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जानिए भारतीय सैन्‍य अकादमी का इतिहास, जहां तैयार किए जाते हैं युवा सैन्‍य अफसर

उत्‍तराखंड के देहरादून स्थित भारतीय सैन्‍य अकादमी में जांबाज सैन्‍य अफसर तैयार किए जाते हैं। इसका इतिहास वर्ष 1932 से शुरू होता है। उस समय मात्र 40 कैडेट से शुरू हुई अकादमी आज देश ही नहीं मित्र देशों को भी सैन्‍य अधिकारी दे रही है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 15 Jan 2022 05:17 PM (IST)
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अंग्रेजों ने भारतीय सैन्‍य अकादमी (अकादमी) की स्‍थापना एक अक्‍टूबर 1932 में की थी।
जागरण संवाददाता, देहरादून। आज आपको हम देहरादून स्थित भारतीय सैन्‍य अकादमी के इतिहास से रूबरू कराते हैं। अंग्रेजों ने इसकी स्‍थापना एक अक्‍टूबर 1932 में की थी। उस समय इस अकादमी से सिर्फ 40 कैडेट्स पास आउट हुए थे। आप जानकर हैरान होंगे कि इस अकादमी से भारत ही नहीं, म्यांमार और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष भी पासआउट हुए हैं। आपको बता दें कि वर्ष 1932 से पहले भारतीय सैन्‍य अफसरों की ट्रेनिंग इंग्लैंड के सैंडहर्स्ट के रायल मिलिट्री एकेडमी में होती थी।

ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस बने आइएमए के प्रथम कमांडेंट

वर्ष 1932 में ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस आइएमए के प्रथम कमांडेंट बने थे। 40 कैडेट के साथ पहला बैच शुरू हुआ, जिसे पायनियर का नाम दिया गया। इसी बैच में फील्ड मार्शल सैम मानेक शाह, म्यांमार के सेनाध्यक्ष स्मिथ डन और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष मोहम्मद मूसा भी शामिल रहे। आइएमए का उद्घाटन 10 दिसंबर 1932 को फील्ड मार्शल सर फिलिप डब्ल्‍यू चैटवुड ने किया । आइएमए (IMA) की मेेेन बिल्डिंग को उन्हीं के नाम से जाना जाता है।

1947 में ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह बने इसके पहले कमांडेंट

वर्ष 1947 में भारतीय सैन्‍य अकादमी की कामन ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह को दी गई। वर्ष 1949 में अकादमी का नाम सुरक्षा बल अकादमी रखा गया। इसकी एक शाखा देहरादून के क्लेमेनटाउन में खोली गई। इसका नाम नेशनल डिफेंस अकेडमी (एनडीए) रखा। पहले सेना के तीनों विंगों को ट्रेनिंग क्लेमेनटाउन में दी जाती थी। वर्ष 1954 में एनडीए को पुणे स्थानांतरित कर दिया। तब इसका नाम मिलेट्री कालेज रखा गया। वर्ष 1960 में संस्थान का नाम भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) रखा गया। तत्कालीन राष्ट्रपति डा एस राधाकृष्णन ने 10 दिसंबर 1962 को पहली बार अकादमी को ध्वज प्रदान किया। आपको बता दें कि साल में दो बार जून माह और दिसंबर माह के दूसरे शनिवार को आइएमए में पासिंग आउट परेड होती है।

आइएमए के म्यूजियम में रखीं है नियाजी की पिस्तौल

देहरादून स्थित आइएमए में पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी की पिस्तौल रखी है। जो भावी सैन्य अफसरों में जोश भरती है। ईस्टर्न कमांड के जनरल आफिसर कमांडिंग ले. जनरल अरोड़ा ने यह पिस्तौल आइएमए के गोल्डन जुबली वर्ष 1982 में प्रदान की थी।

आइएमए में उल्टा लटका हुआ है पाकिस्तानी ध्वज

1971 के युद्ध से जुड़ी दूसरी वस्तु है पाकिस्तानी का ध्वज। जो आइएमए में उल्टा लटका हुआ है। भारतीय सेना ने इस ध्वज को पाकिस्तान की 31 पंजाब बटालियन से सात से नौ सितंबर तक चले सिलहत युद्ध के दौरान कब्जे में लिया था। आइएमए के गोल्डन जुबली वर्ष में जनरल राव ने यह ध्वज अकादमी को प्रदान किया।

जनरल नियाजी की काफी टेबल बुक भी है आइएमए में

1971 में हुए युद्ध की एक अन्य निशानी जनरल नियाजी की काफी टेबल बुक आइएमए में है। यह निशानी कर्नल (रिटायर्ड) रमेश भनोट ने जून 2008 में आइएमए को दी।

अकादमी में आठ राष्ट्रपति पासिंग आउट परेड की ले चुके हैं सलामी

  • 1956 में देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद शर्मा।
  • 1956 में डा. राजेंद्र प्रसाद।
  • 1962 में डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन।
  • 1976 में फखरुद्दीन अली अहमद।
  • 1992 में आर वेंकटरमन।
  • 2006 में एपीजे अब्दुल कलाम।
  • 2011 में प्रतिभा देवी पाटिल।
  • 2021 में राम नाथ कोविंद।

इसलिए मनाए जाता है 15 जनवरी को सेना दिवस

आजाद भारत के पहले भारतीय सेना प्रमुख फील्ड मार्शल केएम करियप्पा 15 जनवरी 1949 को बने। यह भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण घटना थी। इसलिए हर वर्ष 15 जनवरी को भारतीय सेना दिवस मनाया जाता है।

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