क्या होती है Kanwar Yatra और क्या है इसका इतिहास? पढ़ें... यात्रा के कठोर नियम सहित कई अदृभुत तथ्य
Kanwar Yatra 2023 हर वर्ष की तरह इस बार भी हरिद्वार और ऋषिकेश में दूसरे राज्यों के कांवड़ यात्री पहुंचेंगे और गंगा जलभर कर भगवान शिव का जलाभिषेक करेंगे। भगवान शिव के प्रसन्न करने का पर्व आगामी चार जुलाई से शुरू हो रहा है।
By Nirmala BohraEdited By: Nirmala BohraUpdated: Tue, 20 Jun 2023 03:42 PM (IST)
टीम जागरण, देहरादून : Kanwar Yatra 2022 : इस वर्ष भगवान शिव के प्रसन्न करने का पर्व आगामी चार जुलाई से शुरू हो रहा है। इसके साथ ही हरिद्वार सहित पूरी देवभूमि केसरिया रंग में नजर आएगी। हर वर्ष की तरह इस बार भी हरिद्वार और ऋषिकेश में दूसरे राज्यों के कांवड़ यात्री पहुंचेंगे और गंगा जलभर कर भगवान शिव का जलाभिषेक करेंगे।
लेकिन क्या आपको कांवड़ यात्रा के इतिहास के बारे में जानकारी है? क्या आपको पता है कि यह यात्रा कितनी कठोर होती है? नहीं, तो आज हम आपको कांवड़ यात्रा के कुछ ऐसे ही रोचक तथ्य बताने जा रहे हैं...
यह है मान्यता
मान्यता है कि जब समुद्रमंथन के बाद निकले विष पान कर भगवान शिव ने दुनिया की रक्षा की थी। विषपान करने से उनका कंठ नीला पड़ गया था। कहते हैं इसी विष के प्रकोप को कम करने और उसके प्रभाव को ठंडा करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है। इस जलाभिषेक से प्रसन्न होकर भगवाना भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।'कांवड़' (Kanwar) का अर्थ
- कंधे पर गंगाजल लेकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों पर जलाभिषेक करने की परंपरा कांवड़ यात्रा कहलाती है।
- वहीं आनंद रामायण में भी यह उल्लेख किया गया है कि भगवान राम ने भी कांवड़िया बनकर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था।
- कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ यात्री वही गंगाजल लेकर शिवालय तक जाते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
कैसे बनती है कांवड़ (Kanwar)
- हरिद्वार में कई जगह कांवड़ तैयार की जाती है।
- कांवड़ बनाने में बांस, फेविकोल, कपड़े, डमरू, फूल-माला, घुंघरू, मंदिर, लोहे का बारीक तार और मजबूत धागे का प्रयोग किया जाता है।
- कांवड़ तैयार होने के बाद उसे फूल-माला, घंटी और घुंघरू से सजाया जाता है।
- इसके बाद गंगाजल का भार पिटारियों में रखा जाता है।
- धूप-दीप जलाकर बम भोले के जयकारों ओर भजनों के साथ कांवड़ यात्री जल भरने आते हैं और भगवान शिव को जला जढ़ाकर प्रसन्न होते हैं।
कांवड़ यात्रियों (Kanwariya) के लिए नियम
- बिना नहाए कांवड़ को नहीं छूते
- तेल, साबुन, कंघी का प्रयोग नहीं करते
- सभी कांवड़ यात्री एक-दूसरे को भोला या भोली कहकर बुलाते हैं
- ध्यान रखना होता है कि कांवड़ जमीन से न छूए
- डाक कांवड़ यात्रा में शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैं
चार प्रकार से की जाती है यात्रा (Kanwar Yatra)
सामान्य कांवड़ : इसमें यात्री जहां चाहे रुककर आराम कर सकते हैं। लेकिन उन्हें एक खास बात का ध्यान रखना होता है। आराम करने के दौरान कांवड़ जमीन से नहीं छूनी चाहिए। इस दौरान कांवड़ स्टैंड पर रखी जाती है।
डाक कांवड़ : इसमें यात्री शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक बगैर रुके लगातार चलते रहते हैं। वहीं इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं वर्जित होती हैं।
खड़ी कांवड़ : इसमें भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता रहता है।दांडी कांवड़ : इसमें भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल यात्रा होती है, जिसमें कई दिन और कभी-कभी एक माह का समय तक लग जाता है।
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