जुलूस-प्रदर्शन व शोभायात्राओं के रूप में साढ़े 07 माह में 95 बार रोकी शहर की राह
आइआरसी के मानकों पर गौर करें तो दून में जितना ट्रैफिक है उसके हिसाब से शहर की प्रमुख सड़कें कम से कम फोर-लेन होनी चाहिए। इसलिए सड़कों पर यातायात रेंगकर चलता है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 17 Aug 2019 04:54 PM (IST)
देहरादून, सुमन सेमवाल। इंडियन रोड कांग्रेस (आइआरसी) के मानकों पर गौर करें तो दून में जितना ट्रैफिक है, उसके हिसाब से शहर की प्रमुख सड़कें कम से कम फोर-लेन होनी चाहिए। यही कारण है कि शहर की सड़कों पर यातायात रेंगकर चलता है। अब जब गौर कीजिए ऐसी स्थिति में उन्हीं सड़कों पर कोई जुलूस-प्रदर्शन होने लगे या शोभायात्रा निकाली जाने लगे तो क्या होगा? जाहिर है वाहनों की गति पर ब्रेक लग जाएगा और ऐसी स्थित यदा-कदा नहीं बन रही, बल्कि हर दूसरे या तीसरे दिन सड़कों पर ऐसे हालात पैदा किए जा रहे हैं। दैनिक जागरण की ओर से एकत्र किए गए आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी 2019 से इस अगस्त की 14 तारीख तक 226 दिन में 95 बार हमारी सड़कों ने जुलूस-प्रदर्शन व शोभायात्राओं के रूप में अतिरिक्त जमा झेला है।
सड़कों पर किए गए जुलूस-प्रदर्शन व शोभायात्राओं के आयोजन भी शहर के उन प्रमुख इलाकों में ही हुए, जहां वाहनों का दबाव सर्वाधिक रहता है। इन आयोजनों का समय भी वही रहता है, जब सड़कों पर वाहनों का दबाव अधिक होता है। ऐसा नहीं है कि पुलिस या प्रशासन को दून की सड़कों की क्षमता का भान नहीं। यूं कहें कि वह अपनी सड़कों को और अधिक बेहतर ढंग से जानते हैं। इसके बाद भी व्यस्ततम सड़कों पर तरह-तरह के आयोजनों को अनुमति दिया जाना, अधिकारियों की निर्णय क्षमता पर भी सवाल खïड़े करता है। क्योंकि ऐसे आयोजनों को अनुमति देते समय वह यह भी जानते हैं कि इससे वह आम नागरिकों की समस्या को बढ़ा ही रहे हैं।
दून की सड़कें इस तरह हो रहीं बाधित
- जनवरी 2019
- जुलूस-प्रदर्शन, 15
- धार्मिक-सामाजिक आयोजन, 05
- राजनीतिक प्रदर्शन, 01
- फरवरी 2019
- जुलूस-प्रदर्शन, 04
- धार्मिक-सामाजिक आयोजन, 06
- राजनीतिक प्रदर्शन, 04
- मार्च 2019
- धार्मिक-सामाजिक आयोजन, 04
- राजनीतिक प्रदर्शन, 03
- जुलूस-प्रदर्शन, 01
- अप्रैल 2019
- धार्मिक आयोजन, 08
- सामाजिक प्रदर्शन, 03
- राजनीतिक प्रदर्शन, 01
- मई 2019
- जुलूस-प्रदर्शन, 04
- धार्मिक-सामाजिक आयोजन, 02
- राजनीतिक प्रदर्शन, 01
- जून 2019
- धार्मिक-सामाजिक आयोजन, 04
- जुलूस-प्रदर्शन, 02
- जुलाई 2019
- धार्मिक-सामाजिक आयोजन, 09
- राजनीतिक प्रदर्शन, 06
- जुलूस-प्रदर्शन, 01
- अगस्त 2019 (14 तारीख तक)
- धार्मिक-सामाजिक आयोजन, 05
- जुलूस-प्रदर्शन, 02
जुलूस-प्रदर्शन व धार्मिक आयोजनों की संख्या अधिक
जनवरी से लेकर 14 अगस्त तक सड़कों पर किए गए 95 आयोजनों की बात करें तो इनमें प्रमुख रूप से कार्मिकों, धार्मिक संगठनों व राजनीतिक दलों के जुलूस प्रदर्शन व धार्मिक संगठनों की शोभायात्राओं की संख्या सर्वाधिक है। यह ऐसे आयोजन हैं, जो सड़कों पर सिर्फ प्रदर्शित होते हैं और इनका समापन स्थान विशेष पर होता है। लिहाजा, शहर का हर प्रबुद्ध नागरिक यही मानता है कि इस तरह के आयोजन निश्चित स्थल पर होने चाहिए, न कि सड़कों पर प्रदर्शन के माध्यम से। मान लीजिए कोई कार्मिक या अन्य संगठन सरकार की किसी व्यवस्था से खिन्न है तो वह अपना विरोध संबंधित कार्यालय पर जाकर कर सकता है। इसके लिए अनावश्यक रूप से सड़कों पर जुलूस लेकर चलकर दून की 10 लाख से अधिक की जनता की सुविधा में खलल डालना किसी भी दशा में ठीक नहीं है। इसी तरह धार्मिक कार्यक्रम भी किसी न किसी धार्मिक प्रतिष्ठान से जुड़े होते हैं और वह संपन्न भी वहीं पर होते हैं। यदि धार्मिक संगठनों के पदाधिकारी इस बात को शहर हित में समझ सकें तो ऐसे आयोजन भी प्रतिष्ठान विशेष तक सीमित किए जा सकते हैं। क्योंकि इस प्रदर्शन का धार्मिक भावना से भी कोई लेना-देना नहीं होता और धार्मिक भावनाएं सड़कों की जगह संबंधित प्रतिष्ठान से ही जुड़ी होती हैं।
विरोध-प्रदर्शन और भी होते हैं, मगर सड़क पर नहीं
आंकड़ों पर नजर डालें तो लगभग रोजाना ही तमाम कार्यालयों में विरोध-प्रदर्शन किए जाते हैं। हालांकि, शुक्र है कि तमाम कार्मिक व अन्य संगठनों सड़कों पर उतरने की जगह संबंधित कार्यालय पर ही अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं। यदि ये भी सड़कों पर उतर जाएं तो क्या होगा, मगर ऐसा नहीं होता है और इनसे दूसरे संगठनों को भी सीख लेनी चाहिए। किसी अव्यवस्था के खिलाफ या अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना गलत भी नहीं है, मगर सड़कों पर उतरना भी कोई समाधान नहीं। क्योंकि इससे सिर्फ दूसरे नागरिकों की समस्या बढ़ जाती है।खुद से सवाल पूछें संगठनों के पदाधिकारीमुख्य सड़कों पर सड़कों पर जुलूस-प्रदर्शन व शोभायात्राओं आदि का आयोजन करने करने वाले संगठनों के पदाधिकारियों को शहर के जाम को लेकर खुद से सवाल करना चाहिए। वह स्वयं से पूछें कि जब किसी अन्य संगठन के आयोजन से लगने वाले जाम का वह सामना करते हैं, तब उन्हें कैसा लगता है। क्योंकि दूसरे संगठन के जुलूस-प्रदर्शन व धार्मिक आयोजन से जब जाम लगता है तो वह जरूर इसके लिए उन्हें कोसते होंगे। यह मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति भी है। मगर, यह स्थिति आदर्श नहीं है। क्योंकि आदर्श स्थिति वह होती है, जब हम अपनी पीड़ा के हिसाब से तय करेंगे कि दूसरे को भी यही परेशानी होती होगी। जब सभी लोग इस बात पर चलने लगेंगे तो कोई भी मुख्य सड़कों पर किसी भी तरह के आयोजन करने की सलाह नहीं देगा।यातायात का प्लान तैयार होता है, मगर उसका लाभ नहीं मिलतासड़कों पर शोभायात्राओं, जुलूस-प्रदर्शन के दौरान पुलिस अपनी तरफ से लोगों की परेशानी कम करने के प्रयत्न करती है। ट्रैफिक प्लान भी बनाए जाते हैं। रूट डायवर्ट किए जाते हैं। यह बात और है कि वाहनों से खचाखच भरी सड़कों पर सारे प्रयोग फेल हो जाते हैं, क्योंकि यातायात का दबाव तो वही रहता है। बेशक एक सड़क पर वाहनों की संख्या कम हो जाता है, लेकिन अन्य सड़क पर यह दबाव दोगुना हो जाता है। मुख्य सड़कों पर आयोजनों को अनुमति देने से पहले पुलिस व प्रशासन को यह समझना होगा कि वहां व्यस्ततम समय में पहले ही ट्रैफिक क्षमता से अधिक रहता है।मुख्य सड़कों पर व्यस्ततम समय में यातायात
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- सहारनपुर रोड-------------4800 से 5000
- गांधी रोड-------------4800 से 5200
- राजपुर रोड-------------5000 से 5200
- चकराता रोड-------------4400 से 4800
- हरिद्वार रोड-------------4500 से 4800
- हरिद्वार बाईपास रोड-5000 से 5500
- प्रमुख अंदरूनी मार्ग-3500 से 4000
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