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उत्तराखंड में इस जगह आज भी विद्यमान है भगवान शिव व वीरभद्र, दो भागों में विभाजित है अद्भुत शिवलिंग

Veerbhadra Temple In Uttarakhand वैसे तो देश में भगवान शिव के अनेक स्थल प्रसिद्ध हैं मगर ऋषिकेश स्थित वीरभद्र का स्वयं में विशेष महत्त्व है। यह वही स्थल है जहां भगवान शिव ने रौद्र रूप धारण कर अपनी जटाओं से वीरभद्र को प्रकट किया था। मंदिर में भगवान शिव व वीरभद्र का शिवलिंग भी भगवान शिव की अलौकिकता को दर्शाता है।

By Deepak chandra joshi Edited By: Abhishek Pandey Updated: Wed, 06 Mar 2024 08:59 AM (IST)
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उत्तराखंड में इस जगह आज भी विद्यमान है भगवान शिव व वीरभद्र, दो भागों में विभाजित है अद्भुत शिवलिंग

गौरव ममगाईं, ऋषिकेश। वैसे तो देश में भगवान शिव के अनेक स्थल प्रसिद्ध हैं, मगर ऋषिकेश स्थित वीरभद्र का स्वयं में विशेष महत्त्व है। यह वही स्थल है जहां भगवान शिव ने रौद्र रूप धारण कर अपनी जटाओं से वीरभद्र को प्रकट किया था। मंदिर में भगवान शिव व वीरभद्र का शिवलिंग भी भगवान शिव की अलौकिकता को दर्शाता है। यही कारण है कि भगवान शिव के इस पौराणिक स्थल वीरभद्र में महाशिवरात्रि का विशेष महत्त्व माना जाता है।

मंदिर के पुजारी आचार्य विनीत शर्मा के अनुसार, मां सती के पिता राजा दक्ष ने हरिद्वार स्थित कनखल में महायज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया। जब मां सती ने भगवान शिव से भी साथ चलने का आग्रह किया तो शिव ने जाने से यह कहते हुए मना किया कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया है। तब मां सती ने भगवान शिव से वहां जाने की अनुमति मांगी तो भगवान शिव ने इस शर्त पर अनुमति दी कि मां सती के साथ दो गण भी साथ जाएंगे, ताकि वे मां सती की रक्षा कर सकें।

जब मां सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि वहां समस्त देवताओं का आसन था, सिर्फ शिव का स्थान नहीं था। इससे मां अत्यंत क्रोधित हुई और अग्निकुंड में स्वयं की आहूति दे दी। जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने रौद्र रूप धारण किया और उन्होंने अपनी जटाओं से वीरभद्र को प्रकट किया, जिसे राजा दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने को कहा था।

भगवान शिव ने वीरभद्र को किया था शांत

आचार्य विनीत शर्मा ने बताया कि वीरभद्र जब वर्तमान वीरभद्र मंदिर के स्थल पर भगवान शिव के पास पहुंचे तो वह शांत नहीं हुए तो भगवान शिव ने वीरभद्र को शांत किया। तत्पश्चात भगवान शिव व वीरभद्र शिवलिंग के रूप में स्थापित हुए। यह शिवलिंग शिव व वीरभद्र के रूप में दो भागों में विभाजित है। इसी कारण इस स्थान को वीरभद्रेश्वर या वीरभद्र महादेव के नाम से जाना जाता है। यह सब वर्णन मंदिर परिसर के बाहर पुरातत्व विभाग की शिलापट में भी उपलब्ध है।

वीरभद्र में कई दिव्य शक्तियों का होता है आभास

मंदिर के पुजारी आचार्य विनीत शर्मा ने बताया कि वीरभद्र में भगवान शिव मां उमा के साथ रहते थे। आज भी इस स्थल में कई दिव्य शक्तियों का आभास किया जाता रहा है। बताया कि महापर्वों पर कई बार मंदिर में घंटियों की आवाज सुुनाई देती हैं, जब वे चारों ओर घूमकर देखते हैं तो पता चलता है कि वहां कोई नहीं है।

ध्यान व आध्यात्म के लिए भी सबसे पवित्र स्थल

भगवान शिव की स्थली वीरभद्र को मेडिटेशन व आध्यात्म के लिए भी पवित्र स्थल माना जाता है। मंदिर के सदस्यों ने बताया कि महान संत स्वामी राम व महर्षि महेश योगी ने भी वीरभद्र मंदिर में ध्यान साधना की है। उन्होंने भी इस स्थान को ध्यान के लिए बहुत ही प्रभावशाली माना है।

मंदिर परिसर में खोदाई से निकलते हैं शिवलिंग

पुजारी आचार्य विनीत शर्मा के अनुसार, इस मंदिर के परिसर में खोदाई के दौरान अनेक शिवलिंग प्राप्त हुए हैं। पुरातत्व विभाग ने भी अपने सर्वेक्षण में यहां शिवलिंगों का प्राप्त होने को विशिष्ट घटना माना है। बताया कि मंदिर का वर्तमान भवन भी 1300 वर्षों पुराना है।

एक लाख से ज्यादा भक्त करते हैं वीरभद्र का जलाभिषेक

दरअसल, ऋषिकेश के वीरभद्र में महाशिवरात्रि का आयोजन बेहद भव्य होता है। नीलकंठ महादेव की तरह ही यहां भी शिवभक्तों का तांता लगा रहता है। ऋषिकेश ही नहीं, श्यामपुर, हरिद्वार, देहरादूूून से अधिक संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया कि महाशिवरात्रि से एक दिन पहले रात 9 से 10 बजे तक यहां लोग मंदिर में प्रवेश के लिए जुटने शरू हो जाते हैं। मध्यरात्रि 12 बजे मंदिर के द्वार भक्तों के लिए खोले जाते हैं, जिसके बाद भक्त वीरभद्र महादेव का जलाभिषेक करते हैं। यहां हर साल एक लाख से ज्यादा भक्तों के पहुंचने का अनुमान लगाया गया है।

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