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उत्‍तराखंड के मैदानी और पहाड़ी जिलों में है कुपोषण का मर्ज

उत्‍तराखंड के पहाड़ी जिलें में ही नहीं, मैदानी जिलों में भी कुपोषण का मर्ज है। ऐसा नहीं है कि इससे निपटने को कोईयोजना नहीं है। पर योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो रहा।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 03 Sep 2018 12:13 PM (IST)
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उत्‍तराखंड के मैदानी और पहाड़ी जिलों में है कुपोषण का मर्ज
देहरादून, [गौरव ममगाईं]: कुपोषण का मर्ज मैदानी ही नहीं, पहाड़ी जिलों को भी अपनी गिरफ्त में लेने लगा है। ऐसा नहीं है कि बाल एवं महिला विकास विभाग के पास इससे निपटने को योजना नहीं है। प्रदेश में टेक होम राशन, कुक्ड-फूड, ऊर्जा आहार समेत तमाम योजनाएं संचालित की जा रही हैं, पर योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं होने से कुपोषण का घाव गहरा होता जा रहा है। उत्तरकाशी व चमोली जैसे पर्वतीय जिले भी आज कुपोषण का दाग झेलने को मजबूर हैं। 

प्रदेश में पोषाहार योजनाओं का संचालन आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से किया जा रहा है। प्रदेश में कुल 20,066 केंद्र हैं। जहां, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ता एवं सहायिकाएं बच्चों व गर्भवती महिलाओं को पोषाहार मुहैया कराती हैं। इसके लिए पहले बच्चे व गर्भवती महिला का केंद्र में पंजीकरण होता है। केंद्रों में हर महीने पांच तारीख को लाभार्थियों को पोषाहार मुहैया कराना होता है। लेकिन, आमतौर पर यह समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता है। इन केंद्रों में योजनाओं का क्रियान्वयन बेहतर हो रहा है या नहीं, स्थिति में सुधार समेत अन्य वजहों की लगातार निगरानी की जानी चाहिए। आंगनबाड़ी केंद्रों के भी नियमित संचालन न होने की शिकायतें तमाम हैं। लेकिन, अधिकारी इसे गंभीरता से नहीं लेते। यही कई वजह हैं कि योजनाएं कारगर होने के बावजूद मकसद पूरा नहीं हो पा रहा।

अधिकारी नहीं कर रहे निरीक्षण

देहरादून समेत कई अन्य जिलों में अधिकारियों ने कुपोषण के खात्मे को आदेश तो कई बार दिए, लेकिन उनका पालन कराया। मुख्य विकास अधिकारी द्वारा कुपोषित बच्चों वाले आंगनबाड़ी केंद्रों की जिम्मेदारी जिला, खंड स्तरीय अधिकारियों को सौंपी गई थी। अधिकारियों को कुपोषित बच्चों को बेहतर व नियमित रूप से पोषाहार मुहैया कराना सुनिश्चित कराने को कहा गया था, लेकिन दिलचस्पी नहीं ली गई।

पंजीयन हैं, लाभ नहीं पहुंचता

आंगनबाड़ी केंद्रों की मासिक रिपोर्ट के अनुसार, प्रति माह आंगनबाड़ी केंद्रों में बड़ी संख्या में पात्र बच्चे व गर्भवती महिलाओं का पंजीयन किया जाता है। इन पंजीकृत पात्रों को लाभ पहुंचाना भी अनिवार्य है। लेकिन, करीब 20 से 25 फीसद पात्रों तक भी लाभ नहीं पहुंचता। 

यह हैं योजनाएं

  • टेक होम राशन: इस योजना में 6 माह से 3 वर्ष के बच्चों को खाद्यान्नों का एक पैकेट दिया जाता है। इसमें दलिया, राजमा, नमक, सूजी, मंडुआ, मूंग व अन्य दालें होती हैं। 
  • कुक्ड-फूड: इस योजना में बच्चों को पका हुआ भोजन दिया जाता है। इसमें पराठा, पुलाव, खिचड़ी समेत कई अन्य पका हुआ भोजन खिलाया जाता है।
  • ऊर्जा पोषाहार: ऊर्जा पोषाहार योजना में कुपोषित एवं अतिकुपोषित बच्चों को मूंगफली, मंडुआ, भïट्ट, घी, गुड़ व चौलाई जैसे पौष्टिक उत्पादों का पाउडर दिया जाता है। यह पाउडर दूध-पानी में सत्तू के रूप में दिया जाता है। यह शरीर में पोषण की कमी को पूरा करता है। 
कुपोषण से निजात के लिए चलाई गई हैं कई योजनाएं 

रणवीर सिंह चौहान (निदेशक, बाल एवं महिला विकास) का कहना है कि कुपोषण से निजात के लिए कई योजनाएं चलाई गई हैं। जिनके प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर है। अधिकारियों को आंगनबाड़ी केंद्रों की निरंतर निगरानी करने को भी कहा गया है। अब नियमित समीक्षा भी की जाएगी। 

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