यहां भगवान शंकर ने पांडवों को भील के रूप में दिए थे दर्शन
टिहरी जिले के घनसाली विकास खंड भिलंगना की पट्टी केमर घाटी में बेलेश्वर क्षेत्र का एक मात्र शिव मंदिर है। मान्यता है कि यहां भगवान शंकर ने पांडवों को भील के रूप में दर्शन दिए थ।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 03 Aug 2018 10:11 AM (IST)
देहरादून, [जेएनएन]: घनसाली विकास खंड भिलंगना की पट्टी केमर घाटी में बेलेश्वर क्षेत्र का एक मात्र शिव मंदिर है। इस शिव मंदिर को पांडव काल के इतिहास से माना जाता है। यहां पर लोगों की ओर से लाखों रुपये चंदे के रूप मे दिए जाते हैं। यहां स्थित शिव मंदिर मे केदारनाथ के मंदिर के तरह का शिवलिंग विराजमान है। इसे सबसे पुराने केदार के रूप में भी माना जाता है। श्रावण मास में यहां पूजा-अर्चना विशेष फलदाई माना जाता है। लोग देश-विदेश से अपनी मनोकामना को पूर्ण करने लिए श्रावण मास में यहां पहुंचकर दिन-रात रूद्रीपाठ जैसे धार्मिक आयोजन करते रहते है।
इतिहासबेलेश्वर शिव मंदिर का इतिहास महाभारत के स्कंद पुराण मे वर्णन मिलता है। उक्त मंदिर पांडव काल के शिव मदिरों में एक है। कहा जाता है कि यहां जब पांडव कैलाश यात्रा के लिये निकले थे रात्रि विश्राम के समय शंकर भोले नाथ ने पांडवों को भील के रूप मे दर्शन दिए थे और उन्हें आशीर्वाद दिया था कि कैलाश यात्रा के बाद मोक्ष को प्राप्त हो जाओगे क्योंकि कलयुग का आरंभ होने वाला है। वहां भी पांडवों ने रात्रि विश्राम के दौरान पत्थरों पर कुछ लेख भी लिखे हैं जो आज भी मंदिर के आस-पास दिखायी देते हैं। यही नही उक्त शिव मंदिर का शिवलिंग भी केदारनाथ के मंदिर के शिवलिंग के समान है यही वजह है कि क्षेत्र के लोग बेलेश्वर शिव मंदिर को प्रथम केदार के रूप मे मानते है। भील के रूप मे दर्शन देने के बाद उक्त जगह का नाम ही बेलेश्वर महादेव पड़ा। यह मंदिर पूरे प्रखंड का आस्था का केन्द्र है।
तैयारियां
इन दिनों श्रावण मास में मंदिर में हर दिन पूजा अर्चना होती है। टिहरी जिला मुख्यालय से 60 किमी दूरी तय कर घनसाली आने के बाद घनसाली-चमियाला मोटर मार्ग पर घनसाली से 8 किमी की दूरी पर बेलेश्वर शिव मंदिर स्थित है। जो कि सड़क से मात्र 500 मीटर की दूरी पर बना है। यहां श्रद्धालुओं को पैदल नहीं चलना पड़ता है। शिव मंदिर पांडव काल से निर्मित है
पुजारी देवेन्द्र तिवारी का कहना है कि बेलेश्वर शिव मंदिर के पुजारी देवेंद्र तिवारी बताते हैं कि उक्त शिव मंदिर पांडव काल से निर्मित है लेकिन अब इसे क्षेत्र के लोगों नया स्वरूप दिया गया है। वैसे तो मंदिर मे वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन श्रावण मास में सबसे अधिक श्रद्धालु यहां आते है संतान प्राप्ति के लिये कई दिनों से निर्जल व्रत और रूद्रीपाठ कर रूद्राभिषेक करते हैं, जिससे लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।यह भी पढ़ें: यहां माता गौरी संग आए थे महादेव, होती है हर मनोकामना पूरी
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