Kargil Vijay Diwas: पिता के बलिदान से हौसला पाकर बेटा बना फौजी, मां ने जांबाज बेटे का बनवाया मंदिर
Kargil Vijay Diwas 2024 वीर भूमि उत्तराखंड का इतिहास जांबाजी के किस्सों से भरा पड़ा है और इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है बलिदानियों के परिवार की युवा पीढ़ी। दून के बलिदानी हीरा सिंह के सबसे छोटे बेटे धीरेंद्र ने भी पिता की तरह फौज की राह चुनी है। वहीं दून का एक ऐसा भी परिवार है जिसने अपने जिगर के टुकड़े की स्मृति में मंदिर बनाया है।
जागरण संवाददाता, देहरादूनः Kargil Vijay Diwas: वीर भूमि उत्तराखंड का इतिहास जांबाजी के किस्सों से भरा पड़ा है और इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है बलिदानियों के परिवार की युवा पीढ़ी। प्रदेश में बलिदानियों के परिवार के युवा पिता के बलिदान को सलाम कर खुद भी सेना में पदार्पण कर चुके हैं।
दून के बालावाला निवासी बलिदानी हीरा सिंह का परिवार भी इन्हीं में से एक है। इस परिवार के सबसे छोटे बेटे धीरेंद्र ने भी पिता की तरह फौज की राह चुनी और वर्तमान में नायक पद पर जम्मू कश्मीर में तैनात हैं।
अकेले तीन बेटों की परवरिश की
कारगिल युद्ध के दौरान लांसनायक हीरा सिंह नागा रेजीमेंट में तैनात थे और 30 मई 1999 को कारगिल में उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। पति के जाने के बाद वीरांगना गंगी देवी के लिए अकेले तीन बेटों की परवरिश करना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।मूलरूप से चमोली जिले के देवाल गांव का यह परिवार वर्ष 2000 में यहां बालावाला में आकर बस गया। बलिदानी हीरा सिंह का बड़ा बेटा वीरेंद्र नया गांव पेलियो में गैस एजेंसी चला रहा है।मंझला बेटा सुरेंद्र भी उनका हाथ बंटाता है। जबकि, छोटा बेटा धीरेंद्र ने फौज में है। धीरेंद्र ने 12वीं की परीक्षा का बस एक ही पेपर दिया था कि तभी सेना की भर्ती रैली आयोजित हुई। धीरेंद्र ने पिता की ही तरह देश सेवा को अपना फर्ज समझते हुए फौज को चुना। यह नौजवान कुमाऊं रेजीमेंट का हिस्सा बन गया।
धीरेंद्र को फौजी वर्दी पहने काफी वक्त गुजर चुका है। वह उसी सरहद पर तैनात रहे, जहां कभी पिता ने सर्वोच्च बलिदान दिया था। तकरीबन तीन साल तक कारगिल क्षेत्र में ड्यूटी की। धीरेंद्र की पत्नी मालती बताती हैं कि पति बार्डर पर होते हैं तो एक डर बना रहता है, लेकिन सास बहुत हिम्मत वाली हैं।उन्हें देखकर मन में साहस भर जाता है। वह कहती हैं कि उन्हें पति के सेना में होने पर गर्व है। उनकी दो बेटियां हैं। बड़े भाई वीरेंद्र के बेटे अक्की और लक्की भी चाचा की तरह ही सेना में जाना चाहते हैं। मां गंगी देवी कहती हैं कि उनके परिवार की यह परंपरा आगे बढ़े, इससे बड़े गौरव की बात उनके लिए क्या होगी।
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