भूस्खलन की दृष्टि से उत्तराखंड के ये तीन जिले बेहद संवेदनशील, 45 बड़े भूस्खलन से हो चुका खासा नुकसान
उत्तराखंड में मानसून के दौरान भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि हुई है। रुद्रप्रयाग चमोली उत्तरकाशी और पौड़ी जिले सबसे अधिक प्रभावित हैं। राज्य में अब तक 63 बड़े भूस्खलन हो चुके हैं जिससे काफी नुकसान हुआ है। सरकार संवेदनशील क्षेत्रों की मैपिंग कराकर उपचारात्मक कदम उठाने की तैयारी कर रही है ताकि भविष्य में भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।

केदार दत्त, जागरण देहरादून। उत्तराखंड में इस बार मानसून में भूस्खलन की एक के बाद एक घटनाओं ने चिंता और चुनौती दोनों बढ़ा दी हैं। राज्य में मई से अब तक 12 जिलों में 63 स्थानों पर बड़े भूस्खलन हुए हैं, जिनमें जान-माल को भारी क्षति पहुंची है। भूस्खलन की दृष्टि से रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी व पौड़ी जिले अधिक संवेदनशील हैं।
अतिवृष्टि और बादल फटने के कारण इन्हीं जिलों में बड़े भूस्खलन की सर्वाधिक 45 घटनाएं हुई हैं। यद्यपि, भूस्खलन की चुनौती से निबटने के लिए अब संवेदनशील क्षेत्रों का चिह्नीकरण कर इनकी मैपिंग के लिए कसरत शुरू की जा रही है।
आपदा और उत्तराखंड का मानो चोली-दामन का साथ है। हर वर्षाकाल के चार महीनों में अतिवृष्टि, बादल फटना, भूस्खलन व नदियों की बाढ़ से राज्य को प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति झेलनी पड़ रही है। इस बार का परिदृश्य भी इससे जुदा नहीं है। वर्षा का क्रम जल्दी प्रारंभ होने का ही नतीजा है कि इस मर्तबा राज्य में भूस्खलन की घटनाएं अधिक हो रही हैं।
आपदा प्रबंधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार मई से अब तक 12 जिलों में भूस्खलन की 63 बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। हालांकि राज्य के सभी जिलों में छोटे-छोटे भूस्खलन की संख्या 2500 से अधिक है। गत वर्ष राज्य में मई से अगस्त तक बड़े भूस्खलनों की 40 घटनाएं हुई थीं, जबकि छोटे-छोटे भूस्खलन की संख्या 1800 से 2000 के बीच थी। इस बार चार जिलों में भूस्खलन से अधिक तबाही मचाई है।
इस बार बड़े भूस्खलन
- जिला, संख्या
- रुदप्रयाग, 13
- चमोली, 12
- उत्तरकाशी, 10
- पौड़ी, 10
- बागेश्वर, 04
- अल्मोड़ा, 04
- पिथौरागढ़, 03
- देहरादून, 02
- चंपावत, 02
- नैनीताल, 01
- टिहरी, 01
- हरिद्वार, 01
10 साल में 4770 स्थानों पर भूस्खलन
वर्ष 2015 से अब तक की तस्वीर पर नजर दौड़ाएं तो इस कालखंड में भूस्खलन की 4770 घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें 394 व्यक्तियों की जान गई, जबकि 300 से ज्यादा घायल हुए हैं।
''राज्य में इस बार अतिवृष्टि व बादल फटने की घटनाएं अधिक हुई हैं। ऐसे में भूस्खलन भी ज्यादा हुआ है। अब भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों का चिह्नीकरण कर इनकी मैपिंग की जाएगी और फिर वहां उपचारात्मक कदम उठाए जाएंगे। मैपिंग का कार्य विभिन्न संस्थानों के विज्ञानियों की मदद से किया जाएगा।'' -डा शांतनु सरकार, निदेशक, उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र।
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