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Panch Prayag History: पंच प्रयाग में होता है इन नदियों का मिलन, पौराणिक कथाओं से जुड़ी है उत्पत्ति की कहानी

Panch Prayag of Uttarakhand भारत में अगर तीर्थनगरी की बात करें तो सबसे पहला नाम उत्तराखंड का आता है। उत्तराखंड गर्मियों से राहत देने वाली जगह भले ही हो लेकिन जब बात धर्म की आती है तो प्राचीन मंदिरों से लेकर पवित्र नदियों की उत्पत्ति यहीं से हुई है।

By Swati SinghEdited By: Swati SinghUpdated: Fri, 02 Jun 2023 04:14 PM (IST)
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पंच प्रयाग में होता है इन नदियों का मिलन, पौराणिक कथाओं से जुड़ी है उत्पत्ति की कहानी
ऋषिकेश, जागरण डिजिटल डेस्क। भारत हमेशा अपनी धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है। देश के हर कोने में हमें धार्मिक स्थल मिल जाएंगे। हमारे पुराण और भव्य मंदिर ये दर्शाते हैं कि हमारी जड़े ही धर्म है। इन्ही जड़ों को मजबूत करती हैं वो नदियां जो आज भी अस्तित्व में है। मां गंगा, भागीरथी, अलकनंदा और न जाने कितनी ऐसी नदियां हैं जिसमें हम आस्था की डुबकी लगाते हैं।

भारत में अगर तीर्थनगरी की बात करें तो सबसे पहला नाम उत्तराखंड का आता है। उत्तराखंड गर्मियों से राहत देने वाली जगह भले ही हो, लेकिन जब बात धर्म की आती है तो प्राचीन मंदिरों से लेकर पवित्र नदियों की उत्तपत्ति यहीं से हुई है। उत्तराखंड अपने धार्मिक स्थलों के लिए जाना जाता है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, हरिद्वार और तुंगनाथ जैसे धार्मिक स्थल यहां पर है। इसके अलावा उत्तराखंड में पांच ऐसी जगहें हैं जो पवित्र है और जहां स्थान करने का सपना हर एक श्रद्धालु का होता है। हम बात कर रहे हैं पंच प्रयाग की। पंच प्रयाग वो पांच स्थान है जहां दो पवित्र नदियों का मिलन होता है और जिसे हम संगम बोलते हैं।

क्या है पंच प्रयाग की पौराणिक कथा

हमारे पुराणों में जिन घटनाओं का वर्णन है उनमें से एक हैं मां गंगा के धरती पर प्रकट होने की कहानी। जब मां गंगा स्वर्ग से धरती पर आई तो उनके तेज प्रवाह को कम करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया। इसके बाद मां गंगा अपने प्रवाह को कम करते हुए उन्हें अलग-अलग हिमालयी क्षेत्र में बहीं।

भगवान शिव की जटाओं से निकलने के बाद गंगा माँ अलग-अलग नदियों के रूप में जैसे भागीरथी, अलकनंदा, विष्णु गंगा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर और मंदाकिनी के नाम से जानी गयी। जिन स्थान पर दो पवित्र नदियों का मिलन हुआ वह स्थान प्रयाग और संगम के नाम से जाना गया। उत्तराखंड में ऐसी पांच जगहें हैं जहां दो नदियों का मिलन होता है। इसी को पंच प्रयाग नाम दिया गया।

उत्तराखंड के पंच प्रयागों का महत्व

सभी पंच प्रयागों को हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है। इन प्रयागों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रयागराज के संगम से तो आप सभी वाकिफ हैं, जहां माघ मेला और कुंभ मेला लगता है। ठीक इसी तरह उत्तराखंड में पांच स्थानों पर दो पवित्र नदियों का मिलन होता है। इसी को पंच प्रयाग के नाम से जाना जाता है।

पौराणिक कथाओं में दो नदियों के संगम का जल बहुत ही पवित्र माना जाता है। विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग ये पांच प्रयाग है, जहां पर स्नान करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। इन तीर्थ स्थलों पर पूर्वजों के मोक्ष के लिए श्राद्ध तर्पण भी किया जाता है।

विष्णुप्रयाग

विष्णुप्रयाग का पंच प्रयागों में से सबसे पहला प्रयाग है। जहां पर अलकनंदा और धौलीगंगा नदी आपस में मिलती हैं। यहां पर श्रद्धालु मोक्ष प्राप्ति के लिए डुबकी लगाने जरूर आते हैं। चार धाम यात्रा के दौरान यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। इस पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु का प्रसिद्ध बद्रीनाथ मंदिर भी है। विष्णुप्रयाग धार्मिक महत्व के साथ-साथ ट्रेकिंग और पैदल यात्रा के लिए भी जाना जाता है।

नंदप्रयाग

उत्तराखंड के पंच प्रयागों में एक नंदप्रयाग भी है। यहां पर अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों का समागम होता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार इस स्थान का नाम श्री कृष्ण के पालक पिता राजा नंद के नाम पर पड़ा है। कथाओं की मानें तो अलकनंदा और मंदाकिनी के संगम स्थल पर राजा नंद ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की पूजा की थी। एक मान्यता ये भी है कि मंदाकिनी को पहले नंदाकिनी कहा जाता था, इसलिए इसका नाम नंद प्रयाग पड़ा। श्रद्धालुओं के लिए यह पावन स्थल हमेशा खुला रहता है।

कर्णप्रयाग

पंच प्रयागों में तीसरे स्थान पर है कर्णप्रयाग। इसी स्थान पर पिंडर ग्लेशियर से निकलने का बाद पिंडर नदी अलकनंदा नदी में मिल जाती है। इसी मिलन के स्थान को कर्णप्रयाग के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं की मानें तो इस क्षेत्र का नाम कर्णप्रयाग महाभारत के योद्धा कर्ण के नाम पर रखा गया है। ये वहीं स्थान है जहां पर कर्ण में कठिन तपस्या करके भगवान सूर्य से कवच और कुंडल प्राप्त किए थे।

रुद्रप्रयाग

ऋषिकेश से कुछ ही दूर पर स्थित रुद्रप्रयाग श्रद्धालुओं के लिए खास स्थान है। रुद्रप्रयाग में अलकनंदा और मंदाकिनी नदी का मिलन होता है। रुद्रप्रयाग की मान्यता काफी खास है क्योंकि यह भगवान शिव से ताल्लुक रखता है। रुद्रप्रयाग का नाम भगवान शिव के दूसरे नाम रूद्र पर रखा गया है। यहां पर शिव जी के प्राचीन मंदिर भी हैं। यहीं पर भगवान शिव का रूदेश्वर नामक लिंग है। खास बात ये है कि ये वहीं स्थान है जहां से केदारनाथ धाम की तीर्थ यात्रा शुरू होती है।

देवप्रयाग

देवप्रयाग अलकनंदा और भागीरथी नदी के संगम पर बसा हुआ शहर है। अगर आप ऋषिकेश जाने का मन बना रहे हैं तो देवप्रयाग जरूर जाएं, क्योंकि यहां से इसकी दूरी मात्र 73 किलोमीटर ही है। देवप्रयाग में डुबकी लगाने के लिए श्रद्धालु यहां भारी संख्या में जुटते हैं। पौराणिक कथाओं की मानें तो ये वही स्थान हैं जहां पर भगवान राम लक्ष्मण ने एक ब्राह्मण यानी की रावण को मारने के बाद प्रायश्चित किया था। यहां पर प्रसिद्ध प्राचीन रघुनाथ मंदिर विराजमान है।

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