उत्तराखंड में हाथियों को आबादी की तरफ आने से रोकेंगे कांटेदार बांस और मधुमक्खियां
गजराज और मनुष्य के बीच टकराव टालने को अब नए उपाय धरातल पर उतारा जाएंगे। यहां कांटेदार बांस अगेव अमेरिकाना के साथ ही मधुमक्खियां हाथियों को आबादी की तरफ आने से रोकेंगे।
By Edited By: Updated: Tue, 28 Jul 2020 11:00 AM (IST)
देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड में यमुना से लेकर शारदा नदी तक के हाथी बहुल क्षेत्र में गजराज और मनुष्य के बीच टकराव टालने को अब नए उपाय धरातल पर उतारा जाएंगे। यहां कांटेदार बांस, अगेव अमेरिकाना के साथ ही मधुमक्खियां हाथियों को आबादी की तरफ आने से रोकेंगे। वन विभाग की अनुसंधान विंग को इसके लिए अनुसंधान सलाहकार समिति (आरएसी) से मंजूरी मिल गई है। श्यामपुर और लालकुंआ क्षेत्र में यह प्रयोग किए जाएंगे। इसके साथ ही हाथियों को जंगल में थामने के मद्देनजर अब तक उठाए गए कदमों की भी समीक्षा की जाएगी।
यमुना से लेकर शारदा तक राजाजी व कार्बेट टाइगर रिजर्व के अलावा 13 वन प्रभागों के 6643.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हाथियों का बसेरा है। एक दौर में यहां हाथियों का स्वछंद विचरण था, मगर वक्त के करवट बदलने के साथ ही इनकी आवाजाही बाधित हुई है। जंगल से कहीं रेल लाइन व हाईवे गुजर रहे हैं, तो कहीं मानव बस्तियां उग आई हैं। नतीजा, जंगल की देहरी पार करते ही इनका मनुष्य से टकराव हो रहा। आंकड़े बताते हैं कि गत वर्ष हाथियों के हमलों में 12 लोगों की जान गई, जबकि 20 हाथियों की मौत हुई। इस साल ही अब तक नौ हाथियों की मौत हो चुकी है। हालांकि, हाथियों को जंगल में ही थामने को सोलर फेंसिंग, हाथीरोधी दीवार, खाई खुदान, वन सीमा पर लैमनग्रास का रोपण जैसे उपाय हुए, मगर अपेक्षित नतीजे नहीं मिल पा रहे हैं। इसे देखते हुए अब नए उपायों पर जोर दिया जा रहा। आरएसी ने भी वन विभाग की अनुसंधान विंग को इसकी अनुमति भी दे दी है।
मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि आरएसी ने वन सीमा पर कांटेदार बांस (बैंबूसा-बैंबूज), कांटेदार प्रजाति अगेव अमेरिकाना की बाड़ के अलावा मधुमक्खियों के जरिये हाथियों को रोकने के उपायों को झंडी दी है। कांटेदार बांस को हाथी पार नहीं कर पाते। अगेव अमेरिकाना की चौड़ी कांटेदार पत्तियां भी हाथी को रोकती हैं।यह भी पढ़ें: लच्छीवाला में ट्रेन की टक्कर से 15 फीट गहरे खड्ड में गिरा हाथी का बच्चा, मौत
आइएफएस चतुर्वेदी बताते हैं कि कर्नाटक व असम में मधुमक्खियों के जरिये हाथियों को भगाने का प्रयोग सफल रहा है। जब छत्ते में मधुमक्खियां नहीं रहतीं, तब इनकी आवाज की रिकार्डिंग से हाथी भगाए जाते हैं। वह बताते हैं कि अब राज्य में श्यामपुर व लालकुंआ में ये तीनों प्रयोग किए जाएंगे। इसके लिए 36.55 लाख की लागत की सात वर्षीय कार्ययोजना का खाका खींचा गया है।
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