहा है। इस कड़ी में गुलदार, हाथी, भालू जैसे जानवरों के व्यवहार का अध्ययन कराया जा रहा है, ताकि इसके आधार पर आगे की रणनीति बनाई जा सके। साथ ही प्रभावित क्षेत्र भी चिह्नित किए गए हैं और वहां विशेष सतर्कता पर जोर दिया जा रहा है। स्थानीय निवासियों से भी सतर्क व सजग रहने की अपील की जा रही है।
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