I.N.D.I. गठबंधन के लिए चुनौती से कम नहीं लोकसभा चुनाव, क्या सीट शेयरिंग के फार्मूले पर तैयार होगी कांग्रेस?
अलग राज्य बनने के बाद अब तक हुए चार लोकसभा चुनाव में पांचों सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा है। अगले लोकसभा चुनाव में भी प्रदेश में जिताऊ चेहरे के मामले में आईएनडीआईए के अपने सहयोगी दलों पर भारी कांग्रेस अगले लोकसभा चुनाव में भी सीट शेयरिंग के फार्मूले पर तैयार होगी इसके आसार नहीं के बराबर हैं।
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भाजपा से मुकाबले के लिए कोई विपक्षी दल सबसे मजबूत है तो वह कांग्रेस ही है। अलग राज्य बनने के बाद अब तक हुए चार लोकसभा चुनाव में पांचों सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा है।
अगले लोकसभा चुनाव में भी प्रदेश में जिताऊ चेहरे के मामले में आईएनडीआईए के अपने सहयोगी दलों पर भारी कांग्रेस अगले लोकसभा चुनाव में भी सीट शेयरिंग के फार्मूले पर तैयार होगी, इसके आसार नहीं के बराबर हैं।
यह अलग बात है कि सहयोगी दल निर्णायक भूमिका में नहीं होने के बाद भी कांग्रेस के साथ रस्साकशी में पीछे नहीं रहना चाहते। समाजवादी पार्टी ने इसकी शुरुआत कर दी है।
उत्तराखंड किसी चुनौती से कम नहीं
कांग्रेस और आईएनडीआईए के लिए उत्तराखंड किसी चुनौती से कम नहीं है। यद्यपि, यहां लोकसभा की मात्र पांच सीटें हैं, लेकिन उत्तराखंड उन राज्यों में सम्मिलित है, जहां भाजपा क्लीन स्वीप करने में सफल रही है। यह सफलता सत्तारूढ़ दल को दो बार यानी वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली है।
विशेष बात यह है कि इससे पहले वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पांचों सीटों पर क्लीन स्वीप किया था। इसके बाद पार्टी अपने जनाधार को वापस पाने के लिए तरस गई है।
बावजूद इसके सच्चाई यही है कि उत्तराखंड में विपक्षी दल के नाम पर कांग्रेस ही एकमात्र मजबूत विपक्षी दल के रूप में है। भाजपा को चुनौती देने की बात हो तो अन्य विपक्षी दल उसके इर्द-गिर्द भी दिखाई नहीं दे रहे हैं।
एकमात्र लोकसभा क्षेत्र हरिद्वार में कभी आईएनडीआईए के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी की मजबूत स्थिति रही है। वर्ष 2004 में यह सीट सपा के खाते में गई थी। बाद में इस सीट पर कांग्रेस ने अपनी पकड़ मजबूत करते हुए सपा को हाशिये पर धकेल दिया।
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