नौ साल में वन्यजीवों के हमलों में गई 416 व्यक्तियों की जान, 2186 हुए घायल
नौ साल में वन्यजीवों के हमलों में 416 व्यक्तियों की जान गई जबकि 2186 घायल हुए। जबकि 36698 मवेशियों को जंगली जानवरों ने निवाला बनाया।
By Edited By: Updated: Tue, 01 Sep 2020 10:26 PM (IST)
केदार दत्त, जेएनएन। नौ साल में वन्यजीवों के हमलों में 416 व्यक्तियों की जान गई, जबकि 2186 घायल हुए। 36698 मवेशियों को जंगली जानवरों ने निवाला बनाया तो 2329.512 हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों को तबाह कर दिया। 461 घरों को भी वन्यजीवों ने क्षतिग्रस्त किया। यह है उत्तराखंड में निरंतर गहराते मानव-वन्यजीव संघर्ष की तस्वीर। हालांकि, अब इसे थामने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं, लेकिन वह तेजी नजर नहीं आ रही, जिसकी दरकार है।
यह ठीक है कि विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाला उत्तराखंड वन्यजीव संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यहां राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय विरासत पशु हाथी का बढ़ता कुनबा इसका प्रमाण है। बावजूद इसके तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। वन्यजीव स्थानीय निवासियों के लिए जान के खतरे का सबब बन गए हैं। खासकर, गुलदारों ने पहाड़ से लेकर मैदानी क्षेत्रों तक नींद उड़ाई हुई है। ये घर -आंगन और खेत-खलिहानों में ऐसे धमक रहे, मानो पालतू जानवर हों। यही नहीं, हरिद्वार से लेकर रामनगर तक के क्षेत्र में हाथियों की धमाचौकड़ी ने नाक में दम किया हुआ है। इसके साथ ही मवेशियों और फसलों को नुकसान पहुंचाकर वन्यजीव किसानों की मेहनत पर भी निरंतर पानी फेर रहे हैं। वन्यजीवों का मानव के साथ टकराव का यह सिलसिला अब ज्यादा तेज हो चला है। हालांकि, राज्य गठन के बाद से ही इसे थामने के लिए हर स्तर पर बातें तो खूब हुई, मगर धरातल पर गंभीरता से कोई कदम उठाए गए हों, ऐसा नजर नहीं आता। अब तो पानी सिर से ऊपर बहने लगा है और विभागीय आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। जाहिर है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष थामने के लिए अब तेजी से कदम बढ़ाने की जरूरत है।
वहीं, उत्तराखंड के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग का कहना है कि निश्चित रूप से मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ता टकराव चिंताजनक है। इसे थामने के लिए अब प्रत्येक प्रभावित क्षेत्र में विलेज वालियेंटर प्रोटक्शन फोर्स के गठन की कसरत तेज की गई है। साथ ही विभाग की रैपिड रिस्पांस टीमें भी तैनात की जा रही हैं। वन सीमा पर सोलर फेंसिंग, वन्यजीवरोधी बाड़ समेत अन्य कदम उठाए जा रहे हैं। जनजागरण पर भी जोर दिया जा रहा है।
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2012-13 49 218 5144 374.32 162013-14 34 220 3157 145.11 522014-15 32 193 2583 167.51 172015-16 43 170 3244 307.390 45
2016-17 69 463 8187 486.348 662017-18 39 285 4773 270.764 512018-19 60 234 3315 242.578 812019-20 68 304 4364 306.073 110
2020-21 (जुलाई 2020 तक) 22 99 1931 29.419 23 (नोट: फसल क्षति हेक्टेयर में और शेष संख्या में) यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2020: पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक है श्राद्ध, यहां पढ़ें किस तारीख कौन सा श्राद्ध
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