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Kedarnath By Election: केदारनाथ उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर, किसके सिर सजेगा जीत का सेहरा?

केदारनाथ उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर है। भाजपा को केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर जीत का भरोसा है जबकि कांग्रेस राज्य और केंद्र सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी पर दांव लगा रही है। इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी आशा नौटियाल और कांग्रेस के मनोज रावत आमने-सामने हैं। दोनों ही पहले इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

By Vikas dhulia Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Tue, 19 Nov 2024 01:04 PM (IST)
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Kedarnath By Election: केदारनाथ के चुनावी रण में आमने-सामने भाजपा व कांग्रेस
विकास धूलिया, देहरादून। केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रचार का शोर सोमवार शाम थम गया। अब भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दल मतदान से पहले अपनी रणनीतिक तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जुड़ाव के कारण भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी केदारनाथ सीट पर कांग्रेस भी बदरीनाथ विधानसभा उपचुनाव के परिणाम की पुनरावृत्ति की उम्मीद कर रही है।

इस उपचुनाव में भाजपा को राज्य और केंद्र सरकार की विकास योजनाओं, विशेषकर केदारनाथ धाम पुनर्निर्माण कार्य और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर विजय का भरोसा है, तो कांग्रेस की पूरी रणनीति राज्य व केंद्र सरकार के विरुद्ध पिछले सात से 10 वर्षों की एंटी इनकंबेंसी पर टिकी है।

रुद्रप्रयाग जिले की केदारनाथ विधानसभा सीट भाजपा विधायक शैलारानी रावत के निधन के कारण रिक्त हुई। लगभग 90 हजार मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में पुरुषों से अधिक महिला मतदाता हैं। इस बार भाजपा प्रत्याशी आशा नौटियाल व कांग्रेस के मनोज रावत आमने-सामने हैं और दोनों ही पहले इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

वैसे, एक निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन सिंह चौहान भी क्षेत्र में चर्चा बटोर रहे हैं। माना जा रहा है कि इन्हें मिलने वाले मत जीत-हार के अंतर को प्रभावित कर सकते हैं। सामान्यतया उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल का ही पलड़ा भारी रहता है लेकिन कुछ महीने पहले हुए दो विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा।यद्यपि, चमोली जिले की बदरीनाथ और हरिद्वार जिले की मंगलौर, ये दोनों सीट पहले भी भाजपा के पास नहीं थीं।

केदारनाथ उपचुनाव भाजपा के लिए इसलिए साख का सवाल बन गया है क्योंकि इससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम जुड़ा है। वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने पर नरेन्द्र मोदी ने धाम के पुर्निर्माण का बीड़ा उठाया।

अब पिछले 10 वर्षों में केदारनाथ धाम नए स्वरूप में निखर चुका है। प्रधानमंत्री स्वयं कई बार केदारपुरी आ चुके हैं। इसके अलावा केंद्र व राज्य में एक ही दल की सरकार होने से डबल इंजन का असर उत्तराखंड में साफ दिखता है।

राज्य की धामी सरकार की बात की जाए तो समान नागरिक संहिता, सख्त नकलरोधी कानून, मतांतरण पर रोक के लिए कड़े प्रविधान, लव व लैंड जिहाद के साथ ही जन सांख्यिकीय बदलाव को लेकर अत्यंत सतर्कता जैसे कदम भी किसी न किसी रूप में इस उपचुनाव में अहम भूमिका में रहेंगे।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस उपचुनाव में पांच जनसभाओं को संबोधित किया, जबकि दो बाइक रैली में भी वह शामिल हुए। प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट समेत धामी, सरकार के लगभग सभी मंत्री, कई पूर्व मुख्यमंत्री, गढ़वाल संसद अनिल बलूनी और वरिष्ठ पदाधिकारी भी प्रचार अभियान का हिस्सा बने।

वैसे तो कांग्रेस पिछले 10 वर्षों के दौरान हर चुनावी मोर्चे पर भाजपा के हाथों पराजय का सामना करती आ रही है, लेकिन इसी वर्ष दो उपचुनावों में जीत ने दल को संजीवनी सी दे दी है। यही कारण है कि कांग्रेस नेता इस चुनाव में बढ़े हुए मनोबल के साथ मैदान में उतरे।

कांग्रेस की कोशिश रही कि प्रतिद्वंद्वी भाजपा को घेरने के लिए केदारनाथ में भी बदरीनाथ उपचुनाव की तरह व्यूह रचना की जाए।

इसी रणनीति पर चलते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल कई दिनों तक क्षेत्र में डेरा डाले रहे। अब कांग्रेस अपने उद्देश्य में कितना सफल रहती है, यह 23 नवंबर को मतगणना के बाद सामने आ ही जाएगा।

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