राजाजी टाइगर रिजर्व में डेढ़ सौ साल पहले खोदे गए कुंओं का है रोचक इतिहास
राजाजी टाइगर रिजर्व का जंगल स्वयं में कई राज समेटे हुए है। जंगल में मौजूद दो दर्जन से अधिक कुओं का अपना इतिहास है। पानी का लेवल जांचने को खोदे गए ये कुएं बाद में लोगों और वन्यजीवों की प्यास बुझाने में अहम भूमिका निभाते थे।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 14 Aug 2021 10:38 PM (IST)
केदार दत्त, देहरादून। राजाजी टाइगर रिजर्व भले ही एशियाई हाथियों की प्रमुख सैरगाह के साथ ही वन्यजीव विविधता के लिए विशिष्ट पहचान रखता हो, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस रिजर्व का जंगल भी स्वयं में कई राज समेटे हुए है। ऐसा ही एक राज जुड़ा है इस रिजर्व के जंगल में मौजूद दो दर्जन से अधिक कुओं से। करीब डेढ़ सौ साल पहले पानी का लेवल जांचने के लिए खोदे गए ये कुएं बाद में स्थानीय निवासियों और फिर वन्यजीवों की प्यास बुझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। इन पर अब वक्त की धूल की परत जरूर जमी है, मगर ये आज भी मुस्तैदी से खड़े हैं।
राजाजी में वन्यजीवन का करीब से दीदार को पहुंचने वाले सैलानियों के लिए ये कुएं कौतुहल का विषय भी हैं। कुओं पर नजर पड़ने पर वे इनके बारे में चर्चा जरूर करते हैं, लेकिन उन्हें इनके इतिहास के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं मिल पाती। देखभाल न होने के कारण कुछ कुओं की दीवारें अवश्य क्षतिग्रस्त हुई हैं, लेकिन इनमें से 80 फीसद में आज भी ठीक-ठाक पानी उपलब्ध है, जबकि अन्य में कम। वन महकमे ने अब इन कुओं के संरक्षण की दिशा में कदम उठाने की ठानी है।
राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग बताते हैं कि इन कुंओं का जीर्णोद्धार कराया जाएगा। उन्होंने बताया कि राजाजी रिजर्व के जिन क्षेत्रों में ये कुएं हैं, वहां पानी की कोई दिक्कत नहीं है। फिर भी कुओं का संरक्षण किया जाएगा।
यहां हैं ऐतिहासिक कुएंराजाजी रिजर्व की चीला रेंज के साथ ही धौलखंड, बेरीवाड़ा, मोतीचूर, चिल्लावाली के अलावा हरिद्वार में ये कुएं मौजूद हैं। इस वियावान में कुएं खोदने का क्या क्या कारण रहा होगा, इसका कोई ठोस प्रमाण तो मौजूद नहीं है, लेकिन माना जाता है कि ब्रिटिशकाल में पानी का लेवल मापने के लिए अंग्रेज अफसर कुएं खुदवाते थे। यह भी बताया जाता है कि वन्यजीवों के लिए पानी की उपलब्धता के मकसद से भी इनका निर्माण कराया गया होगा।
ग्रामीणों के हलक तर करते थे कुएंराजाजी टाइगर रिजर्व की चीला रेंज के अंतर्गत एक दौर में खारागांव मौजूद थे। बाद में इसे अन्यत्र स्थानांतरित किया गया। जिस क्षेत्र में खारागांव था, उसका नाम बाद में खारापानी हो गया। इस क्षेत्र में चार-पांच कुएं अभी भी मौजूद हैं, जो अच्छी स्थिति में हैं।यह भी पढ़ें:- वन्यजीवों के संरक्षण में उत्तराखंड निभा रहा महत्वपूर्ण भूमिका, मैनेजमेंट प्लान को लेकर जरूरी है गंभीरता
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