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Joshimath Sinking : जोशीमठ में भूधंसाव के कारणों की पता लग गई सच्चाई; जांच रिपोर्ट को किया गया सार्वजनिक

विज्ञानियों के मुताबिक भूधंसाव भूजल की एक आम भूयांत्रिक और बहू-तकनीकी परिणामों में से एक है। यह धंसाव कुछ सेंटीमीटर से लेकर कुछ मीटर तक हो सकता है। इस प्रकरण में यह 14.5 मीटर तक पाया गया है। क्योंकि जोशीमठ के भूगोल के साथ अपनी एक खामी पहले से विद्यमान है। क्योंकि पूरा क्षेत्र पहाड़ी ढलान के बीच एक पुरातन भूस्खलन के भंडार पर बसा है।

By Suman semwalEdited By: Mohammed AmmarUpdated: Sat, 23 Sep 2023 08:18 PM (IST)
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Joshimath Sinking : जोशीमठ में भूधंसाव के कारणों की पता लग गई सच्चाई; जांच रिपोर्ट को किया गया सावर्जनिक

सुमन सेमवाल, देहरादूनः जोशीमठ में भूधंसाव कई स्थिति को लेकर नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआइ) हैदराबाद की विस्तृत जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ में भूधंसाव की जो स्थिति सतह के ऊपर नजर आ रही है, वह जमीन के भीतर भी पाई गई है। अध्ययन में जोशीमठ के एक बड़े भूभाग को 20 से 30 मीटर तक की गहराई में उच्च जोखिम वाले जोन में दर्शाया गया है।

एनजीआरआइ की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ में भूधंसाव वाले क्षेत्रों को उच्च जोखिम और मध्यम जोखिम के दो जोन में बांटा गया है। इस जोनिंग के मुताबिक जोशीमठ के प्रमुख क्षेत्र (करीब 30 प्रतिशत) को 20 से 30 मीटर तक की गहराई में भूधंसाव के प्रमाण मिले हैं।

लिहाजा, इस भाग को उच्च जोखिम वाला बताया गया है। इस जोन में एक छोटा भाग बदरीनाथ रोड का भी बताया गया है। इसके अलावा जमीन के भीतर, जहां 15 मीटर तक गहराई में भूधंसाव के प्रमाण मिले हैं, करीब 20 प्रतिशत भाग है।

13 माह में छह सेंटीमीटर खिसके जोशीमठ के ढाल

एनजीआरआइ की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरमुखी जोशीमठ में ढाल और बोल्डर एक ही दिशा में झुक रहे हैं और इसी के अनुरूप खिसक या धंस रहे हैं। अध्ययन में बताया है कि दिसंबर 2022 से जनवरी 2023 के बीच यह पूरा क्षेत्र छह सेंटीमीटर से अधिक खिसका है।

जमीन पर इसका असर कुछ जगह एक मीटर तक के अंतर के रूप में भी दिखा है। धंसाव की यह स्थिति लंबाई व ऊंचाई दोनों तरह से देखने को मिली है। नालों और जलधाराओं के निकट जोखिम अधिक पाया गया है। इसके चलते कई धाराएं गायब हो गईं या उन्होंने अपना रुट बदल दिया।

एनटीपीसी की साइट और जेपी कालोनी के पानी में भिन्नता

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) ने शनिवार को नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलॉजी (एनआईएच) की रिपोर्ट को भी सार्वजनिक किया। इसमें जेपी कालोनी और जोशीमठ के अन्य क्षेत्रों में फूटे पानी के स्रोत के साथ ही जलविद्युत परियोजना का निर्माण कर रही एनटीपीसी की साइट के पानी के परीक्षण के तथ्य शामिल हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक जेपी कालोनी में तेज बहाव के साथ फूटे झरने की उत्पत्ति सुनील वन और औली क्षेत्र को बताया गया है। पानी के आइसोटोप्स की जांच में पाया गया गया एनटीपीसी की साइट व जेपी साइट व जोशीमठ के अन्य क्षेत्र के स्रोत के पानी में भिन्नता है।

ऐसी संभावना व्यक्त की गई है कि जमीन के भीतर किसी अवरोध के कारण कहीं पर पानी का अस्थाई भंडार तैयार हो गया। जो किसी दबाव के कारण फट गया और कमजोर सतह वाले भाग से बाहर झरने के रूप में फुट पड़ा। मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भंडारण 10.66 मिलियन लीटर का होगा और इसे जमा होने में 12 से 15 माह का समय लगा होगा।

पूर्व के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022 में 24 घंटे के भीतर जोशीमठ क्षेत्र में 190 मिलीमीटर की वर्षा रिकार्ड की गई थी। यह भी भंडारण का एक कारण हो सकता है।

वैज्ञानियों के मुताबिक भूधंसाव भूजल की एक आम भूयांत्रिक और बहू-तकनीकी परिणामों में से एक है। यह धंसाव कुछ सेंटीमीटर से लेकर कुछ मीटर तक हो सकता है। इस प्रकरण में यह 14.5 मीटर तक पाया गया है। क्योंकि, जोशीमठ के भूगोल के साथ अपनी एक खामी पहले से विद्यमान है। क्योंकि, पूरा क्षेत्र पहाड़ी ढलान के बीच एक पुरातन भूस्खलन के भंडार पर बसा है।

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