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Indian Military Academy: जांबाज अफसरों की फौज तैयार करता IMA, वर्ष 1932 में 40 कैडेट के साथ शुरू हुआ इसका सफर

Indian Military Academy उत्‍तराखंड के देहरादून जनपद में स्थित भारतीय सैन्‍य अकादमी जांबाज सैन्‍य अफसर की फौज तैयार करता है। इसका सफर वर्ष 1932 से शुरू होता है। मात्र 40 कैडेट से शुरू हुए आइएमए देश और मित्र देशों को सैन्‍य अधिकारी दे रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 05 Aug 2022 09:34 PM (IST)
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Indian Military Academy: उत्‍तराखंड के देहरादून जनपद में स्थित भारतीय सैन्‍य अकादमी जांबाज सैन्‍य अफसर की फौज तैयार करता है।

जागरण संवाददाता, देहरादून: Indian Military Academy दुनिया के बेहतरीन सैन्य अफसर तैयार करना कोई आसान काम नहीं है। दून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) यह काम लगातार 90 साल से बखूबी कर रही है। देश का गौरव यह संस्थान अब तक देश-विदेश के 64 हजार 145 सैन्य अफसर दे चुका है।

40 कैडेट के साथ शुरू हुआ सफर

भारतीय सैन्य अकादमी का गौरवशाली इतिहास (History of Indian Military Academy) है। जहां आज भारतीय सैन्य अकादमी है, नौ दशक पहले वहां रेलवे स्टाफ कालेज हुआ करता था। कालेज का 206 एकड़ कैंपस और अन्य ढांचागत सुविधाएं भारतीय सैन्य अकादमी को हस्तांतरित की गईं और वर्ष 1932 में 40 कैडेट के साथ अकादमी का सफर शुरू हुआ।

एक अक्टूबर 1932 को हुई स्थापना

आइएमए की स्थापना एक अक्टूबर 1932 को हुई। ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस प्रथम कमांडेंट बने। संस्थान के पहले बैच को 'पायनियर बैच' के नाम से भी जाना जाता है। इसमें फील्ड मार्शल सैम मानेक शा (Field Marshal Sam Manekshaw), म्यांमार के सेनाध्यक्ष स्मिथ डन एवं पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष मोहम्मद मूसा शामिल थे।

वर्ष 1933 में प्रदान किया किंग्स कलर

फील्ड मार्शल सर फिलिप डब्ल्यू चैटवुड (Field Marshal Sir Philip W Chatwood) ने 10 दिसंबर 1932 को भारतीय सैन्य अकादमी का औपचारिक उद्घाटन किया। उन्हीं के नाम पर आइएमए की प्रमुख बिल्डिंग चैटवुड बिल्डिंग के नाम से विख्यात है। वर्ष 1933 में आइएमए को किंग्स कलर प्रदान किया गया।

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ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह पहले भारतीय कमांडेंट

स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) की कमान पहली बार किसी भारतीय के हाथ में सौंपी गई। वर्ष 1947 में ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने। वर्ष 1949 में परिवर्तन हुआ और यह सुरक्षा बल अकादमी बनी।

इसका नाम रखा गया नेशनल डिफेंस एकेडमी

इसका एक अलग विंग क्लेमेनटाउन में खोला गया, जहां सेना के तीनों विंगों को ट्रेनिंग दी जाती थी। बाद में इसका नाम नेशनल डिफेंस एकेडमी (National Defense Academy) रख दिया गया। वर्ष 1954 में एनडीए (NDA) के पुणे (महाराष्ट्र) स्थानांतरित हो जाने के बाद इसका नाम मिलिट्री कालेज हो गया।

आइएमए से पास आउट अधिकारी पहली बार कमांडेंट

वर्ष 1956 में ब्रिगेडियर एमएम खन्ना पहले ऐसे कमांडेंट बने, जो स्वयं भी आइएमए से पास आउट थे। वर्ष 1960 में संस्थान को भारतीय सैन्य अकादमी का नाम दिया गया। चीन से युद्ध के दौरान नवंबर 1962 से लेकर नवंबर 1964 तक चार हजार से अधिक जेंटलमैन कैडेट्स (Gentlemen Cadets) को अधिकारी के रूप में कमीशन प्रदान किया गया।

1962 में मिला अकादमी का ध्वज

10 दिसंबर 1962 को तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एस राधाकृष्णन ने स्वतंत्रता के बाद पहली बार अकादमी का ध्वज प्रदान किया। वर्ष में दो बार (जून और दिसंबर माह के दूसरे शनिवार को) आइएमए में पासिंग आउट परेड (IMA Passing out parade) का आयोजन किया जाता है।

आर्मी कैडेट कोर को IMA में किया ट्रांसफर

15 दिसंबर को 1976 में दीक्षांत समारोह के अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने अकादमी को फिर से ध्वज प्रदान किया। वर्ष 1977 में पुणे से आर्मी कैडेट कोर (Army Cadet Corps) को आइएमए में स्थानांतरित किया गया। तब से यह यहां फीडर विंग के रूप में कार्यरत है।

मित्र देश भी मान रहे हैं लोहा

भारतीय सैन्य अकादमी ने देश-दुनिया को एक से बढ़कर एक नायाब अफसर दिए हैं। यहां प्रशिक्षण लेने वालों में न केवल देश बल्कि विदेशी कैडेट में शामिल रहते हैं। अकादमी के कड़े प्रशिक्षण व अनुशासन का लोहा मित्र देश भी मान रहे हैं। अब तक अकादमी 30 मित्र देशों के 2813 युवाओं को प्रशिक्षित कर चुका है।

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