जागरण फिल्म फेस्टिवल का दून में भव्य आगाज, दर्शकों से रूबरू हुई दिव्या दत्ता
दुनिया के सबसे बड़े घुमंतु फेस्टिवल जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) ने तीन दिन के लिए दून में पड़ाव डाल दिया। फेस्टिवल में देश-दुनिया की छोटी-बड़ी 14 फिल्में दिखाई जा रही हैं।
By BhanuEdited By: Updated: Sat, 31 Aug 2019 11:38 AM (IST)
देहरादून, जेएनएन। दिल्ली से चले दुनिया के सबसे बड़े घुमंतु फेस्टिवल जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) ने तीन दिन के लिए दून में पड़ाव डाल दिया। फेस्टिवल के पहले दिन सिल्वर स्क्रीन पर पहली फिल्म शुरू हुई तो दर्शक भी सिनेमाई सफर में साथ हो लिए। रविवार तक चलने वाले फेस्टिवल में देश-दुनिया की छोटी-बड़ी 14 फिल्में दिखाई जा रही हैं। साथ ही दर्शक सिनेमा से जुड़ी अपनी तमाम जिज्ञासाएं भी शांत कर सकेंगे। उद्घाटन सत्र में भी अभिनेत्री दिव्या दत्ता ने दर्शकों से अपने फिल्मी सफर के अनुभव साझा किए।
रजनीगंधा के सहयोग से राजपुर रोड स्थित सिल्वर सिटी मल्टीप्लेक्स में आयोजित जेएफएफ के दसवें संस्करण का शुभारंभ कृषि मंत्री सुबोध उनियाल और अभिनेत्री दिव्या दत्ता ने दीप प्रज्ज्वलन के साथ दैनिक जागरण के संस्थापक स्व.पूर्णचंद्र गुप्त और पूर्व प्रधान संपादक स्व.नरेंद्र मोहन के चित्रों पर पुष्प अर्पित कर किया। अपने संबोधन में कृषि मंत्री उनियाल ने जेएफएफ के सफल आयोजन के लिए दैनिक जागरण को शुभकामनाएं दीं। कहा कि बदलते दौर में जब पत्रकारीय मानक बदलते जा रहे हैं, तब दैनिक जागरण समाज को सिनेमा के साथ जोड़कर सराहनीय पहल कर रहा है।
कहा कि यह मीडिया पर निर्भर है कि वह समाज में किसी की छवि कैसे पेश करता है। जागरण ने अपनी जिम्मेदारी को समझा और देश-विदेश की बेहतरीन फिल्मों को दर्शकों के बीच लाया है। उन्होंने फेस्टिवल को दिए गए ‘घुमंतु’ फिल्म फेस्टिवल नाम को जागरण का नया इनोवेशन बताया।
उद्घाटन सत्र के बाद अभिनेत्री दिव्या दत्ता दर्शकों से रू-ब-रू हुईं। इस दौरान उन्होंने दर्शकों से अपने सिनेमाई सफर के अनुभव तो साझा किए ही, उनके फिल्मों से जुड़े सवालों के जवाब भी दिए। फेस्टिवल के पहले दिन हंिदूी फीचर फिल्म ‘तुंबाड’ का प्रदर्शन किया गया। जिसे दर्शकों के मनो-मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ी।
कार्यक्रम में डीएस ग्रुप के सीएसए राजेश आहूजा, आरएसएम संतोष तिवारी, सिल्वर सिटी मल्टीप्लेक्स के डायरेक्टर सुयश अग्रवाल, दैनिक जागरण के महाप्रबंधक अनुराग गुप्ता, राज्य संपादक कुशल कोठियाल आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन मोना बाली ने किया।
समाज से सीधे दर्शकों के बीच पहुंचा सिनेमा
सिनेमा के साथ समाज और समाज के साथ सिनेमा भी बदल रहा है। लेकिन, अभी भी बहुत-कुछ होना बाकी है। इस दिशा में सिनेमा के गंभीर होने के बावूजद बेडिय़ां अभी भी पूरी तरह नहीं टूटी हैं। इसलिए गंभीर एवं अर्थपरक सिनेमा के लिए गंभीर दर्शकों का होना भी जरूरी है। इन दोनों कडिय़ों का जोडऩे का काम कर रहा है जागरण फिल्म फेस्टिवल। इसकी बानगी फेस्टिवल के शुभारंभ पर दून में दिखाई दी।
बारिश की फुहारों के बीच सिनेमा हॉल में पहुंचे दर्शकों की जुबां पर कई सवाल थे। जिनके जवाब वह न केवल अभिनेत्री दिव्या दत्ता से बातचीत में, बल्कि फिल्म 'तुंबाड' में तलाशते भी नजर आए। दरअसल, जेएफएफ दर्शकों के बीच ऐसी फिल्मों के लेकर आता है, जो समाज से निकलकर सीधे पर्दे पर उतरती हैं। इन फिल्मों के पात्र एक सामान्य व्यक्ति की तरह आचरण करते हैं। उनकी भी महत्वाकाक्षाएं हैं, वह भी ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहते हैं।
हालात उन्हें भी बदलाव का वाहक बनने को प्रेरित करते हैं। लेकिन, इस सबके बीच तमाम ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब समाज सिनेमा के साथ और सिनेमा समाज के साथ मिलकर तलाश रहा है। राही अनिल बर्वे निर्देशित फिल्म 'तुंबाड' इसका उदाहरण है।फिल्म की कहानी किसी दंतकथा सरीखी है, लेकिन शुरू से आखिर तक फिल्म ने लुक से ज्यादा किरदार की साइकोलॉजी को पकड़कर रखा है। यही वजह है कि फिल्म को बनाने में छह साल का वक्त लगा। इसकी कहानी हमें आजादी से पहले के दौर में ले जाती है, जब समाज बुरी तरह बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। लेकिन, उस समाज और वर्तमान समाज के मनोभावों में तकनीकी तौर भी आज भी बहुत ज्यादा अंतर नजर नहीं आता। हां, इतना जरूर है कहने-करने के तौर-तरीके बदल गए हैं। इन हालात को सिल्वर स्क्रीन पर उकेरना निश्चित रूप से आसान नहीं था। खासकर फिल्म में राक्षस को प्रोस्थेटिक और वीएफएक्स में बनाना खासा चुनौतीपूर्ण था। ऐसा संभव हो पाया तो यह निर्देशन की ही सफलता है। जेएफएफ की यही सबसे बड़ी खूबी है कि तुबांड जैसी फिल्मों के बहाने वह न केवल समाज की विसंगतियों को मजबूती से उभार रहा है, बल्कि ऐसा माहौल भी तैयार कर रहा है, जो एक बेहतर सोच को जन्म देता है। फेस्टिवल के उद्घाटन सत्र में अभिनेत्री दिव्या दत्ता भी जागरण की इसी सोच को आगे बढ़ाती नजर आईं। यह भी पढ़ें: जेएफएफ: समय की नब्ज पकड़ता नए दौर का सिनेमा, पढ़िए पूरी खबरउन्होंने माना कि समाज में अभी भी भारी विसंगतियां हैं, लेकिन उनसे लडऩे के लिए सकारात्मक माहौल भी उसी गति से बन रहा है। इसमें सिनेमा की सबसे अहम भूमिका है। पुरुष मानसिकता वाली हमारी फिल्म इंडस्ट्री अब महिलाओं को भी नायक के रूप में स्वीकारने लगी है। इसलिए लीक से हटकर उन गंभीर विषयों पर भी फिल्में बन रही हैं, दो दशक पूर्व तक निर्माता-निर्देशक जिन्हें छूना भी पसंद नहीं करते थे।यह भी पढ़ें: वर्ष 1917 में अर्जेंटीना ने दी दुनिया की पहली एनिमेटेड फिल्म, जानिए
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