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International Day of Girl Child 2020: मजबूत इरादों ने बेटियों के सपनों को लगाए पंख, छू लिया आसमान

International Day of Girl Child 2020 रादे मजबूत हों तो कठिन से कठिन डगर भी आसानी से पार की जा सकती है। यह कोई जुमला नहीं बल्कि हकीकत है और इसे कर दिखाया शहर की कुछ बेटियों ने।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sun, 11 Oct 2020 09:21 AM (IST)
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मजबूत इरादों ने बेटियों के सपनों को लगाए पंख।
देहरादून, जेएनएन। International Day of Girl Child 2020 इरादे मजबूत हों तो कठिन से कठिन डगर भी आसानी से पार की जा सकती है। यह कोई जुमला नहीं, हकीकत है और इसे कर दिखाया शहर की कुछ बेटियों ने। उनके सपनों को साकार करने में कई लोग ने अहम भूमिका निभाई और उनका साथ दिया, लेकिन इन बेटियों के मजबूत इरादों के बिना यह सब हो पाना संभव नहीं था। उन्हीं के जज्बे ने विपरीत परिस्थितियों में खड़ा रहना और सपने देखकर उन्हें पूरा करना भी सिखाया। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर दून की ऐसी ही कुछ बेटियों से हम रूबरू होंगे।

मजबूरियों को मात देकर चुनी अपनी राह

देहरादून की मनीषा कुमारी ने पारिवारिक हालातों के चलते 11 साल की उम्र में अपनी मां के साथ घर-घर जाकर झाडू पोछा और खाना बनाने का काम शुरू कर दिया था। मनीषा बताती हैं कि बड़ा परिवार होने के कारण छोटी बहनों का भी ध्यान रखना होता था, जिसके बाद पढ़ाई छोडऩे की नौबत आ गई। ऐसे ही समय में मनीषा पर अपने सपने संस्था की नजर पड़ी। संस्था के सदस्यों ने घर वालों से मिलकर पढ़ाई ना छुड़वाने की गुजारिश की और उसे संस्था के दफ्तर में पढ़ाना शुरू किया। 

मनीषा ने बताया कि करीब तीन साल उन्होंने मजबूरी में घरों में जाकर काम किया, लेकिन जबसे पढ़ाई की अहमियत समझी, तब से पढ़ाई पर ही ध्यान केंद्रित कर रही हैं। मनीषा ने बताया कि वह अब हिंदी टाइपिंग सीख चुकी हैं और अपने सपने संस्था में ही मैगजीन के लिए टाइपिंग करती हैं। जिसके बदले में उन्हें मेहनताना भी मिल जाता है। इस साल मनीषा ने 10वीं की बोर्ड परीक्षा भी पहली डिवीजन में पास कर ली है। मनीषा भविष्य में बैंक में नौकरी करना चाहती हैं।

बोर्ड परीक्षा में टॉप कर कमाया नाम

प्रतियोगी परीक्षाएं हों या बोर्ड परीक्षा के परिणाम, हर क्षेत्र में बेटियों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। हर साल टॉप पर किसी ना किसी बेटी का नाम जरूर होता है। इस साल 12वीं के बोर्ड परीक्षा परिणाम में जीजीआइसी अजबपुर कलां में पढ़ने वाली सुजाता रमोला ने 91.08 फीसद अंक हासिल कर अपने स्कूल में टॉप करने के साथ ही प्रदेश में भी टॉप 25 में जगह बनाई। सुजाता का नाम इसलिए भी खास हो गया, क्योंकि जिन परिस्थितियों के बीच सुजाता ने यह अंक हासिल किए, वह हर किसी के लिए आसान नहीं होता। सुजाता के पिता नहीं हैं और मां दूसरों के घरों में काम करके गुज़ारा चलाती हैं। सुजाता खुद पढ़ने के साथ अपनी पांच साल की बहन का भी ध्यान रखती हैं। 

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मूल रूप से टिहरी के लंबगांव की रहने वाली सुजाता अपनी मां और बहन के साथ देहरादून में एक छोटे से कमरे में किराये पर रहती हैं। कमरे का किराया और घर खर्च निकालने में कई दफा सुजाता की स्कूल के शिक्षक ही उनकी मदद करते हैं। सुजाता बताती हैं कि आइएएस बनकर परिवार का नाम ऊंचा करने के साथ ही अपने जैसे बच्चों की सहायता करना चाहती हैं। 

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