Igas 2022 : आज उत्तराखंड में 11 दिन बाद मनेगी दिवाली, खेलेंगे भैलो-लगेगा मंडाण, पीछे है गढ़वाली वीर की कहानी
Igas 2022 कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को लोकपर्व इगास मनाया जाता है। आज उत्तराखंड में हर ओर पहाड़ की लोकसंस्कृति की छटा बिखरेगी। इगास में आतिशबाजी नहीं की जाती बल्कि रात को पारंपरिक भैलो खेला जाता है।
By Jagran NewsEdited By: Nirmala BohraUpdated: Fri, 04 Nov 2022 09:00 AM (IST)
टीम जागरण, देहरादून : Igas 2022 : आज उत्तराखंड में हर ओर पहाड़ की लोकसंस्कृति की छटा बिखरेगी। जगह-जगह मंडाण लगाए जाएंगे। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को लोकपर्व इगास मनाया जाता है।
आज शुक्रवार को 11 दिन बाद दिवाली बनाई जाएगी। इसके पीछे दो मान्यताएं प्रचलित हैं। लोकपर्व इगास बग्वाल में भैलो व पारंपरिक नृत्य के साथ पहाड़ी व्यंजनों का स्वाद चखने को मिलेगा। उत्तराखंड में कई जगह इसे लेकर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
रात को खेला जाता पारंपरिक भैलो
- इगास में आतिशबाजी नहीं की जाती, बल्कि रात को पारंपरिक भैलो खेला जाता है।
- वहीं रात को भैलो खेलने के लिए पर्वतीय क्षेत्रों से चीड़ के छील (लकड़ी) और पारंपरिक वाद्य यंत्र मंगाए गए हैं।
- इस लोक पर्व पर उत्तराखंड सरकार द्वारा लगातार दूसरी बार राजकीय अवकाश घोषित किया गया है।
- राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को इगास बग्वाल पर्व की शुभकामनाएं दी हैं।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने दी शुभकामनाएं
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने अपने संदेश में कहा कि यह पर्व प्रदेशवासियों के जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली लाए। यह त्यौहार उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रतीक है। यह पूर्वजों की धरोहर व पर्वतीय संस्कृति की विरासत है। राज्यपाल ने कहा कि हमें अपने लोकपर्व व संस्कृति को संरक्षित रखने की आवश्यकता है।यह भी पढ़ें : इगास पर उत्तराखंड में होती है बैलों की पूजा, लेकिन पहाड़ों पर पूजा के लिए कई गांवों में बैल बचे ही नहींमुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने संदेश में कहा कि हमारे लोकपर्व हमारी समृद्ध संस्कृति की पहचान हैं। यहां इगास व बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा है। सभी इस त्यौहार को मना सकें, इसलिए सरकार ने इस पर्व पर अवकाश घोषित किया है। उन्होंने कहा कि केवल अवकाश देने से लोक संस्कृति समृद्ध नहीं होगी, बल्कि ऐसे पर्वों को जनसहभागिता व पूरे उत्साह के साथ मना कर जड़ें मजबूत करनी होंगी। उन्होंने अपील की कि सभी अपने गांव पहुंचें और इस लोकपर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाएं।
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने कहा कि यह पर्व सभी के जीवन में नया प्रकाश लेकर आए और प्रदेश सदा सुख, समृद्धि और सौभाग्य से आलोकित रहे। उन्होंने सभी से इस पर्व को मनाने का आह्वान करते हुए कहा कि संस्कृति और परंपराओं को बचाने की जिम्मेदारी नई पीढ़ी की है। धर्मस्व, संस्कृति व पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने प्रदेशवासियों को अपनी संस्कृति से जुडऩे के साथ ही इस पर्व को उत्साह व उमंग के साथ मनाने का अनुरोध किया है।
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- उत्तराखंड विद्वत सभा के प्रवक्ता आचार्य बिजेंद्र प्रसाद ममगाईं के अनुसार, पहाड़ में एकादशी को इगास के नाम से जानते हैं।
- 11 दिन बाद दिवाली मनाने को लेकर दो मान्यताएं प्रचलित हैं।
- पहली मान्यता के अनुसार, उत्तराखंड के सुदूरवर्ती इलाकों में भगवान राम के अयोध्या लौटने की सूचना 11 दिन बाद मिली थी। इसलिए यहां 11 दिन बाद दिवाली मनाई जाती है।
- दूसरी मान्यता के मुताबिक गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट, तिब्बत का युद्ध जीता था और दिवाली के 11वें दिन बाद अपने घर पहुंचे थे।
- युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में यह पर्व 11 दिन बाद मनाया गया।
मवेशियों की होती है पूजा
- इगाश के दिन मवेशियों के लिए भात, झंगोरा का पींडू (पौष्टिक आहार) तैयार किया जाता है।
- उन्हें तिलक लगाकर फूलों की माला पहनाई जाती है।
- उनको चराने वाले या गाय-बैलों की सेवा करने वाले बच्चे को पुरस्कार दिया जाता है।
- इस दिन घरों में पारंपरिक पकवान पूड़ी, स्वांले, उड़द की दाल की पकौड़ी बनाई जाती हैं।
- रात को पूजन के बाद सभी भैलो खेलते हैं।
क्या होता है भैलो
- इगास के दिन भैलो खेलने की विशेष परंपरा है।
- यह चीड़ की लीसायुक्त लकड़ी से बनाया जाता है।
- यह लकड़ी बहुत ज्वलनशील होती है।
- इसकी लकड़ियों को छिल्ला या छिलके कहा जाता है।
- जहां चीड़ के जंगल न हों, वहां लोग देवदार, भीमल अथवा हींसर की लकड़ी आदि से भी भैलो बनाते हैं।
- इन लकड़ियों के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ रस्सी अथवा जंगली बेलों से बांधा जाता है।
- फिर इसे जलाकर घुमाते हैं। इसे ही भैलो खेलना कहा जाता है।