क्रेडिट बेस्ड च्वाइस सिस्टम बना कॉलेजों के गले की हड्डी, पढ़िए पूरी खबर
सीबीसीएस कॉलेजों के गले की हड्डी बन गया है। यूं तो सिस्टम के अनेक फायदे हैं लेकिन बिना तैयारी एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का थोपा गया ये सिस्टम फेल होता नजर आ रहा है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Tue, 23 Jul 2019 05:01 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। पढ़ाई को सरल और शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए शुरू हुआ क्रेडिट बेस्ड च्वाइस सिस्टम (सीबीसीएस) कॉलेजों के गले की हड्डी बन गया है। यूं तो सिस्टम के अनेक फायदे हैं, लेकिन बिना तैयारी एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का थोपा गया यह सिस्टम फेल होता नजर आ रहा है। सीबीसीएस सिस्टम शुरू होने के बाद से ही विवि और विवि से संबद्ध कॉलेजों का परीक्षा सिस्टम ही गड़बड़ा गया है। आलम ये है कि परीक्षा परिणाम जानने के लिए छात्रों को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। परिणाम आता है तो ढेर सारी गलतियों के साथ, परिणाम ठीक कराने में हजारों छात्रों का समय और पैसा हर साल बर्बाद हो रहा है। यह सिस्टम न केवल गढ़वाल विवि बल्कि श्रीदेव सुमन में भी लागू है। जिससे करीब ढ़ाई लाख छात्र प्रभावित हैं।
पीजी में कामयाब पर यूजी में फेल रहा सिस्टम प्रदेश के कॉलेजों में सीबीसीएस सिस्टम पीजी पाठ्यक्रमों में पहले से ही चलता आया है। छात्र संख्या सीमित होने के चलते पीजी पाठ्यक्रमों में गलती की संभावना भी कम होती है। समय पर परिणाम जारी करना भी आसान हो जाता है। लेकिन यूजी में छात्रों की संख्या पीजी के मुकाबले दस गुना तक ज्यादा होती है। ऐसे में गलतियों की संभावनाएं भी दस गुना बढ़ जाती हैं।
सिस्टम लागू होने से शिक्षा स्तर में कमी सीबीसीएस सिस्टम लागू तो शिक्षा स्तर को बढ़ाने के लिए किया गया था। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही निकली। डीएवी गणित विभाग के प्रवक्ता डॉ. यूएस राणा ने बताया कि सीबीसीएस लागू होने से विषयों का पाठ्यक्रम कम हो गया है। जहां वार्षिक सिस्टम में एक विषय की लगभग बीस किताबें पढ़ाई जाती थी। लेकिन अब केवल छह किताबें रह गई हैं। इससे कई महत्वपूर्ण चेप्टर छात्र पढऩे से वंचित रह जाते हैं।
अकेले गणित विषय में यूजी के पाठ्यक्रम में कार्डिनेट ज्यामितीय, स्थिति विज्ञान, डाइनेमिक्स, ट्रिग्नोमेट्री, लीनियर प्रोग्रामिंग, कॉम्पलेक्स एनालिसिस, रियल एनालिसिस लगभग आधी छूट गई, इंटीग्र्रल कैलकुलस समेत अन्य कई महत्वपूर्ण टॉपिक्स सिलेबस से बाहर हो गए हैं। ऐसे में छात्रों के ज्ञान में कमी आना तय है। इसका सीधा प्रभाव छात्र के भविष्य पर पड़ता है। छात्र नेट, पीएचडी, जेम्स समेत अन्य उच्चतर शिक्षा की परीक्षाओं में पिछड़ जाते हैं। यही हाल अन्य सभी विषयों का भी है। डीएवी कॉलेज में सबसे ज्यादा खामियां
डीएवी पीजी कॉलेज प्रदेश के सबसे बड़े डिग्री कॉलेजों में शुमार है। यहां पर साढ़े बारह हजार छात्र एक सत्र में पढ़ाई करते हैं। बीए, बीएससी, बीकॉम समेत पीजी पाठ्यक्रमों के तमाम कोर्स यहां पर पढ़ाए जाते हैं। सिस्टम लागू होने के बाद पहला परिणाम जारी होने के बाद से ही यहां परिणाम में शिकायतों को लेकर छात्रों का तांता लगा रहता है। छात्रों की सर्वाधिक शिकायतें परिणाम में नंबर गलत आने, परीक्षा देने के बाद भी अनुपस्थिति लगने, परीक्षा में शून्य अंक चढ़ाए जाने को लेकर रहती है। ये हैं खूबियां
सीबीसीएस सिस्टम में मुख्य विषयों के अलावा लैंगवेज और स्किल की पढ़ाई होती है। इससे छात्रों को मुख्य विषयों के साथ अन्य विषयों को सीखने का मौका भी मिलता है। इससे कोर विषयों के अलावा छात्र भविष्य में स्किल विषयों में भी अपना कॅरियर बना सकते हैं। प्रतियोगिता परीक्षाओं में सहयोग मिलता है। ये हैं खामियां
छात्रों का अधिकतर समय परीक्षा देने और एसाइनमेंट बनाने में खर्च हो रहा है। परीक्षाओं के परिणाम समय पर जारी नहीं हो रहे हैं। परीक्षा में बैठने के बाद भी छात्र अनुपस्थित दिखाए जा रहे हैं। परीक्षा देने के बाद भी मार्कशीट में शून्य नंबर दर्ज हो रहे हैं। सॉफ्टवेयर में बड़ी खामियां
गढ़वाल विवि के परीक्षा सॉफ्टवेयर में शुरू से कई खामियां रही हैं। सिस्टम लागू होने के चार साल बाद भी स्थिति सुधरी नहीं है। मार्कशीट पर छात्रों के नंबर कई बार जीरो चढ़े हुए आ जाते हैं। पिछले साल डीएवी, डीबीएस, एसजीआरआर और एमकेपी के विभिन्न विषयों के लगभग तीन हजार छात्रों के परिणामों में गड़बड़ियों का मामला सामने आया था। इसके बाद देहरादून के कॉलेज प्रशासन को खुद गढ़वाल विवि जाकर मार्कशीट में सुधार करवाने पड़े थे। यही हाल श्रीदेव सुमन विवि के हैं। विवि के सॉफ्टवेयर को लेकर छात्र लगातार शिकायत कर रहे हैं। मार्कशीट में हो रही गलतियां छात्रों को परेशान कर रही हैं। कॉलेज स्तर पर कई दफा गलतियों के सुधार भी नहीं हो पाते। छात्रों को सुधार के लिए विश्वविद्यालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं। बैक के परिणामों में देरी से छात्र पढ़ाई से वंचित
सीबीसीएस में अगर छात्र किसी कारण से परीक्षा देने से वंचित रह गए या फेल हो जाते हैं तो वह बैक पेपर का सहारा लेते हैं। लेकिन बैक पेपर के परिणाम जारी होना किसी महाभारत से कम नहीं होता है। हाल यह हैं कि परिणामों में देरी होने के कारण छात्र आगे की पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं। पिछले साल गढ़वाल विवि और विवि से संबद्ध कॉलेजों के लगभग पचास छात्र अंतिम सेमेस्टर का परिणाम और पिछली कक्षाओं का बैक का परिणाम समय पर जारी नहीं होने से पंतनगर विवि में दाखिला लेने से वंचित रह गए थे। इसके अलावा छात्र बीएचयू, बीएड पाठयक्रम, आइआइटी समेत अन्य संस्थानों में विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने से वंचित रह गए थे। डीएवी कॉलेज के शिक्षक संघ अध्यक्ष डॉ. यूएस राणा का कहना है कि कम छात्र संख्या वाले कॉलेजों के लिए सीबीसीएस बेहतर विकल्प है। हिमाचल प्रदेश सिस्टम को सिरे से नकार चुका है। उत्तराखंड में भी यह सफल होता नहीं दिख रहा। सरकार को इसे यूजी पाठ्यक्रम से हटा देना चाहिए। एसजीआरआर कॉलेज के प्राचार्य डॉ. वीए बौड़ाई कहते हैं कि सीबीसीएस सिस्टम बहुत बढ़िया है। वर्तमान में इसे लागू करने में परेशानी जरूर हो रही है। लेकिन भविष्य में इसके बड़े फायदे मिलेंगे। लगातार परीक्षाएं होने से छात्र को खुद में सुधार करने का मौका मिलता है। वहीं एनएसयूआइ के सदस्य विकास नेगी ने कहा कि परीक्षाएं इतनी होती हैं कि कॉलेज में ही उलझ कर रह जाते हैं। क्लास कम लगती हैं परीक्षाएं ज्यादा होती हैं। ऐसे में छात्र सरकारी नौकरियों या अन्य जगह के लिए तैयारी नहीं कर पाते। प्रदेश में वार्षिक सिस्टम को दोबारा लागू करना चाहिए। डीएवी के प्राचार्य डॉ अजय सक्सेना ने बताया कि सेमेस्टर सिस्टम में साल मेंं 180 दिन की न्यूनतम कक्षाएं चलना अनिवार्य है। लेकिन प्रदेश के कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी है। कई दफा शिक्षक छुट्टी पर होते हैं तो कई बार छात्र नहीं आते। सिस्टम में कोई खराबी नहीं है। लेकिन सुविधाओं का पूरा होना अनिवार्य है। श्री देव सुमन विवि के कुलपति डॉ. यूएस रावत कहते हैं कि सीबीसीएस सिस्टम आधुनिक उच्च शिक्षा के लिए बेहतर प्रयास है। लेकिन विश्वविद्यालयों को अपनी सूचना प्रौद्योगिकी को अपग्रेड करना होगा। ताकि परीक्षा, मूल्यांकन और परिणाम त्रुटिविहीन हों और छात्र व्यवस्था पर उंगली न उठा सकें। वहीं, गढ़वाल विवि के कुलसचिव डॉ. एके झा का कहना है कि मिनिस्ट्री के निर्देश हैं कि विवि में सीबीसीएस लागू करना है। प्रदेश में अभी यह कामियाब होता नहीं दिख रहा। इसमें अंग्रेजी बड़ी समस्या है। विवि कमेटी बना कर सिस्टम में सुधार के प्रयास करेगी। यह भी पढ़ें: श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय में फेल छात्र को मिलेगा पास होने का चांसयह भी पढ़ें: दून विश्वविद्यालय में फ्रेंच और जर्मन लैंग्वेज बनीं फेवरेटयह भी पढ़ें: 32 साल बाद डीएवी कॉलेज से बैनर-पोस्टर को बाय-बाय, पढ़िए पूरी खबर
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