Move to Jagran APP

Mahasamar 2024: भू-कानून पर गर्माती रही है उत्तराखंड की राजनीति, कई बार हुआ संशोधन; लेकिन नहीं बनी बात

Mahasamar 2024 प्रदेश में सशक्त भू-कानून की मांग को लेकर राजनीति गर्माती रहती है। नौ नवंबर 2000 को अलग राज्य के अस्तित्व में आने के साथ ही भूमि की खरीद-फरोख्त पर अंकुश लगाने की मांग उठने लगी। प्रदेश में वर्ष 2002 में पहली निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार ने भूमि कानून को कड़ा बनाने के लिए कदम उठाए। वर्ष 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने भू-कानून में संशोधन किया।

By Jagran News Edited By: Nirmala Bohra Updated: Sat, 23 Mar 2024 03:45 PM (IST)
Hero Image
Mahasamar 2024: प्रदेश में सशक्त भू-कानून की मांग को लेकर राजनीति गर्माती रहती है।
रविंद्र बड़थ्वाल l Mahasamar 2024: देहरादून उत्तराखंड में भूमि का मुद्दा जन भावनाओं से गहरा जुड़ा हुआ है। उच्च और दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र हों अथवा कम ऊंचाई वाले स्थान या तराई क्षेत्र, विषम भौगोलिक परिस्थितियों को चुनौती देते हुए विविध रंगों से सरोबार संस्कृति फली-फूली है।

पृथक राज्य बनने के बाद इस मध्य हिमालयी क्षेत्र की जनाकांक्षाओं को उम्मीदों को नए पर मिले, लेकिन इन उम्मीदों के उड़ान भरने की राह में 71 प्रतिशत संरक्षित वन क्षेत्र, पर्यावरणीय बंदिशें और उपलब्ध बेहद सीमित भू-भाग आड़े आ गए। अस्पतालों, शिक्षण संस्थानों जैसे जन उपयोगी कार्यों, आवश्यक सुविधाओं के विस्तार, अवस्थापना और औद्योगिक विकास के लिए भूमि की उपलब्धता बड़ी चुनौती है।

परिणामस्वरूप पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं, बड़े पैमाने पर भूमि की अनियोजित खरीद-फरोख्त ने जनसांख्यिकीय में तेजी से बदलाव की नई समस्या को जन्म दे दिया है। इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। इस कारण प्रदेश में सशक्त भू-कानून की मांग को लेकर राजनीति गर्माती रहती है।

त्रिवेंद्र सरकार का लचीला रुख

वर्ष 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने भू-कानून में संशोधन किया। पूंजी निवेश को आकर्षित करने, कृषि, बागवानी के साथ ही उद्योग, पर्यटन, ऊर्जा, शिक्षा व स्वास्थ्य समेत विभिन्न व्यावसायिक व औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमि खरीद का दायरा 12.5 एकड़ से बढ़ाकर 30 एकड़ तक किया गया।

संशोधित भू-अधिनियम में कुछ मामलों में 30 एकड़ से ज्यादा भूमि खरीदने की व्यवस्था भी रखी गई है। भूमि कानून के इसी लचीले रूप का विरोध किया गया। नौ नवंबर, 2000 को अलग उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के साथ ही भूमि की खरीद-फरोख्त पर अंकुश लगाने की मांग उठनी शुरू हो गई थी।

राज्य बनने पर उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश का भूमि अधिनियम लागू रहा। इस वजह से अन्य राज्यों के निवासियों के भूमि खरीद-फरोख्त पर पाबंदी नहीं थी। अलग प्रदेश बनने के बाद जमीनों का धंधा तेजी से बढ़ा तो भूमि कानून को सख्त बनाने की मांग भी शुरू हो गई।

एनडी तिवारी सरकार में प्रतिबंध के बाद भी बढ़ी भूमि खरीद

प्रदेश में वर्ष 2002 में पहली निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार ने भूमि कानून को कड़ा बनाने के लिए कदम उठाए। वर्ष 2003 में उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम, 1950 (अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश 2001) अधिनियम की धारा 154 में संशोधन कर बाहरी व्यक्ति के लिए आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्गमीटर भूमि खरीदने को ही अनुमति देने का प्रतिबंध लगाया गया।

साथ ही कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध लगा दिया गया। 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देने का अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया। चिकित्सा, स्वास्थ्य, औद्योगिक उपयोग के लिए भूमि खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य किया गया।

यह प्रतिबंध भी लगाया गया कि जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है, उसे दो साल में पूरा करना होगा। बाद में यह ढील दी गई कि परियोजना तय अवधि में पूरी नहीं होने की स्थिति में कारण का हवाला देकर इसमें विस्तार लिया जा सकेगा। यह अलग बात है कि इस प्रतिबंध के बाद भी भूमि की खरीद-फरोख्त तेजी से बढ़ी।

खंडूड़ी सरकार ने कानून को बनाया सख्त

तिवारी सरकार में राज्य को औद्योगिक पैकेज मिला तो औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिए कृषि भूमि की बड़े पैमाने पर खरीद हुई। राज्य में बड़ी संख्या में नए उद्योग लगे। इस अवधि में भूमि की खरीद-फरोख्त ज्यादा हुई और भूमि का उद्योग लगाने या अन्य विकास गतिविधियों में उपयोग के स्थान पर अनियोजित तरीके से आवासीय उपयोग के लिए किया जाने लगा।

इसके विरोध में आवाज बुलंद हुई तो प्रदेश की दूसरी निर्वाचित सरकार ने वर्ष 2007 में भू-कानून में संशोधन कर उसे कुछ और सख्त बना दिया। खंडूड़ी सरकार ने 500 वर्गमीटर भूमि खरीद की अनुमति को घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया। भू-कानून को लेकर पिछली तिवारी सरकार के अन्य प्रविधान लागू रहे।

राज्य की आवश्यकता और उद्योगों को बढ़ावा देने खासतौर पर लघु, मध्यम एवं छोटे उद्यमों की मांग को देखते हुए सरकार ने कानून को और सख्त बनाने से गुरेज ही किया।

हिमाचल प्रदेश में किसान ही खरीद सकते हैं कृषि भूमि

उत्तराखंड में भी हिमाचल की तर्ज पर भूमि कानून बनाने की मांग की जा रही है। दोनों राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियां तकरीबन समान हैं। दोनों राज्यों में लागू भूमि कानूनों में बड़ा अंतर है। हिमाचल में कृषि भूमि खरीदने की अनुमति तब ही मिल सकती है, जब खरीदार किसान ही हो और हिमाचल में लंबे अरसे से रह रहा हो।

हिमाचल प्रदेश किराएदारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 के 11वें अध्याय ‘कंट्रोल आन ट्रांसफर आफ लैंड’ की धारा-118 के तहत गैर कृषकों को जमीन हस्तांतरित करने पर रोक है। यह धारा ऐसे किसी भी व्यक्ति को जमीन हस्तांतरण पर रोक लगाता है जो हिमाचल प्रदेश में कृषक नहीं है। हिमाचल में राज्य का गैर-कृषक व्यक्ति भी जमीन नहीं खरीद सकता है।

धामी सरकार ने कड़े कानून की दिशा में बढ़ाए कदम

पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश में हिमाचल की भांति सशक्त भू-कानून की मांग तेज हुई तो भाजपा की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार ने प्रदेश में वर्तमान भू-कानून में संशोधन के दृष्टिगत पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था। सुभाष कुमार समिति ने पांच सितंबर, 2022 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

समिति ने अपनी संस्तुति में माना कि कृषि व औद्योगिक उद्देश्य से दी गई भूमि खरीद की अनुमति का दुरुपयोग हुआ। इसकी अनुमति शासन स्तर से देने समेत 23 संस्तुतियां समिति ने की। सरकार की पहल पर पिछले दिनों समिति की रिपोर्ट और संस्तुतियों के अध्ययन के लिए उच्च स्तरीय प्रवर समिति गठित की गई। साथ ही मुख्यमंत्री धामी के निर्देश पर कृषि और उद्यानिकी के लिए भूमि खरीद की अनुमति देने से पहले खरीदार और विक्रेता का सत्यापन करने के निर्देश दिए गए।

प्रवर समिति की रिपोर्ट के बाद सरकार ने सशक्त भू-कानून के लिए आवश्यक कदम उठाने का इरादा जताया है। यद्यपि, सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि औद्योगिक प्रयोजन और अस्पतालों व शिक्षण संस्थानों जैसे जनोपयोगी कार्यों के लिए भूमि की आवश्यकता को ध्यान में रखा जाएगा।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।