Khalanga War : गोरखा सैनिकों ने कंपा दी थी अंग्रेजों की रूह, पत्थरों की बरसात से फिरंगी सेना को किया था पस्त
Khalanga War वर्ष 1814 में देहरादून में नालापानी के समीप खलंगा पहाड़ी पर महज 600 गोरखा सैनिकों ने हजारों की फिरंगी सेना के पसीने छुड़ा दिए थे। तब उनके पास हथियारों के नाम पर केवल खुखरियां थी।
By Nirmala BohraEdited By: Updated: Fri, 25 Nov 2022 02:30 PM (IST)
टीम जागरण, देहरादून : Khalanga War : वर्ष 1814 में देहरादून में नालापानी के समीप खलंगा पहाड़ी पर महज 600 गोरखा सैनिकों ने हजारों की फिरंगी सेना के पसीने छुड़ा दिए थे।
इस युद्ध में गोरखा सेना का नेतृत्व कर रहे बलभद्र बलिदानी हो गए थे। तब गोरखा सैनिकों के पास हथियारों के नाम पर केवल खुखरियां थी, जबकि अंग्रेज फौज के पास बंदूक और तोपें थीं।तब खलंगा में केवल 600 लोग रहते थे, जिनमें स्त्रियां और बच्चे थे। इस दौरान खलांगा निवासी स्त्रियों और बच्चों ने का पत्थरों का संग्रहण खूब काम आया। पहाड़ी से हुई पत्थरों की बरसात ने फिरंगी सेना को खदेड़ने में खूब काम आया। तब ईस्ट इंडिया कंपनी के करीब तीन हजार सैनिक इस गोरखा इलाके के पास मौजूद थे।
गोरखा सैनिकों ने अद्भुत रण कौशल दिखाया
- इस युद्ध में गोरखा सैनिकों ने अद्भुत रण कौशल दिखाया।
- फिरंगी सेना को विश्वास था कि खलंगा का सेनापति आत्मसमर्पण कर देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
- ब्रिटिश दूत का संदेश जब बलिदानी बलभद्र के पास पहुंचे तो उन्होंने इसे पढ़ने से मना कर फाड़ दिया और मैं युद्धभूमि में जरूर मिलूंगा।)
- शुरुआती हमलों में फिरंगी सेना को नुकसान उठाना पड़ा।
- स्त्री टोली ने फिरंगी सैनिक पर पत्थरों की बारिश कर दी।
- रणनीति बनाकर पहुंची फिरंगी सेना को दो बार पीछे हटना पड़ा था।
- गोरखा वीरों ने पूरी जान से युद्ध लड़ा।
- खलंगा को गोरखा किला के नाम से जाना जाता था।
- यहां 1814 ईसवी में अंग्रेजों ने आक्रमण किया, जिसमें गोरखाओं की ओर से बलभद्र थापा सेनानायक के रूप में अंग्रेजों से लड़े।
- बलभद्र ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अंग्रेजों से मुकाबला किया।
- इस युद्ध में अंग्रेजी सेना के जनरल गैलेप्सी मारे गए।
- गोरखा किले को अंग्रेजों ने अपने आधिपत्य में ले लिया था, लेकिन बलभद्र व उनके साथी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे।
खलंगा क्या है?
खलंगा नेपाली भाषा का शब्द है, इसका अर्थ छावनी या कैंटोनमेंट होता है। युद्ध के ठीक पहले बलिदानी बलभद्र ने जैसे-तैसे पत्थर की चहारदीवारी खड़ी की और युद्ध लड़ा।
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26 नवंबर से खलंगा मेले का आयोजन
वहीं दो दिवसीय खलंगा मेले की शुरुआत 26 नवंबर को बलिदानियों को श्रद्धासुमन अर्पित करने के साथ होगी। इस दिन खलंगा युद्ध के वीर-वीरांगनाओं को याद किया जाता है। आयोजन के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। पदाधिकारियों और सदस्यों को जिम्मेदारियां बांट दी गई हैं।
समिति के अध्यक्ष कर्नल विक्रम सिंह थापा ने बताया कि 48वां खलंगा मेला शनिवार को सुबह साढ़े छह बजे सहस्रधारा रोड स्थित युद्ध स्मारक पर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ शुरू होगा।इसके बाद स्वच्छता, पर्यावरण सरंक्षण को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। सात बजे खलंगा ब्रेवरी बाइकाथान का आयोजन होगा। साढ़े दस बजे चंद्रायनी माता मंदिर नालापानी में पूजन, हवन कीर्तन और भडारे का कार्यक्रम है।
27 नवंबर (रविवार) को सुबह सात बजे खलंगा युद्ध स्मारक से पदयात्रा निकाली जाएगी। इसके बाद सागरताल नालापानी में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे। छात्र-छात्राओं के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाएगा।
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