रिफ्लेक्टिव कालर पहनाकर बेजुबानों की जान बचा रही युवाओं की यह टीम, घायलों का भी करा रही उपचार
युवाओं की इस टीम में मुग्धा खत्री इरम नाज अतुल सिंह बिष्ट स्वामी भट्ट अनूप और मयंक शामिल हैं। जिसका नेतृत्व मुग्धा करती हैं। टीम बीते वर्ष लाकडाउन में आवारा पशुओं को खाना खिलाने से लेकर उनके इलाज करवाने में मदद कर रही है।
By Sumit KumarEdited By: Updated: Sun, 29 Aug 2021 06:41 PM (IST)
जागरण संवाददाता, देहरादून: लोग एक दूसरे की मदद के लिए भले ही हाथ आगे बढ़ा देते हैं, लेकिन लावारिस बेजुबानों की तरफ कम ही लोग का ध्यान जाता है। देहरादून में छह युवाओं की टीम बेजुबानों का सहारा बनी है। रात को लावारिस पशुओं को सड़क दुर्घटना से बचाने के लिए टीम ने एक अनोखा अभियान चलाया है। इसके तहत पशुओं को रिफ्लेक्टिव कालर पहनाए जा रहे हैं। टीम अभी तक 150 से ज्यादा पशुओं को यह रिफ्लेक्टिव कॉलर पहना चुकी है। साथ ही घायल पशुओं के खाने व उनका उपचार भी करवा रही है। इंटनरेट मीडिया पर अभियान के प्रचार के बाद टीम द्वारा तैयार किए गए रिफ्लेक्टिव की अन्य राज्यों से भी मांग आने लगी है।
युवाओं की इस टीम में मुग्धा खत्री, इरम नाज, अतुल सिंह बिष्ट, स्वामी भट्ट, अनूप और मयंक शामिल हैं। जिसका नेतृत्व मुग्धा करती हैं। टीम बीते वर्ष लाकडाउन में आवारा पशुओं को खाना खिलाने से लेकर उनके इलाज करवाने में मदद कर रही है। मुग्धा बताती हैं कि हमें विचार आया कि सड़कों पर घूम रहे पशुओं को रिफ्लेक्टिव कालर पहननाने से रात को वह दुर्घटना से बच सकते हैं। अब तक 150 से ज्यादा पशुओं को यह पहना चुके हैं। कुल 1000 रिफ्लेक्टिव कालर बनाए हैं। इंटरनेट पर प्रचार के बाद पुणे, हैदराबाद, उत्तर प्रदेश, नोएडा से मिले आर्डर के बाद वहां 500 रिफ्लेक्टिव कालर भेज दिए हैं।
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60 रुपये प्रति पीस बेचते हैं रिफ्लेक्टिव कालर
टीम का कहना है कि इसे बनाने का सामान बाहर से लेकर आते हैं और खुद ही इसे चंद्रमनी स्थित कार्यालय में बनाने का कार्य करते हैं। इसमें रिफ्लेक्टिव टेप और हुक का प्रयोग किया जाता है। इसमें 55 रुपये प्रति पीस तक लागत आती है, जबकि इसे बाहर 60 रुपये में बेचा जाता है।
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