17 साल से चला आ रहा शिक्षकों की वरिष्ठता का मसला आखिरकार सुलझ गया
प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब नियमित होने की तारीख से वरिष्ठता नहीं मिलेगी। तदर्थ शिक्षकों के मामले में ऐसा फैसला सरकार ने किया है। पिछले 17 साल से चला आ रहा शिक्षकों की वरिष्ठता का मसला आखिरकार सुलझ गया।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 15 Jul 2021 09:19 AM (IST)
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब नियमित होने की तारीख से वरिष्ठता नहीं मिलेगी। तदर्थ शिक्षकों के मामले में ऐसा फैसला सरकार ने किया है। पिछले 17 साल से चला आ रहा शिक्षकों की वरिष्ठता का मसला आखिरकार सुलझ गया। तदर्थ नियुक्त और सीधी भर्ती से नियुक्त शिक्षक वरिष्ठता की जंग में उलझ गए थे। हाईकोर्ट और ट्रिब्यूनल से होते हुए आने वाले इस मामले को सुलझाने में ही लंबा अरसा गुजर गया। शासन ने हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए जो बीच की राह निकाली है, उससे फिलहाल शिक्षकों के दोनों गुटों में कुछ हद तक संतोष दिख रहा है। तदर्थ शिक्षकों को नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता का लाभ शासन ने नहीं दिया है, लेकिन एक अक्टूबर, 1990 से उन्हें नियमित मान लिया है। तदर्थ शिक्षकों को सेवानिवृत्ति के मौके पर वित्तीय लाभ मिलना तय है, साथ में लंबे समय से अटकी पदोन्नतियां भी होंगी।
सुनो, सुनो जी..सरकार सुनोसरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के फिर कातर सुर। शासन स्तर पर पेंडिंग हो रहे हैं मामले। कुलसचिव, उप कुलसचिव, सहायक कुलसचिव हो या परीक्षा नियंत्रक तमाम महत्वपूर्ण पद विश्वविद्यालयों में खाली पड़े हैं। शासन शक्ति का केंद्र अपने हाथ में तो रखना चाहता है, लेकिन मसलों के समाधान में आस्था नहीं दिखती। नियुक्तियों पर पेच है ही, नए-पुराने पाठ्यक्रमों की मान्यता, उन्हें विस्तार देने, विश्वविद्यालयों के छोटे-छोटे कामकाज में हस्तक्षेप बरकरार है। राजभवन में बैठक हुई तो कुलाधिपति बेबी रानी मौर्य ने शासन के अधिकारियों पेंडेंसी निपटाने की सख्त नसीहत दे डाली। राजभवन बार-बार सरकार से विश्वविद्यालयों के मामले में बड़ा दिल दिखाने को कह चुका है। विश्वविद्यालय विधेयक को पहली बार लौटाते हुए राजभवन ने विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के मामले में यही अपेक्षा की थी। सरकार संशोधित विधेयक विधानसभा से दोबारा पारित कर राजभवन भिजवा चुकी है। राजभवन को अब भी शासन के रुख में सुधार होने का इंतजार है।
पहले यूसेट, फिर करो भर्तीकुछ कोरोना महामारी का असर और कुछ सिस्टम की पुरानी अदा उच्च शिक्षित बेरोजगारों पर भारी पड़ रही है। सरकारी डिग्री कालेजों में शिक्षकों के 455 पद रिक्त हैं। चुनावी बेला देख सरकार ने इन पदों को तेजी से भरने का निर्णय लिया। विभाग ने 455 पदों पर भर्ती का प्रस्ताव राज्य लोक सेवा आयोग को भेजा है। भर्ती प्रक्रिया जल्द प्रारंभ करने को तो कदम उठ गए, लेकिन सरकार नेट की तर्ज पर होने वाली यूसेट परीक्षा को भूल गई। डिग्री शिक्षक बनने के लिए यह परीक्षा पास होना महत्वपूर्ण है। अन्यथा पीएचडी डिग्री होनी चाहिए। कोरोना काल में इन दोनों पर असर पड़ा है। शोध कार्य ठप होने की वजह से विश्वविद्यालयों में पीएचडी पूरा करने में ज्यादा वक्त लग रहा है। रोजगार का अवसर हाथ से निकलने से बेचैन बेरोजगारों ने उच्च शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत से जल्द यूसेट परीक्षा कराने की गुहार लगाई है।
खास अफसरों को बड़ी जिम्मेदारीप्रदेश के सबसे बड़े महकमे शिक्षा में इन दिनों अपर निदेशक के रिक्त नौ पदों पर पदोन्नति और फिर उन्हें मिलने वाली तैनाती का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। अपर निदेशक के नौ पदों के लिए डीपीसी हुई। दौड़ में 20 अफसर शामिल थे। हालांकि ये सभी प्रभारी अपर निदेशक के पदों पर लंबे समय से काम कर रहे हैं। इन पदों की डीपीसी में भी तमाम कारणों से लंबा वक्त लगा। तकरीबन दो साल बाद डीपीसी हो पाई। डीपीसी के बाद पदोन्नति आदेश जारी होने के इंतजार पांच महीने गुजर गए हैं। पदोन्नति में श्रेष्ठता बनाम ज्येष्ठता को लेकर पेच भी फंसा रहा। डीपीसी के प्रस्ताव को अब उच्चानुमोदन मिल गया है तो इन अपर निदेशकों को मिलने वाली तैनाती पर सबकी नजरें लगी हैं। पदोन्नत अधिकारियों में कुछ को अहम जिम्मेदारी से नवाजा जाना तय है। शिक्षा मंत्रालय की टीम इस कार्य में जुटी हुई है।
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