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मॉरीशस में भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक रही बैठका

मॉरीशिस में हुए अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में हल्द्वानी के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. दिवाकर भट्ट को विश्व हिंदी गौरव सम्मान से नवाजा गया।

By raksha.panthariEdited By: Updated: Wed, 08 Nov 2017 05:00 AM (IST)
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मॉरीशस में भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक रही बैठका

मॉरीशस, [गणेश जोशी, पोर्ट लुइस]: हिंद महासागर के तट पर स्थित बेहद खूबसूरत देश मॉरीशस। पूरी तरह भारतीय रंग में रंगा। सुदूर क्षेत्र के इस देश में भारतीय संस्कृति के फलने-फूलने का अनूठा माध्यम आज भी बैठका है। 183 साल पहले औपनिवेशिक काल में भारत से यहां पहुंचे मजदूरों में कुछ जागरूक लोगों ने अपने सुख-दुख साझा करने का जो मंच बनाया यही बैठका नाम से प्रचलित हुआ। इसी बैठका की वजह से भारतीय संस्कृति, परंपरा, सामाजिकता, धार्मिकता, संस्कृति व राजनीतिक गतिविधियों के प्रति प्रवासी भारतीयों में अलख जगी। 

मॉरीशस में ज्यादातर भारतीयों के घर के बाहर मंदिर दिख जाता है। बावजूद इसके पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से कहीं न कहीं बैठका का प्रभाव कम हुआ है।   हालांकि आर्य समाज की ओर से तमाम जगहों पर ऐसी बैठकाओं का आयोजन अब भी किया जाता है। इसके जरिये युवा पीढ़ी को हिंदी व भारतीयता का पाठ पढ़ाया जा सके। 

मॉरीशस के साहित्यकार व शोधकर्ता राजेश कुमार उदय कहते हैं, युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखना बेहद जरूरी है। इसलिए कोशिश रहती है कि बैठका का आयोजन जारी रहे । भारतीय संस्कृति के प्रति समझ विकसित करने और चेतना जगाने का यह अनूठा माध्यम रहा है, और है। आज मॉरीशस में अप्रवासी भारतीयों जो प्रगति है, उसका श्रेय भी बैठका को ही जाता है। छह वर्षों से मॉरीशस में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार डॉ. दिवाकर भट्ट कहते हैं, वैदिक संस्कृति को पुष्पित-पल्लवित करने के लिए आयोजित होने वाले बैठका को लेकर आज भी संवेदनशील लोग चिंतित रहते हैं। यहां के साहित्यकार ऐसे आयोजनों को लेकर प्रयासरत हैं। 

बॉलीवुड की जुबान है मॉरीशस 

मॉरीशस की भाषा भले ही क्रियोल हो, लेकिन उनकी जुबान पर बॉलीवुड छाया रहता है। फिल्मकारों के नाम हो या फिल्मों के डायलॉग अक्सर यहां के प्रवासी भारतीयों के मुंह से सुने जा सकते हैं। बॉलीवुड प्रवासी भारतीयों में हिंदी के फलने-फूलने का सबसे बड़ा माध्यम है। 

हिंदी शब्द अन्य भाषाओं में भी हुए मिक्स 

मॉरीशस में रहने वाले प्रवासी भारतीयों का परिधान भले ही वेस्टर्न हो गया हो लेकिन धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजनों में पुरुष धोती कुर्ता महिलाएं साड़ी ही पहनती हैं। मॉरीशस की अन्य भाषाओं में भी धोती साड़ी शब्द ही प्रचलित हो गया है। साहित्यकार धर्मवीर गंगू ने बताया, दालपूरी हो या लड्डू, बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के तमाम ऐसे शब्द हैं जो अन्य भाषाओं के लोग भी खुलकर बोलने लगे हैं। 

दिवाकर भट्ट को मॉरीशस में विश्व हिंदी गौरव सम्मान 

अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में हल्द्वानी के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. दिवाकर भट्ट को विश्व हिंदी गौरव सम्मान से नवाजा गया। मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ ने यह सम्मान दुनिया में हिंदी के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए दिया। 

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