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देहरादून : यहां की हवा में भी बसती है जिंदगी

1878 में ब्रिटिश इंपीरियल फॉरेस्ट स्कूल के नाम से अस्तित्व में आए भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) को 1906 में इंपीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में तब्दील किया गया।

By Krishan KumarEdited By: Updated: Sun, 01 Jul 2018 11:33 PM (IST)

हिमालय और शिवालिक पर्वत की गोद में बसे देहरादून की खूबसूरती दूर से महसूस नहीं हो सकती है, देहरादून एक बार जो आता है उसका मन यहां बसने के लिए तैयार हो जाता है। भारत की दो जीवनदायिनी नदी यमुना और गंगा इस शहर के पास से होकर गुजरती हैं। शहर के कोलाहल से आप तंग चुके हैं तो देहरादून उस तनाव को दूर करने के लिए आदर्श जगह है।

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अगर आप हवा की जिंदादिली को महसूस करना चाहते हैं तो देहरादून आपके लिए ही बना है। राजधानी दिल्ली से पास होने कारण यहां ले लोग तपिश और गर्मी के मौसम में देहरादून और इसके आसपास के इलाके को अपना ठिकाना बनाते है। उसके बाद जीवंत होकर अपने कर्म पथ पर निकल पड़ते हैं।

उत्‍तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में बसा देहरादून अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर स्‍कूलिंग के लिए पॉपुलर है। लेखक रस्किन बांड का भी इस शहर से खास प्यार है। उनकी कहानियों में इस शहर का कई बार जिक्र हुआ है। देहरादून के बारे में उन्‍होंने लिखा है कि हिमालय और शिवालिक के बीच बसे शहर में केवल हरियाली है, यहां हमेशा बारिश होती है। यहां वाहनों का कोई शोर शराबा नहीं हैं।

खास बात है कि देहरादून ने आधुनिकता का चोगा तो ओढ़ा है, वहीं अपनी साझी विरासत को भी संवार कर रखा है। कालांतार में जाएं तो पता चलता है कि देहरादून डेरा और दून दो शब्‍दों से मलकर बना है, डेरा यानि कैंप या शिविर। वहीं दून का मतलब है घाटी।

ऐसा कहा जाता है कि सिखों के सातवें गुरु हर राय के पुत्र गुरु राम राय अपने शिष्‍यों के साथ आए तब उन्‍होंने उनके लिए शिविर लगाया था। इसके बाद देहरादून का विकास शुरू हुआ। जब देहरादून शिवालिक और हिमालय के बीच में बसा हुआ है। वहीं महाभारत काल की मान्‍यता है कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य भी यहां रहे थे। इसलिए शहर को द्रोणगिरि के नाम से भी जाना जाता है।

ऐतिहासिकता और अपने चारों ओर प्राकृतिक सुंदरता समेटे देहरादून ने हाल में देहरादून बांग्‍लादेश और अफगानिस्‍तान के बीच टी-20 सीरीज का आयोजन कर चुका है। ऐसे में यह क्रिकेट के लिए भारत में यह नया केंद्र भी बना है। देहरादून की ख्‍याति स्‍कूल और उच्‍च शिक्षा के केंद्रों के तौर पर भी होती है। देहरादून में दर्जनों स्‍कूल ऐसे हैं, जहां पढ़ाना अभिभवकों के लिए सपना होता है।

यहां फोरेस्‍ट रिसर्च इंस्‍टीट्यूट, इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिग, इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम जैसे संस्‍थान भी हैं। देहरादून में रॉवर्स केव, बुद्धा मंदिर, संताला देवी मंदिर, हनोई टैंपल भी देखने लायक हैं। मसूरी, औली, धनौल्‍टी जैसे पर्यटन वाली जगह जाने के लिए लोग देहरादून ही आते हैं। वहीं चारधाम यात्रा का भी यह अहम केंद्र है।

प्राकृतिक सुंदरता अपने आसपास समेटे देहरादून में जंगल अर्थव्‍यवस्‍था का मुख्‍य साधन है। देहरादून में गंगा तपोवन नाम के हिस्‍से में प्रवेश करते हुए रायवाला होते हुए हरिद्वार जाती है। वहीं यमुना जिले में 32 किलोमीटर दूर जौनसर से प्रवेश करती है।

यहां होगी यादगार शॉपिंग

देहरादून के मुख्य बाज़ारों में पलटन बाजार, तिब्बती मार्किट, कनाट प्लेस, राजपुर रोड मार्किट और धामावाला बाजार शामिल हैं। दून में प्लम केक, लौकी के लड्डू और बाल मिठाई, बर्गर-ब्रेड रोल भी काफी प्रसिद्ध हैं।

देश के गौरव हैं ये संस्थान

भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ): 1878 में ब्रिटिश इंपीरियल फॉरेस्ट स्कूल के नाम से अस्तित्व में आए इस संस्थान को 1906 में इंपीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में तब्दील किया गया।

इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आइएमए)

भारतीय सैन्य अकादमी यानी आइएमए देश का गौरव है। यह संस्थान न सिर्फ देश, बल्कि मित्र देशों के लिए भी सैन्य अधिकारी तैयार करता है।

श्री टपकेश्वर महादेव मंदिर

भगवान शिव को समर्पित है। इस गुफा में शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदें टपकती रहती हैं।

दरबार साहिब

श्री गुरु रामराय दरबार अपने आप में अनूठा है। 17वीं सदी के आखिर में श्री गुरु रामराय ने दरबार साहिब की स्थापना की ।

प्रमुख पर्यटक स्थल

सहस्रधारा

यह गंधक के चश्मों के लिए जानी जाती है। यहां स्नान और प्राकृतिक नजारे तन-मन को आनंदित कर देते हैं।

देहरादून जू (मालसी डीयर पार्क)

मसूरी मार्ग पर स्थित मालसी डीयर पार्क को अब जू में तब्दील कर दिया गया है।

तपोवन

तपोवन प्राकृतिक नजारों के लिए जाना जाता है। कहते हैं कि गुरु द्रोणाचार्य ने इस क्षेत्र में तपस्या की थी ।

बुद्धा टेंपल

यहां 185 मीटर ऊंचे महान स्तूप के साथ ही 103 फीट ऊंची भगवान बुद्ध की प्रतिमा है।

खलंगा स्मारक

खलंगा स्मारक ब्रिटिश और गोरखाओं के बीच हुए युद्ध में बहादुरी की गाथाएं याद दिलाता है।

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