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    Joshimath Sinking: दरारों का भूगर्भ की स्थिति से होगा मिलान, इसके बाद उपचार या पुनर्वास पर स्थिति होगी साफ

    By Suman semwalEdited By: Nirmala Bohra
    Updated: Sun, 15 Jan 2023 10:23 AM (IST)

    Joshimath Sinking जोशीमठ के भविष्य को लेकर स्पष्ट राय कायम करने के लिए धरातलीय अध्य्यन पर अधिक फोकस किया जा रहा है। यदि भूगर्भ और सतह की दरारों में भिन्नता पाई गई तो दोबारा से अध्ययन किया जाएगा।

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    Joshimath Sinking: धरातलीय अध्य्यन पर अधिक फोकस किया जा रहा है।

    सुमन सेमवाल, देहरादून: Joshimath Sinking: जोशीमठ में भूधंसाव की स्थिति वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान समेत इसरो की दो अलग-अलग एजेंसी सेटेलाइट चित्रों के माध्यम से बयां कर चुकी है।

    नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर हैदराबाद की ओर से शुक्रवार को जारी किए गए सेटेलाइट चित्रों में महज 12 दिन में 5.4 सेंटीमीटर जमीन खिसकने की जानकारी दी गई है। हालांकि, केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न एजेंसियां इसे किसी भी परिणाम के रूप में मानने से अभी परहेज कर रही हैं।

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    सतह पर उभरी दरारों और भूगर्भ की स्थिति का होगा मिलान

    जोशीमठ के भविष्य को लेकर स्पष्ट राय कायम करने के लिए धरातलीय अध्य्यन पर अधिक फोकस किया जा रहा है। यही वजह है कि राज्य सरकार के निर्देश पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानी सतह पर उभरी दरारों और भूगर्भ की स्थिति का मिलान कराने जा रहे हैं।

    वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक डा कालाचांद साईं के मुताबिक भूधंसाव को लेकर स्पष्ट धारणा विकसित करने के लिए जोशीमठ में ''जियोफिजिकल सर्वे आफ सिस्मिक मानिटरिंग'' नामक अध्ययन शुरू किया गया है।

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    इसके तहत जमीन के 50 से 100 मीटर नीचे तक कि स्थिति का पूरा आकलन किया जा रहा है। इसमें देखा जाएगा कि धरातल पर जहां-जहां दरारें उभरी हैं, वहां भूगर्भ में भी वैसा ही बदलाव देखने को मिल रहा है या नहीं।

    यदि भूगर्भ और सतह की दरारों में भिन्नता पाई गई तो दोबारा से अध्ययन किया जाएगा। यदि फिर भी सतह की दरारों के अनुसार भूगर्भ में बदलाव नहीं पाया गया तो यह माना जाएगा कि सतह में दिख रहा बदलाव भूगर्भ को प्रभावित नहीं कर रहा है।

    उपचार या पुनर्वास पर भी स्थिति साफ हो सकेगी

    यदि दरारों के मुताबिक भूगर्भ की स्थिति पाई जाती है तो यह निष्कर्ष निकलेगा की जोशीमठ की जमीन भूगर्भ में भी खतरनाक संकेत दे रही है।

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    इस अध्ययन के बाद जोशीमठ में भूधंसाव की दशा-दिशा पर स्पष्ट राय कायम की जा सकेगी। साथ ही इसके माध्यम से उपचार या पुनर्वास पर भी स्थिति साफ हो सकेगी। यह अध्ययन जनवरी माह के अंत तक पूरा कर दिया जाएगा।

    धरातल पर स्थिति स्पष्ट करनी जरूरी: आइआइआरएस

    इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग (आइआइआरएस) के निदेशक आरपी सिंह भी वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के धरातलीय अध्ययन से सहमत हैं। उन्होंने कहा कि जोशीमठ में भूधंसाव को लेकर विभिन्न एजेंसी अलग-अलग तरीके से अध्ययन में जुटी हैं।

    हालांकि, ताजा हालात के मुताबिक धरातल पर स्पष्ट राय कायम की जानी जरूरी है। दरारों का भूगर्भ से आकलन कराना जरूरी है। इसी के बाद सरकार को आगे की दिशा तय करने में मदद मिल सकेगी।