Kedarnath Assembly Bypoll: केदारनाथ क्षेत्र के सर्द मौसम में अब घुलेगी राजनीतिक गर्माहट, तैयारियों में जुटी भाजपा-कांग्रेस
केदारनाथ सीट भाजपा विधायक शैलारानी रावत के निधन के कारण रिक्त हुई है। ऐसे में भाजपा के सामने इसे अपने पास बनाए रखने की चुनौती है। यद्यपि कुछ समय पहले हुए बदरीनाथ व मंगलौर सीटों के उपचुनाव में भाजपा को सफलता नहीं मिल पाई लेकिन संतोष करने के लिए यह बात थी कि ये सीटें पहले भी उसके पास नहीं थीं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। विधानसभा की रिक्त चल रही केदारनाथ सीट के उपचुनाव का कार्यक्रम घोषित होने के साथ ही राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। यह सीट जहां भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है तो कांग्रेस भी जीत के लिए मैदान में डट चुकी है। ऐसे में आने वाले दिनों में केदारनाथ क्षेत्र के सर्द मौसम में राजनीतिक गर्माहट खूब घुलेगी।
केदारनाथ सीट भाजपा विधायक शैलारानी रावत के निधन के कारण रिक्त हुई है। ऐसे में भाजपा के सामने इसे अपने पास बनाए रखने की चुनौती है। यद्यपि, कुछ समय पहले हुए बदरीनाथ व मंगलौर सीटों के उपचुनाव में भाजपा को सफलता नहीं मिल पाई, लेकिन संतोष करने के लिए यह बात थी कि ये सीटें पहले भी उसके पास नहीं थीं। यह बात अलग है कि मंगलौर में भाजपा का प्रदर्शन पहली बार दमदार रहा और वह दूसरे स्थान पर रही। वहीं, बदरीनाथ में हार के लिए प्रत्याशी चयन को लेकर पार्टी कैडर में नाराजगी जैसे कारण गिनाए जा सकते हैं।
भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी केदारनाथ सीट
बदरीनाथ सीट के उपचुनाव के परिणाम से सबक लेते हुए भाजपा ने केदारनाथ सीट रिक्त होते ही वहां मोर्चा संभाल लिया था। वैसे भी केदारनाथ सीट से प्रधानमंंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम जुड़ा है। केदारनाथ धाम का पुनर्निर्माण प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है। इसके फलस्वरूप केदारपुरी नए कलेवर में निखर चुकी है। ऐसे में प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी इस सीट को अपने पाए बनाए रखने की चुनौती भाजपा के सामने है। इसे देखते हुए उसने अपनी चुनावी रणनीति में डबल इंजन के दम समेत तमाम पहलुओंं को समाहित किया है।कांग्रेस जीत के लिए रही पूरा जोर
उधर, कांग्रेस की बात करें तो वह मंगलौर व बदरीनाथ सीटों के उपचुनाव में मिली जीत से उत्साहित है। यद्यपि, हरियाणा में कांग्रेस को मिली हार से उसे झटका भी लगा है, लेकिन केदारनाथ सीट को लेकर वह भी ऐडी-चोटी का जोर लगाए हुए है। उसकी उम्मीद केंद्र एवं राज्य सरकारों की एंटी इनकंबेंसी पर टिकी है। उसे उम्मीद है कि यह फैक्टर उसकी जीत की राह सुगम बनाएगा। ये बात अलग है कि पार्टी में अंतर्कलह और संसाधनों की कमी से पार पाने की चुनौती भी होगी।
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