International Day of Forests: संरक्षण से बढ़कर वनों को 'इलाज' की दरकार, उठाए जा रहे कदम
International Day of Forests पर्यावरण संरक्षण के लिए वनों को बचाना ही काफी नहीं उनकी दशा को सुधारना भी नितांत आवश्यक है। इसे ध्यान में रखते हुए वन विभाग ने भी उत्तराखंड के जंगलों के इलाज को कमर कस ली है।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sun, 21 Mar 2021 08:11 AM (IST)
विजय जोशी, देहरादून। International Day of Forests पर्यावरण संरक्षण के लिए वनों को बचाना ही काफी नहीं, उनकी दशा को सुधारना भी नितांत आवश्यक है। इसे ध्यान में रखते हुए वन विभाग ने भी उत्तराखंड के जंगलों के 'इलाज' को कमर कस ली है। इसके लिए चार बिंदुओं के आधार पर खाका तैयार किया गया है। इसमें वन संरक्षण, प्रबंधन, पुनरुद्धार और उत्पादन शामिल हैं। विश्व वानिकी दिवस के उपलक्ष में उद्देश्यों को लेकर वन विभाग ने संकल्प लिया है। साथ ही आमजन से भी सहयोग की अपील की है।
71 फीसद वन आच्छादित क्षेत्र वाले उत्तराखंड में पर्यावरण और वन संपदा के संरक्षा का मुद्दा हमेशा ही गंभीर रहा है। यहां प्राकृतिक आपदा, वनों की आग और विकास कार्यों के बीच वनों को बचाना चुनौती रहा है। हालांकि, वन विभाग के प्रयास और प्राकृतिक वातावरण के कारण उत्तराखंड वन संपदा समृद्ध प्रदेश है, लेकिन वनों का दायरा बरकरार रहने के बावजूद उनकी दशा जरूर बिगड़ रही है। हालांकि, इसके लिए अब वन विभाग फॉरेस्ट रेस्टोरेशन: ए पाथ टू रिकवरी एंड वेल बींग के कॉन्सेप्ट पर कार्य कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी इस कॉन्सेप्ट पर कार्य करने का आह्वान तमाम देशों से किया है।
बारीकी से होगा वनों का ट्रीटमेंट
प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (हॉफ) राजीव भरतरी ने बताया कि वनों की सेहत सुधारने पर फोकस किया जा रहा है, जिसमें रामबांस, लैंटाना जैसे पादपों का उन्मूलन महत्वपूर्ण है। इसमें ग्रामीणों को रोजगार भी दिया जा रहा है। इसके अलावा घास के मैदान विकसित कर वन्यजीवों के अनुकूल माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके अलावा औषधीय पादपों की नर्सरी, बांस के वनों को प्रोत्साहन, नदियों के किनारे वृहद पौधरोपण किया जा रहा है। उन्होंने स्वस्थ वन, स्वस्थ जीवन का नारा दिया। कहा कि जब वनों की सेहत दुरुस्त रहेगी तभी वन्य जीवों और मनुष्य का जीवन भी सुखद होगा।
प्राकृतिक आपदा और आग से नुकसान
उत्तराखंड में हर साल प्राकृतिक आपदा और आग से वनों को भारी नुकसान होता है। प्रदेशभर में करीब सात सौ से एक हजार आग की घटनाएं प्रत्येक वर्ष होती है। जिसमें औसतन 1200 से 1500 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित होता है। हजारों पेड़ों को नुकसान पहुंचने से हर साल लाखों की वन संपदा खाक हो जाती है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदा भी जंगलों को जख्म दे जाते हैं। हालांकि, वन विभाग के आकलन के अनुसार विकास कार्यों में बेहद मामूली वन क्षेत्र प्रभावित होता है।
जायका से सुधरेगी वनों की सूरतजायका (जापान इंटरनेशनल को-आपरेशन एजेंसी) परियोजना सरकार करीब दो साल से वन आरक्षित क्षेत्रों और वन पंचायतों की सूरत संवारने में जुटा है। 807 करोड़ रुपये की लागत की इस परियोजना के अंतर्गत 13 वन प्रभागों की 36 रेंजों में चयनित 750 वन पंचायतों में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के उपचार के साथ ही विभिन्न रोजगारपरक कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।
फॉरेस्ट रेस्टोरेशन को उठाए जा रहे कदम1. आरक्षित वन क्षेत्र व वन पंचायत में गतिविधियां-नदियों का पुनर्जीवन, लैंटाना उन्मूलन व घास मैदानों का विकास, पौधारोपण, जल एवं मृदा संरक्षण, अग्नि सुरक्षा।2. गतिविधियों से ग्रामीणों को लाभ-रोजगार, आजीविका, मानव-वन्यजीव संघर्ष में कमी।3. वनों से लाभ
-पर्यावरण संरक्षण, जलवायु संतुलन, जल व जैव विविधता।4. वन उत्पादों से लाभ-जड़ी-बूटी, भोजन, काष्ठ, वन उपज आधारित उद्योग।यह भी पढ़ें- यहां आखिर कब लौटेगी फ्योंली की मुस्कान, बुरांस पर भी मंडरा रहे खतरे के बादल; जानिएUttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें
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