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भगवान शंकर ने यहां पांडवों को बूढ़े व्यक्ति के रूप में दिए थे दर्शन

टिहरी जिले के विकासखंड भिलंगना का बूढ़ाकेदार शिव मंदिर काफी प्राचीन है। कहते हैं यहां भगवान शिव ने पांडवों को यहां बूढ़े व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए थे।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 31 Jul 2018 07:41 AM (IST)
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भगवान शंकर ने यहां पांडवों को बूढ़े व्यक्ति के रूप में दिए थे दर्शन
देहरादून, [जेएनएन]: टिहरी जिले के विकासखंड भिलंगना का बूढ़ाकेदार शिव मंदिर काफी प्राचीन है। मंदिर के अंदर विशालकाय पत्थर की शिला है, जिस पर पांडवों की आकृतियां हैं। यह मंदिर काफी प्राचीन है जिसे अब भव्य रूप दिया गया है। पूर्व में जब आवागमन की सुविधा नहीं थी तो यात्री पहले बूढ़ाकेदार के दर्शन करते थे और उसके बाद केदारनाथ के दर्शन को जाते थे। बूढ़ाकेदार की यात्रा के बिना चारधाम यात्रा अधूरी मानी जाती थी। श्रावण मास में यहां से पैदल कांवड़ यात्रा होती है। बूढ़ाकेदार को पांचवां धाम घोषित करने की लंबे समय से मांग की जा रही है।

मंदिर का इतिहास 

बूढ़ाकेदार प्राचीन केदारों में एक माना जाता है। इसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। बताया जाता है कि गोत्र हत्या से मुक्ति के लिए जब पांडव इस मार्ग से होते हुए स्वर्गारोहण के लिए जा रहे थे, तब वह बूढ़ाकेदार में रुके थे। यहां पर भगवान शंकर ने उन्हें बूढ़े व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए थे, जिसके बाद इस धाम का नाम पहले बृद्धकेदार और बाद में बूढ़ाकेदार हो गया। यह धाम बालगंगा व धर्मगंगा के मध्य स्थित है। इस मंदिर की नींव शंकराचार्य ने रखी थी। बूढ़ाकेदार के दर्शन से केदारनाथ जैसा फल मिलता है। आज भी बड़ी संख्या में देश के विभिन्न जगह से यात्री बूढ़ाकेदार के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। श्रावण मास में बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। 

कैसे पहुंचें बूढ़ाकेदार

ऋषिकेश से बूढ़ाकेदार के लिए सीधी बस सेवा है, जहां से श्रद्धालु आसानी से बूढ़ाकेदार पहुंच सकता है। जिला मुख्यालय से भी 85 किमी की दूरी तय कर बूढ़ाकेदार पहुंचा जा सकता है। यहां से करीब पांच सौ मीटर की पैदल दूरी कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। 

क्या कहते हैं पुजारी 

बूढ़ाकेदार के पुजारी नाथ जाति के लोग होते हैं। मंदिर के रावल अमरनाथ का कहना है कि यह मंदिर काफी प्राचीन हैं। यहां पर देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोग दर्शन को आते है। आज भी यहां केदारनाथ के लिए पैदल कांवड़ यात्रा होती है। श्रावण मास में यहां पर पूरे महीने श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए वर्ष भर खुले रहते हैं। 

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