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Joshimath Sinking: जोशीमठ के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा, जीएसआई ने पाई 42 नई दरारें; खतरे में जिंदगियां

Joshimath Sinking हालिया अध्ययन में संस्थान के विज्ञानियों ने पाया कि जोशीमठ में कुल 81 दरारों में से 42 दरारें नई हैं जोकि दो जनवरी 2023 से पूर्व की हैं। हालांकि रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया है कि दरारों की स्थिति अब स्थिर है। 42 नई दरारों में से अधिकांश सुनील गांव मनोहर बाग सिंहधार और मारवाड़ी क्षेत्र में हैं।

By Jagran NewsEdited By: Swati SinghUpdated: Mon, 25 Sep 2023 02:08 PM (IST)
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Joshimath Sinking: जोशीमठ के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा, जीएसआई ने पाई 42 नई दरारें

देहरादून, सुमन सेमवाल। जोशीमठ में भूधंसाव के असल कारणों की पड़ताल और समाधान सुझाने के लिए सरकार ने जो जिम्मेदारी विभिन्न विज्ञानी संस्थानों को सौंपी थी, उनकी रिपोर्ट अब सार्वजनिक कर दी गई है।

जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (जीएसआइ) की जांच रिपोर्ट पर गौर करें तो विज्ञानियों ने भूधंसाव की स्थिति के इतिहास और वर्तमान दोनों ही परिस्थितियों पर विस्तृत अध्ययन किया है।

हालिया अध्ययन में संस्थान के विज्ञानियों ने पाया कि कुल 81 दरारों में से 42 दरारें नई हैं, जोकि दो जनवरी 2023 से पूर्व की हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया है कि दरारों की स्थिति अब स्थिर है।

ढाल व भवनों की स्थिति

एनडीआरआई व वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की भांति इस बात का उल्लेख किया है कि जोशीमठ का भूभाग पुरातन भूस्खलन के ढेर पर बसा है। इसमें ढीले मलबे के साथ विशाल बोल्डर भी हैं। ये बोल्डर ढालदार क्षेत्र में ढीले मलबे में धंसे हैं।

दूसरी तरफ इसी भूभाग पर समय के साथ शहरीकरण का अनियंत्रित भार भी पड़ा है, जिसके चलते भूधंसाव की जो प्रवृत्ति कई दशक से गतिमान थी, उसमें आंशिक तेजी आ गई है।

जीएसआइ ने पाईं 42 नई दरारें

42 नई दरारों में से अधिकांश सुनील गांव, मनोहर बाग सिंहधार और मारवाड़ी क्षेत्र में हैं। इन्हें 50 से 60 मीटर बड़े भूभाग पर अधिक देखा जा सकता है। जीएसआइ की रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ का अधिकांश भूभाग ढालदार है।

यहां 11 प्रतिशत भूभाग 45 डिग्री से अधिक ढाल वाला है, जबकि आठ प्रतिशत भूभाग 40 से 45 डिग्री ढाल वाला है। अधिक ढाल वाले क्षेत्रों में भारी निर्माण से खतरा बना रहेगा।

सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में जोशीमठ की स्थिति

सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने जोशीमठ के ढाल और भवनों की सुरक्षा को एकदूसरे से सीधे तौर पर जोड़ा है। विज्ञानियों के मुताबिक, ढालदार क्षेत्रों में भवन निर्माण में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है। हालांकि, अब तक की स्थिति में ऐसी सावधानी नहीं पाई गई। रिपोर्ट के मुताबिक 31 प्रतिशत भवन 30 डिग्री से अधिक ढाल पर पाए गए हैं।

जीएसआई ने भी नकारा टनल का सीधा संबंध

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के विज्ञानियों ने भी एनआइएच रुड़की की तरह परियोजना की टनल से भूधंसाव के सीधे संबंध को नकारा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि टनल से जोशीमठ के प्रभावित क्षेत्र की दूरी को देखते हुए भी इसको समझना मुश्किल है। क्योंकि, प्रभाव वाला क्षेत्र टनलिंग से अधिक शहर के विस्तार की ओर अधिक ध्यान आकर्षित करता है। टनल के लिए टनल बोरिंग मशीन से खोदाई की गई व इसमें विस्फोट नहीं किया जाता है।

नृसिंह मंदिर परिसर पर हालिया घटना का असर नहीं

जीएसआइ के विज्ञानियों ने जांच में पाया कि भूधंसाव कि हालिया घटना का असर नृसिंह मंदिर परिसर में नहीं पाया गया है। इसके नीचे के भूभाग पर एक पुराना निशान जरूर देखने को मिलता है और यह भी स्थिर है। बाहरी क्षेत्र की तरफ सीढ़ियों और दीवारों पर जो दरारें दिखाई देती हैं, वह भी पुरानी हैं। यही कारण है कि मंदिर से सटे क्षेत्रों में लोग रह रहे हैं।

जोशीमठ में ढाल की स्थिति

सात मैग्नीट्यूड से अधिक के भूकंप की आशंका

विज्ञानियों ने कहा है कि जोशीमठ भूकंप के अति संवेदनशील जोन पांच में आता है। यहां सात मैग्नीट्यूड से अधिक क्षमता के भूकंप का खतरा हमेशा बना है। भूकंप जैसी घटनाएं भी कमजोर और अत्यधिक भार वाले भूभाग के लिए खतरनाक साबित होती हैं।

क्या कहती है सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट?

सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में किया उल्लेख है कि मौजूदा हालात में सिर्फ 37 प्रतिशत भवन दुरुस्त बताए गए हैं। जोशीमठ जैसे ढालदार क्षेत्र में भवन निर्माण में मानकों की अनदेखी खतरनाक, संबंधित क्षेत्र पुराने मलबे के ढेर पर बसा हुआ है।

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