जानिए कौन हैं प्रेमचंद शर्मा, जो सही मायनों में हैं पहाड़ के नायक, पद्मश्री सम्मान से हुए हैं सम्मानित
खेती-बागवानी के क्षेत्र में प्रेमचंद शर्मा ने एक नई इबारत लिखी। पांचवीं पास होने के बाद भी उन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर वो कर दिखाया जो हर किसी के बस की बात नहीं होती। जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के दुर्गम इलाकों में उन्होंने न सिर्फ खेती-बागवानी का कठिन कार्य किया।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Tue, 09 Nov 2021 02:55 PM (IST)
जागरण संवाददाता, देहरादून। प्रेमचंद शर्मा...ये वो शख्सियत हैं, जिन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है। उन्होंने खेती-बागवानी के क्षेत्र में एक नई इबारत लिखी। पांचवीं पास होने के बाद भी उन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर वो कर दिखाया, जो हर किसी के बस की बात नहीं होती। उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के दुर्गम इलाकों में उन्होंने न सिर्फ खेती-बागवानी का कठिन कार्य किया, बल्कि अभिनव प्रयोग कर अनार, ब्रोकली और चैरी टमाटर की भी खेती की। कृषि विकास के क्षेत्र में वर्ष 2012 से 2018 के बीच कई राज्यस्तरीय और राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। तो चलिए कुछ और बातें भी जानते हैं पहाड़ के इस नायक के बारे में....
दुर्गम इलाकों में खेती-बागवानी करना आसान नहीं होता है, लेकिन कहते हैं न जहां चाह वहां राह बन ही जाती है। भले ही प्रगतिशील किसान प्रेमचंद को खेती-बाड़ी की सीख विरासत में उनके पिता स्व. पिता झांऊराम शर्मा से मिली से मिली हो, लेकिन परंपरागत खेती में मुनाफा न होता देख उन्होंने नए प्रयोग किए। इसकी शुरुआत उन्होंने 1994 में अनार की जैविक खेती से की। यह प्रयोग सफल रहा तो उन्होंने क्षेत्र के अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित किया।
साधारण परिवार में लिया जन्म, लिखी नई इबारत प्रेमचंद शर्मा देहरादून से सटे जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के अटाल गांव के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। वे बचपन से ही खेतीबाड़ी से जुड़े रहे। माता-पिता के निधन के बाद सारी जिम्मेदारी उनके कंधे पर आ गई और फिर उनके संघर्ष का सफर शुरू हुआ। शुरुआती दौर में उन्हें खेतीबाड़ी में कई तरह की दिक्कतें पेश आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
परंपरागत खेती से हट कुछ अलग करने की चाह विरासत में मिली परंपरागत खेती से अलग हटकर प्रेमचंद ने खेती-बागवानी में नया प्रयोग किया। वर्ष 1994 में उन्होंने अटाल में फलोत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनार की खेती की शुरुआत की। साल 2000 की बात करें तो उन्होंने अनार की उन्नत किस्म के डेढ़ लाख पौधों की नर्सरी तैयार कर जनजातीय क्षेत्र और पड़ोसी राज्य हिमाचल के करीब साढे तीन सौ कृषकों को अनार की पौधे वितरित की थी। कई राज्यों में वे प्रशिक्षण देने के लिए भी गए। साल 2013 में उन्होंने देवघार खत के सैंज-तराणू और अटाल पंचायत से जुड़े करीब दो सौ कृषकों को एकत्र कर फल व सब्जी उत्पादक समिति का गठन किया। इस दौरान उन्होंने ग्राम स्तर पर कृषि सेवा केंद्र की शुरुआत कर खेती-बागवानी के विकास में अहम भूमिका निभाई।
कई लोगों की आर्थिकी को संवारा प्रेमचंद शर्मा ने अपने साथ ही किसानी से औरों की भी आर्थिकी संवारी। उन्होंने क्षेत्र में नगदी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा भी दिया और इस पहले से कई ग्रामीण किसानों को जोड़ा, जिससे उनकी आर्थिकी संवरी। जैविक खेती को बढ़ावा देने वाले प्रगतिशील किसान प्रेमचंद ने अपने कार्यों से गांव का नाम रोशन किया और देशभर में पहचान दिलाई।
गांव में अहम पद पर की भी संभाली जिम्मेदारी प्रेमचंद शर्मा ने न सिर्फ खेती-बागवानी में ही अग्रणी भूमिका निभाई, बल्कि गांव में अहम पदों पर की भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। साल 1984 से 1989 तक वे सैंज-अटाल पंचायत के उपप्रधान रहे और वर्ष 1989 से 1998 तक सैंज-अटाल के प्रधान की जिम्मेदारी संभाली। मिल चुके हैं ये सम्मान -वर्ष 2012 में उत्तराखंड सरकार ने किसान भूषण से किया सम्मानित।
-वर्ष 2014 में इंडियन एसोसिएशन ऑफ सॉयल एंड वॉटर कंजर्वेशन से मिला किसान सम्मान।-भारतीय कृषि अनुसंधान ने किया किसान सम्मान से सम्मानित।-वर्ष 2015 में कृषक सम्राट सम्मान।-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान ने विशेष उपलब्धि सम्मान।-वर्ष 2015 में गोविंद बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर से कृषि सम्मान।-वर्ष 2016 में स्वदेशी जागरण मंच उत्तराखंड विस्मृत नायक सम्मान।
-वर्ष 2018 में जगजीवन राम किसान पुरस्कार।-कृषि बागवानी के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान को जसोदा नवानी सम्मान।यह भी पढें- उत्तराखंड: डा. संजय समेत दो हस्तियां पद्मश्री से सम्मानित, लिम्का और गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है नाम
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