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उत्‍तराखंड के किसानों के लिए खुशखबरी, अब हर हाल में अच्छी उपज देंगे गेहूं के बीज

Sustainable Agriculture आइसीएआर-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान ने उत्तराखंड में सिंचित और वर्षा आधारित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त उच्च गुणवत्ता वाले गेहूं के आधार बीजों का वितरण किया। इस पहल का उद्देश्य किसानों को उन्नत किस्मों के बीज उपलब्ध कराना है जिससे वे अधिक उपज प्राप्त कर सकें और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा दे सकें। मैदानी क्षेत्रों में 35-45 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

By Suman semwal Edited By: Nirmala Bohra Updated: Thu, 31 Oct 2024 10:36 AM (IST)
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Sustainable Agriculture: उन्नत बीजों पर आधारित खेती को बढ़ावा देना आवश्यक. Concept Photo
जागरण संवाददाता, देहरादून। Sustainable Agriculture: भारत जैसी देश में फसल की उपज बहुत मायने रखती है। लिहाजा, इसके लिए उन्नत बीजों पर आधारित खेती को बढ़ावा देना आवश्यक है। उत्तराखंड के मामले में बीज की गुणवत्ता और भी मायने रखती है। क्योंकि, यहां पहाड़ी भूभाग वाले क्षेत्रों में वर्षा आधारित ही अधिक खेती की जाती है।

इस बात को ध्यान में रखते हुए आइसीएआर-भारतीय मृदा और जल संरक्षण संस्थान उत्तराखंड में सिंचित और वर्षा-आधारित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त उच्च गुणवत्ता वाले गेहूं के आधार बीजों के वितरण की सुविधा प्रदान की है। यह पहल एक कार्यक्रम के रूप में आइसीएआर की फ़ार्मर्स फर्स्ट परियोजना के तहत देहरादून के रायपुर ब्लाक में शुरू की।

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35-45 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त किया जा सकता है उत्पादन

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रमुख वैज्ञानिक और परियोजना प्रभारी (पीआइ) डॉ. बांके बिहारी ने किसानों को गेहूं की किस्मों की आनुवंशिक क्षमता, उच्च उपज, और क्षेत्रीय अनुकूलता के बारे में जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि उन्नत किस्मों से मैदानी क्षेत्रों में 60-70 कुंतल प्रति हेक्टेयर और देहरादून जैसे भिन्नता वाले क्षेत्र में 35-45 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि असमान क्षेत्रों में मृदा की गुणवत्ता और खेती की चुनौतियां उपज को प्रभावित करती हैं। फिर भी यह उपज परंपरागत या स्थानीय किस्मों की 15-18 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज से काफी अधिक है।

टिकाऊ कृषि के लिए बीजों की गुणवत्ता अहम

प्रमुख वैज्ञानिक और प्रमुख (पीएमई केएम इकाई) ने टिकाऊ कृषि के लिए गुणवत्तापूर्ण इनपुट और बीजों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि धनतेरस/दीपावली, जो समृद्धि का प्रतीक है, के अवसर पर बीजों का वितरण किसानों के लिए सौभाग्य लाएगा और किसान समाज की समृद्धि में योगदान देंगे।

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उन्होंने बताया कि इस पहल के माध्यम से किसानों के खेतों को बीज उत्पादन केंद्र और प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। जिससे समुदाय और संस्थान दोनों को लाभ मिलेगा। किसानों से आग्रह किया गया कि वे अधिकतम उत्पादन के लिए समय पर बीजों की बुवाई करें।

बीज वितरण और बाय-बैक व्यवस्था, फार्मिंग समुदायों के साथ समझौता ज्ञापन

बीज वितरण उत्तराखंड सीड्स एंड तराई डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड देहरादून के साथ बाय-बैक व्यवस्था के तहत किया गया। प्रत्येक किसान को 20-40 किलोग्राम बीज दिए गए और कुल 21 क्विंटल बीज 90 किसानों में वितरित किए गए। इस माडल के तहत किसानों को प्राप्त बीजों की दोगुनी मात्रा बाजार दर पर वापस करनी होगी। जिसे यूकेएस और टीडीसी से प्रमाणित बीज के रूप में संसाधित किया जाएगा। जबकि शेष बीजों का उपयोग किसान अपनी आवश्यकता के अनुसार कर सकते हैं।

पहली बार पेश की गई किस्म

गेहूं की नई किस्में क्षेत्र में पहली बार पेश की गई हैं और यह 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक की बेहतर उपज प्रदान करती हैं। इनमें 15 से 25 नवंबर तक की विस्तारित बुवाई अवधि की किस्म भी शामिल हैं, जिससे सिंचाई की आवश्यकता में कमी आएगी और समुदाय में पानी के संसाधनों पर प्रतिस्पर्धा कम होगी। विशेषकर पीबीडब्ल्यू 343 सिंचित और वीएल 967 बीज वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए वितरित किए गए।

बेहतर रहे किसानों के पिछले अनुभव

पिछले तीन वर्षों में इसी परियोजना के तहत चार अन्य गेहूं की किस्में डीबीडब्ल्यू 222, डीबीडब्ल्यू 303, डीबीडब्ल्यू 187, और वीएल 953 किसानों को दी गई थीं। इन किस्मों को किसानों ने सराहा और उन्होंने उत्कृष्ट उपज प्राप्त की।

ये बीज स्व-प्रचारित हो गए हैं और किसानों ने उन्हें लगातार पुन: बुवाई में सफलतापूर्वक उपयोग किया है। किसानों ने कहा कि वह इन बीजों का पुन: उपयोग करके टिकाऊ कृषि को बढ़ावा दे रहे हैं और उत्पादकता में सुधार कर रहे हैं। कार्यक्रम के दौरान कृषक उत्पादक संगठन कोटिमयचक से कुशल पाल सिंह और संस्थान के अन्य परियोजना कर्मी भी उपस्थित रहे।

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