Move to Jagran APP

कोदा-झंगोरा खाएंगे, पर कहां से लाएंगे; ऐसा क्यों कह रहे हैं इस खबर में पढ़िए

प्रदेश के आंगनबाड़ी केंद्रों में दिए जाने वाले टेक-होम राशन की सूची में संशोधन कर कोदा-झंगोरा के स्थानीय दालें अनिवार्य कर दी गई हैं। लेकिन सवाल ये कि इन्हें लाया कहां से जाए।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Wed, 15 May 2019 08:30 PM (IST)
कोदा-झंगोरा खाएंगे, पर कहां से लाएंगे; ऐसा क्यों कह रहे हैं इस खबर में पढ़िए
देहरादून, अजय खंतवाल। 'कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे', उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान बच्चे से लेकर बूढ़ों तक की जुबां पर यह नारा आम था। लेकिन, राज्य गठन के 18 वर्षों बाद प्रदेश में कोदा-झंगोरा मिलना किस कदर मुश्किल हो चला है, यह बात महिला और बाल विकास परियोजना से जुड़े विभिन्न समूहों से बेहतर और कौन जानता होगा। असल में शासन ने प्रदेश के आंगनबाड़ी केंद्रों में दिए जाने वाले टेक-होम राशन की सूची में संशोधन कर कोदा(मंडुवा) और झंगोरा के साथ ही गहथ और काला भट जैसी स्थानीय दालों को अनिवार्य कर दिया है। यही आदेश अब योजना के संचालन में गले की फांस बन रहा है। तमाम प्रयासों के बावजूद समूह पर्याप्त मात्रा में इन उत्पादों का इंतजाम नहीं कर पा रहे। 

कुपोषण के अंधेरे को दूर करने और जनसामान्य को कुपोषण के दूरगामी दुष्प्रभावों से परिचित कराकर आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों, गर्भवती और धात्री महिलाओं और अतिकुपोषित बच्चों को राशन देने का कार्य शुरू किया गया है। 

शुरुआती दौर में टेक-होम राशन में कोदा-झंगोरा जैसे उत्पाद नहीं थे, लेकिन अब शासन ने कोदा-झंगोरा के साथ ही गहथ और काला भट जैसी स्थानीय दालों को भी टेक-होम राशन में अनिवार्य कर दिया है। पिछले दिनों शासन की ओर से इस संबंध में आदेश भी जारी कर दिया गया। तब से महिला और बाल विकास परियोजना में हड़कंप मचा हुआ है। मुश्किल यह है कि कोदा-झंगोरा सहित अन्य उत्पादों की व्यवस्था कैसे और कहां से की जाए।

बता दें कि पौड़ी जिले में पलायन की मार का सीधा असर खेती पर पड़ा है और बड़े पैमाने पर खेत बंजर हो चले है। गांवों में रह रहे काश्तकारों ने जंगली जानवरों के आतंक से त्रस्त होकर खेती छोड़ दी है। आलम यह है कि ग्रामीणों को स्वयं की जरूरत लिए भी पहाड़ी उत्पाद मिलना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में बड़ी मात्रा में इन उत्पादों की व्यवस्था करना परियोजना से जुड़ी समितियों के चुनौती बन गया है। 

उत्पाद सर्दियों के, बांटे जा रहे गर्मियों में 

सरकारी सिस्टम की अदूरदर्शिता देखिए कि जिन उत्पादों को पहाड़ी क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान उपयोग में लाया जाता है, सरकारी अधिकारी आंगनबाड़ी केंद्रों में उनका वितरण गर्मियों में करवा रहे हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि कोदा, झंगोरा, गहथ और काला भट ऐसे उत्पाद हैं, जिनकी तासीर (प्रकृति) गरम होती है और सर्दियों के मौसम में इनके सेवन से शरीर को गर्माहट मिलती है। ऐसे में गर्मियों के दौरान इनका सेवन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। 

यह राशन होगा वितरित 

सात माह से तीन वर्ष के बच्चे को

मंडुवे का आटा, झंगोरा, सोयाबीन, काला भट, गहथ दाल, भुने भट, भुना चना, सोयाबीन, गुड़, चौलाई के लड्डू, किशमिश, अखरोट और नमक। 

गर्भवती और धात्री महिलाओं को

मंडुवे का आटा, मिक्स आटा, मक्के का आटा, सोयाबीन, काला भट, गहथ की दाल, गुड़, चौलाई के लड्डू, बादाम, किशमिश, अखरोट और नमक। 

अति कुपोषित बच्चों को

झंगोरा, काला भट, गहथ, भुने भट, सोयाबीन, गुड़, चौलाई के लड्डू, बादाम, अखरोट और मूंगफली। 

जिला कार्यक्रम अधिकारी एसके त्रिपाठी ने बताया कि उच्चाधिकारियों की ओर से जारी निर्देशों का अनुपालन करने के लिए तमाम उत्पादों की व्यवस्था समूहों के माध्यम से कराई जा रही है। जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप ही टेक होम राशन का वितरण किया जाएगा।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड से आ रही सेहत की सुगंध, ये दालें खाएं और बीमारियों को दूर भगाएं

यह भी पढ़ें: उत्तराखंडी खानपान में सनातनी व्यवस्था, पौष्टिक व्यंजन और लाजवाब जायका

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।