उत्तराखंड में फिर आबाद होंगे 968 'घोस्ट विलेज'
उत्तराखंड में अब वीरान पड़े 968 भुतहा गांव (घोस्ट विलेज) फिर से आबाद किए जाएंगे। इसके लिए आयोग एक प्रभावी कार्ययोजना को मूर्त रूप देगा।
By raksha.panthariEdited By: Updated: Mon, 16 Oct 2017 10:41 PM (IST)
देहरादून, [विकास धूलिया]: नवगठित ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की कोशिशें रंग लाई तो पलायन का दंश झेल रहे देवभूमि उत्तराखंड में वीरान पड़े 968 भुतहा गांव (घोस्ट विलेज) फिर से आबाद होंगे। आयोग इसके लिए प्रभावी कार्ययोजना तैयार करेगा। प्रयास यह है कि इन गांवों में फिर से बसागत हो अथवा फिर इन्हें पर्यटन ग्रामों के तौर पर विकसित किया जाए। इसके अलावा अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जाएगा।
प्रदेश में पलायन एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। ज्ञानार्जन, तीर्थाटन के लिए तो पलायन समझ में आता है, लेकिन यहां तो जिसने एक बार गांव को अलविदा कहा दोबारा वहां की तरफ रुख नहीं किया। इन वीरान इन गांवों में कभी खूब चहल-पहल रहा करती थी, मगर अब वहां के घर, गोशालाएं सब खंडहर में तब्दील होने लगे हैं। इसीलिए इन्हें घोस्ट विलेज कहा जाने लगा है। यही नहीं, दो हजार के लगभग ऐसे गांव हैं, जो खाली तो हो चुके हैं, लेकिन गर्मियों में अथवा ग्राम देवता की पूजा आदि के मौके पर कुछ घरों के दरवाजे जरूर खुल जाते हैं। नवगठित ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग भी इस स्थिति से खासा चिंतित है। आयोग के उपाध्यक्ष डॉ.एसएस नेगी के मुताबिक घोस्ट विलेज, उन गांवों को कहा गया है, जहां अब कोई रहता नहीं है। यूं कहें कि इन गांवों में ऐसी स्थिति नहीं है कि कोई वहां रह सके। ऐसे गांवों को फिर से आबाद करना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन आयोग सभी पहलुओं की पड़ताल करने के बाद इसके लिए ठोस कार्ययोजना तैयार कर सरकार को सौंपेगा।
समस्या की तह तक जाएगा पलायन आयोगउत्तराखंड में पलायन की असल तस्वीर क्या है, इसके पीछे मुख्य कारण क्या हैं, क्या सरकारों ने अब तक गांवों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी, सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कहीं स्थानीय परिस्थितियों की अनदेखी तो नही की गई, विकास योजनाओं में जनभागीदारी को तवज्जो मिली अथवा नहीं आदि-आदि। ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग ऐसे तमाम सवालों को लेकर गांव-गांव में लोगों से संवाद करेगा। आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. एसएस नेगी के मुताबिक इसकी रणनीति तैयार कर ली गई है और दीपावली के बाद गांवों का दौरा किया जाएगा। डॉ. नेगी कहते हैं कि पलायन के कारणों को पहाड़ के गांवों में ही जाकर ही समझा जा सकता है। लोगों के बीच से ही समाधान की राह भी निकलकर आएगी। इसीलिए आयोग ने तय किया है कि दीपावली के बाद प्रदेशभर के लगभग सभी गांवों का दौरा किया जाएगा। पलायन का दंश झेल रहे गांवों का भी और जहां से एक व्यक्ति ने भी पलायन नहीं किया, उन गांवों का भी। तमाम सवालों को लेकर ग्रामीणों के साथ ही विभागीय अधिकारियों से भी तफसील से चर्चा की जाएगी। विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से भी राय-मशविरा लिया जाएगा।
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