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68 वर्षों में सिर्फ पांच फीसद महिलाओं को ही मिला अवसर, पढ़िए पूरी खबर

साल 1951 से लेकर उत्तराखंड की धरती पर यानी अविभाजित उत्तर प्रदेश को मिलाकर 16 बार लोकसभा चुनाव लड़े जा चुके हैं पर सिर्फ पांच फीसद महिलाओं को ही चुनाव लड़ने का अवसर दिया गया।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Wed, 27 Mar 2019 08:26 PM (IST)
68 वर्षों में सिर्फ पांच फीसद महिलाओं को ही मिला अवसर, पढ़िए पूरी खबर
देहरादून, सुमन सेमवाल। चिपको जैसा अंतरराष्ट्रीय पहचान वाला आंदोलन हो, शराबबंदी आंदोलन हो या उत्तराखंड राज्य निर्माण का आंदोलन, सभी में महिलाओं की भूमिका सबसे अहम रही। हालांकि, जब भी बात राजनीति की आती है तो महिलाओं की भागीदारी हमेशा से हाशिये पर रही है। यही कारण है कि वर्ष 1951 से लेकर उत्तराखंड की धरती पर (अविभाजित उत्तर प्रदेश को मिलाकर) 16 बार लोकसभा चुनाव लड़े जा चुके हैं, मगर सिर्फ पांच फीसद महिलाओं को ही चुनाव लड़ने का अवसर दिया गया। इसमें भी अब तक के इतिहास में सिर्फ तीन महिला प्रत्याशियों को ही प्रतिनिधित्व करने क अवसर मिल पाया। 

उत्तराखंड की धरती पर 13 बार अविभाजित उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव हुए, जबकि राज्य गठन के बाद अब तक तीन चुनाव लड़े जा चुके हैं। तब से लेकर अब तक पांच ही सीटें उत्तराखंड क्षेत्र में रही हैं। इस तरह अब तक पांच सीटों के हिसाब से 80 चुनाव हो चुके हैं। इनमें 810 प्रत्याशी मैदान में रहे, जिनमें से 767 पुरुष प्रत्याशी थे और महिला प्रत्याशियों की संख्या महज 43 रही। इसमें भी अब तक सिर्फ तीन महिला प्रत्याशियों को ही जीत हासिल हो सकी। वर्ष 1951 में महारानी कमलेंदु मैती शाह निर्दलीय चुनी गईं और इसके बाद महिला प्रतिनिधित्व के लिए राज्य को करीब 47 साल इंतजार करना पड़ा। 

वर्ष 1998 में बड़े सियासी घराने से ताल्लुक रखने वाली इला पंत को कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल हुई। हालांकि, उनका कार्यकाल सिर्फ एक साल का रहा, क्योंकि वर्ष 1999 में दोबारा चुनाव कराने की नौबत आ पड़ी थी। इसके बाद वर्ष 2014 के चुनाव में टिहरी लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी माला राज्य लक्ष्मी शाह को जीत हासिल हुई। 

मायावती ने हरिद्वार से लड़े दो चुनाव 

उत्तराखंड की धरती से चुनाव लड़ने वाले राष्ट्रीय स्तर के जीवित नेताओं की बात करें तो उनमें सिर्फ बसपा सुप्रीमो मायावती ही हैं। उन्होंने वर्ष 1989 और 1991 में हरिद्वार सीट से चुनाव लड़ा। पहली दफा वह तीसरे स्थान पर रहीं और उन्हें 22.63 फीसद वोट मिले थे। इसके बाद वाले चुनाव में वह चौथे स्थान पर खिसक गई थीं और उन्हें सिर्फ 4.28 फीसद ही वोट मिल पाए थे। 

गति फाउंडेशन ने किया अध्ययन 

प्रदेश में महिला प्रतिनिधित्व पर यह अध्ययन गति फाउंडेशन ने किया है। 'डेमोक्रेसी एंड सिटीजन इंगेजमेंट' नामक अभियान के तहत किए गए अध्ययन में गति फाउंडेशन ने ऐसे ही तथ्यों को सामने लाकर एक विमर्श शुरू करने की पहल की है। फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल का कहना है कि राजनीतिक दल बड़ी आसानी से यह कह सकते हैं कि जिताऊ उम्मीदवार को ही मैदान में उतारा जाता है, मगर क्या इस बात की जिम्मेदारी उन पर नहीं कि महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाकर उन्हें तैयार किया जा सके। 

प्रदेश की महिलाओं में अपार क्षमताएं हैं और इतिहास के तमाम जन-आंदोलनों में उन्होंने इस बात को भी साबित किया है। लिहाजा, अब तक के चुनाव के इन आंकड़ों को इसलिए जारी किया गया है कि राजनीतिक दल महिला प्रतिनिधित्व को लेकर गंभीरता के साथ विचार कर सकें। 

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