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डीजीआरई चंडीगढ़ ने सौंपी Kedarnath Avalanche की जांच रिपोर्ट, विज्ञानियों द्वारा दिए गए तीन बड़े सुझाव

Kedarnath Avalanche केदारनाथ धाम के ठीक ऊपर चौराबाड़ी ग्लेशियर के आसपास 22 सितंबर और फिर एक अक्टूबर को हिमस्खलन हुआ। डीजीआरई (रक्षा भू-संरचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान) चंडीगढ़ ने शासन को हिमस्खलन पर अपनी अध्ययन रिपोर्ट सौंप दी है।

By Jagran NewsEdited By: Nirmala BohraUpdated: Sat, 29 Oct 2022 09:23 AM (IST)
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Kedarnath Avalanche : 22 सितंबर और फिर एक अक्टूबर को हुआ था हिमस्खलन।

राज्य ब्यूरो, देहरादून: Kedarnath Avalanche : केदारनाथ क्षेत्र में ग्लेशियर की निरंतर निगरानी की जानी चाहिए। इसके लिए वहां सेंसर लगाए जा सकते हैं। केदारनाथ धाम के ऊपरी हिस्से में हाल में हुई हिमस्खलन की घटनाओं को लेकर डीजीआरई (रक्षा भू-संरचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान) चंडीगढ़ ने शासन को सौंपी अपनी अध्ययन रिपोर्ट में यह संस्तुति की है।

इससे पहले राज्य सरकार द्वारा गठित विज्ञानियों की टीम भी अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप चुकी है। इसमें केदारनाथ के ऊपरी क्षेत्र में हिमस्खलन की घटनाओं को सामान्य बताया गया है। साथ ही यहां के उत्तरी छोर की ढलानों को अस्थिर व सक्रिय बताते हुए वहां किसी भी प्रकार के निर्माण न होने देने की संस्तुति की गई है।

यद्यपि, इस क्षेत्र में वर्तमान में किसी प्रकार का निर्माण नहीं है। आपदा प्रबंधन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार जिस क्षेत्र में हिमस्खलन हुआ, वहां से केदारनाथ मंदिर की दूरी पांच से छह किमी है। वैसे भी केदारनाथ में मास्टर प्लान के अनुरूप पुनर्निर्माण कार्य चल रहे हैं और इन पर विशेषज्ञों की संस्तुतियों का असर नहीं पड़ेगा।

22 सितंबर और फिर एक अक्टूबर को हिमस्खलन हुआ था

केदारनाथ धाम के ठीक ऊपर चौराबाड़ी ग्लेशियर के आसपास 22 सितंबर और फिर एक अक्टूबर को हिमस्खलन हुआ। यद्यपि, इन घटनाओं से किसी प्रकार की क्षति नहीं हुई, लेकिन जून 2013 की जलप्रलय झेल चुकी केदारपुरी सहम सी गई थी।

इसके बाद सरकार ने भी तत्काल कदम उठाते हुए हिमस्खलन की इन घटनाओं के अध्ययन के मद्देनजर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान के पांच विज्ञानियों की टीम गठित की। इसके अलावा डीजीआरई चंडीगढ़ को भी यह जिम्मा सौंपा गया। डीजीआरई ने गहन अध्ययन के बाद बीते दिवस अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी। बताया गया कि अभी रिपोर्ट का अध्ययन नहीं हो पाया है।

इससे पहले राज्य सरकार की ओर से गठित विज्ञानियों की टीम ने चौराबाड़ी ग्लेशियर समेत आसपास के क्षेत्र का हवाई व स्थलीय निरीक्षण करने के बाद अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपी।

अपर सचिव आपदा प्रबंधन सविन बंसल ने इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि इस क्षेत्र में हिमस्खलन की घटनाएं होना सामान्य है। उन्होंने कहा कि विज्ञानियों ने अपनी रिपोर्ट में इस क्षेत्र में निगरानी की आवश्यकता भी बताई है। इस क्रम में पहले ही भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान से समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किया जा चुका है।

विज्ञानियों की टीम ने दिए सुझाव

  • केदारनाथ क्षेत्र में हिमस्खलन के जोखिम को कम करने को उत्तरी छोर में अलग-अलग ऊंचाई पर ढलान की बेंचिंग की जाए तो यह बर्फ और मलबे की गति को धीमा कर देगी।
  • ढलानों के मध्य में कंक्रीट की संरचनाएं बनाई जाएं, ताकि बर्फ के प्रवाह और गति को थामा या मोड़ा जा सके। संरचनाओं के निर्माण में स्थानीय उपलब्ध सामग्री का ही उपयोग किया जाए।
  • टीले हिमस्खलन की गति को रोकते हैं। यहां भी बदरीनाथ की तरह टीले बनाए जा सकते हैं।

केदारनाथ क्षेत्र में हुए हिमस्खलन की घटनाओं के मद्देनजर डीजीआरई चंडीगढ़ के अलावा सरकार द्वारा गठित विज्ञानियों की टीम की रिपोर्ट शासन को मिल चुकी हैं। डीजीआरई की रिपोर्ट का अभी अध्ययन नहीं किया गया है, लेकिन इसमें केदारनाथ क्षेत्र में मानीटरिंग पर विशेष जोर दिया गया है। अब दोनों अध्ययन रिपोर्ट का अध्ययन कर कोई निर्णय लिया जाएगा। इस संबंध में अगले सप्ताह बैठक बुलाई गई है।

- डा रंजीत सिन्हा, सचिव आपदा प्रबंधन, उत्तराखंड

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