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देहरादून के अंतिम छोर पर बसा है रायवाला कस्‍बा, सैन्य छावनी के रूप में इसकी पहचान

देहरादून जनपद के रायवाला कस्‍बे की पहचान सैन्‍य छावनी के रूप में है। यहां पर्वतीय तोपखाना ब्रिगेड व गोरखा रेजिमेंट है। वहीं राजाजी टाइगर रिजर्व सैलानियों को आकर्षित करता है। इतना ही नहीं यहां 500 वर्षों से अधिक प्राचीन मंदिर भी है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 05 Apr 2022 09:15 PM (IST)
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देहरादून जिले के अंतिम छोर पर बसा रायवाला तहसील ऋषिकेश का एक कस्बा है।

दीपक जोशी, रायवाला। देहरादून जिले के अंतिम छोर पर बसा रायवाला तहसील ऋषिकेश का एक कस्बा है। इसकी आबादी करीब 60 हजार है। रायवाला में देहरादून जिले की सीमाएं हरिद्वार व पौढ़ी जिले से लगती हैं। हरिद्वार व ऋषिकेश से रायवाला की दूरी समान रूप से 12 किलोमीटर, जबकि राजधानी देहरादून से 37 व जौलीग्रांट एयरपोर्ट से 28 किलोमीटर है।

रायवाला की पहचान यहां की सैन्य छावनी से है। पर्वतीय तोपखाना ब्रिगेड व गोरखा रेजिमेंट यहां की शान हैं। पूर्व में बंगाल इंजीनियरिंग ग्रुप (बीईजी) का प्रशिक्षण केंद्र भी यहां था, जिसके नाम पर रायवाला की मुख्य सड़क बीईजी मार्ग से पहचानी जाती है।

यहां राजाजी टाइगर रिजर्व करता है सैलानियों को आकर्षित

रायवाला जंक्शन से देहरादून व ऋषिकेश के लिए अलग-अलग रेल मार्ग हैं। कुछ एक्सप्रेस ट्रेनों को छोड़कर इस जंक्शन पर लगभग सभी ट्रेने रुकती है। रायवाला कस्बे के अंतर्गत हरिपुरकलां, प्रतीतनगर, रायवाला, खांडगांव व गौहरीमाफी गांव आते हैं। थाना रायवाला की सीमाएं ऋषिकेश, डोईवाला व हरिद्वार कोतवाली से लगी है। इस थाना क्षेत्र के अंतर्गत, छिद्दरवाला, चकजोगीवाला, जोगीवालामाफी, साहबनगर, खैरीकलां, खैरीखुर्द, गौहरीमाफी, प्रतीतनगर, रायवाला, खांडगांव व हरिपुरकलां गांव शामिल हैं।

राजाजी टाइगर रिजर्व के अंतर्गत यहां मोतीचूर रेंज पर्यटकों को आकर्षित करती है। इस पार्क में हाथी, गुलदार, हिरण सहित कई दुर्लभ जीव जंतु देखे जा सकते हैं। अब यहां तीन बाघ भी मौजूद हैं। यहां आने वाले सैलानी मोतीचूर व सत्यनारायण वन विश्राम भवन में रात्रि विश्राम कर सकते हैं। इस क्षेत्र में कई बड़े आश्रम व नामी होटल हैं, जहां साल भर वीआइपी मूवमेंट बना रहता है। गंगा नदी के किनारे कई बड़े उद्योगपतियों के गेस्ट हाउस भी बने हुए हैं।

धान व गेहूं के लिए उपजाऊ है यह क्षेत्र

रायवाला में सौंग व सुसुवा नदी गंगा में मिल जाती हैं। गेहूं व धान की फसल के लिए यह क्षेत्र काफी उपजाऊ है। सौंग न सुसवा नदी के अलावा जगंल से निकलने वाले जलस्रोत यहां सिंचाई की जरूरत पूरी करते हैं। यहां बड़े पैमाने पर हर्ब्स की खेती की जा रही है, जिसका प्रयोग विभिन्न तरह के मसाले बनाने में होता है। यहां गंगा लहरी क्षेत्र में करीब 60 बीघा में फैला प्रसिद्ध राजकीय आलू फार्म है, जहां बीज के लिए आलू की उन्नत किस्म तैयार की जाती हैं।

यहां मौजूद है चार धाम यात्रा की प्रथम चट्टी

रायवाला में ही चार धाम यात्रा मार्ग की प्रथम सत्यनारायण चट्टी है, जहां भगवान सत्यनारायण व गरुड़ का 500 वर्ष से अधिक प्राचीन मंदिर है। रायवाला गांव में गंगा किनारे स्थित प्राचीन सिद्ध तंत्र पीठ में ज्येष्ठ व आषाढ़ माह में मेला लगता है। जिसमें उत्तर प्रदेश व हरियाणा राज्य के कई जिलों से यात्री माता के दर्शन को पहुंचते हैं। यहां माता वासंती व माता त्रिपुरा बाल रूप में विराजमान हैं। यह स्थान तंत्र पीठ के रूप में मान्य है। इसके अलावा यहां माता घस्यारी व बनखंडी महादेव पौराणिक मंदिर स्थित हैं। दूसरे राज्यों के समुदायों, धार्मिक संस्थाओं ने भी यहां धर्मशालाएं और आश्रम बनाए हैं, जहां साल भर यात्रियों का आना-जाना लगा रहता है।

गढ़वाली समुदाय व बोक्सा जनजाति बहुल है क्षेत्र

इस क्षेत्र में मुख्य रूप से गढ़वाली समुदाय के लोग निवास करते हैं। इसके अलावा बोक्सा जनजाति के लोग भी बड़ी संख्या में यहां निवास करते हैं। जिनका निवास मुख्य रूप से गंगा व सौंग नदी के आसपास है। इसके अलावा गोर्खाली व मैदानी मूल के परिवार भी काफी संख्या रहते हैं। तिबतियन होम भी यहां पर है, जहां सैकड़ों की संख्या में तिब्बती शरणार्थी निवास कर रहे हैं।

स्काउट गाइड पहुंचते हैं प्रशिक्षण को

ग्राम सचिवालय, मिनी स्टेडियम, राष्ट्रीयकृत सभी मुख्य बैंकों व कई प्राइवेट बैंकों की शाखाएं, केंद्रीय विद्यालय, आर्मी स्कूल सहित कई अच्छे स्तर के राजकीय व निजी शिक्षण संस्थान, उत्तर भारत का प्रसिद्ध लीला बेरी स्काउट गाइड प्रशिक्षण केंद्र भी रायवाला की पहचान हैं। यहां वर्ष भर देश के विभिन्न राज्यों के स्काउट-गाइड प्रशिक्षण के लिए आते रहते हैं।