जोशीमठ में क्यों हो रहा भूधंसाव? 1976 से आई हर रिपोर्ट में जताई खतरे की आशंका, लेकिन नहीं हुआ अमल
Joshimath Sinking वर्ष 1976 में तत्कालीन गढ़वाल मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की कमेटी गठित की गई। विज्ञानियों ने जोशीमठ पर मंडराते खतरे को लेकर हर बार आगाह किया लेकिन इसके बाद जियो टेक्निकल व जियो फिजिकल अध्ययन कराने की ओर से आंखें फेर ली गईं।
By Jagran NewsEdited By: Nirmala BohraUpdated: Mon, 09 Jan 2023 12:54 PM (IST)
राज्य ब्यूरो, देहरादून: Joshimath Sinking: जोशीमठ में भूधंसाव क्यों हो रहा है, इसके ठोस कारणों का पता लगाने को लेकर एक बार फिर से विज्ञानियों को मोर्चे पर लगाया गया है, लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह कि पिछले 47 सालों में जो रिपोर्ट आईं, उन कितना अमल हुआ।
इस अवधि में पांच बार इस क्षेत्र का विज्ञानियों की संयुक्त टीम से सर्वे कराया गया, पर विडंबना यह कि विज्ञानियों की संस्तुतियां सरकारी फाइलों से बाहर नहीं निकल पाईं।
विज्ञानियों ने जोशीमठ पर मंडराते खतरे को लेकर हर बार आगाह किया, लेकिन इसके बाद जियो टेक्निकल व जियो फिजिकल अध्ययन कराने की ओर से आंखें फेर ली गईं। इसके चलते उपचारात्मक कार्य नहीं हो पाए और आज स्थिति सबके सामने है।
पूर्व में अलकनंदा नदी की बाढ़ से हुआ था भूकटाव
पुराने भूस्खलन क्षेत्र में बसे जोशीमठ में पूर्व में अलकनंदा नदी की बाढ़ से भूकटाव हुआ था। साथ ही घरों में दरारें भी पड़ी थीं। इसे देखते हुए वर्ष 1976 में तत्कालीन गढ़वाल मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की कमेटी गठित की गई।
18 सदस्यीय मिश्रा कमेटी ने क्षेत्र का गहनता से अध्ययन कर जोशीमठ शहर पर मंडराते खतरे को लेकर सचेत किया। साथ ही वहां पानी की निकासी की पुख्ता व्यवस्था करने समेत अन्य कई कदम उठाने की संस्तुतियां की।
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इसके बाद वर्ष 2006 में डा सविता की अध्ययन रिपोर्ट, वर्ष 2013 की जल प्रलय के बाद उत्पन्न स्थिति की रिपोर्ट और वर्ष 2022 में विशेषज्ञों की टीम की रिपोर्ट में जोशीमठ पर मंडराते खतरे का उल्लेख किया गया। साथ ही ड्रेनेज सिस्टम, निर्माण कार्यों पर नियंत्रण समेत अन्य कदम उठाने की संस्तुतियां की।
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वर्ष 1976 से लेकर 2022 तक चार रिपोर्ट आने के बावजूद इनकी संस्तुतियों के आलोक में जोशीमठ क्षेत्र का भूगर्भीय सर्वेक्षण, भूमि की पकड़, धारण क्षमता, पानी के रिसाव के कारण समेत अन्य बिंदुओं के दृष्टिगत जियो टेक्निकल, जियो फिजिकल, हाइड्रोलाजिकल जैसे अध्ययन कराने की जरूरत नहीं समझी गई। परिणामस्वरूप दीर्घकालिक उपचारात्मक कार्य शुरू नहीं हो पाए। जोशीमठ में जब पानी सिर से ऊपर बहने लगा तो हाल में विज्ञानियों की टीम ने दोबारा सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपी है, जिसमें सुझाए गए बिंदुओं के आधार पर सरकार ने कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।यह भी पढ़ें: Joshimath: वर्ष 1970 से शुरू हुआ था तबाही का सिलसिला, अलकनंदा में आई भीषण बाढ़ के बाद दिखीं थी घरों पर दरार इसमें नामी संस्थानों से जांच व अध्ययन में सहयोग लेने की तैयारी है। फिर इसके आधार पर उपचारात्मक कदम उठाए जाएंगे। जानकारों का कहना है कि यदि ये सब कदम यदि पूर्व में आई रिपोर्ट के बाद ही उठाए जाते तो आज जोशीमठ में ऐसी नौबत नहीं आती।विज्ञानियों की राय में जोशीमठ आपदा के प्रमुख कारण
- पुराने भूस्खलन क्षेत्र में मलबे के ढेर (लूज मटीरियल) पर बसा होना
- ड्रेनेज की व्यवस्था न होने के कारण जमीन के भीतर पानी का रिसाव
- शहर व आसपास के क्षेत्रों में नालों का चैनलाइजेशन व सुदृढ़ीकरण न होना
- अलकनंदा नदी से हो रहे कटाव की रोकथाम के लिए कदम न उठाना
- धारण क्षमता के अनुरूप निर्माण कार्यों को नियंत्रित न किया जाना
- 47 साल पहले चेताने के बाद भी विज्ञानियों के सुझावों पर अमल न करना