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देहरादून : सिस्टम होगा बेहतर होगा तभी लोगों को मिलेगी अच्‍छी स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं

उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर एक बड़ा मिथक है कि सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही डॉक्टरों और अस्पतालों का अभाव है। शहरों में स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त हैं, दुर्भाग्य से यह बात सच नहीं है।

By Krishan KumarEdited By: Updated: Fri, 13 Jul 2018 06:00 AM (IST)

बेहतर स्वास्थ्य की गारंटी कोई नारा नहीं, ये जरूरत है और अधिकार भी। लिहाजा, हेल्थ गवर्नेंस पर अधिक फोकस करने की जरूरत है। बात समझने की है कि सिस्टम बेहतर होगा तो इसी के अनुरूप जनसामान्य को सुविधाएं भी मिल सकेंगी। यह कहना है उत्तराखंड के पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ.आरपी भट्ट का।

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भट्ट कहते हैं कि बजट की कमी, वित्तीय कुप्रबंधन, मानव संसाधन की कमी, उपलब्ध संसाधनों की शिथिलता और निष्क्रियता, उपकरणों की कमी या देखरेख में कोताही, प्रबंधकीय अयोग्यताओं, प्रशिक्षण और सामथ्र्य विकास की सुस्त कोशिशों के चलते स्वास्थ्य मशीनरी की सेहत गड़बड़ाई हुई है। उनके अनुसार स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, औषधि नियंत्रण, साफ सफाई आदि की जिम्मेदारियां आज बंटी हुई हैं और अधिकारियों के अधिकार सीमित। ऐसे में आवश्यक है कि हमें एकीकृत प्रणाली पर काम करना होगा।

बढ़ानी होंगी प्राथमिक स्तर की सुविधाएं
विषम भूगोल वाले उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहद करीब से देख चुके डॉ. भट्ट के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर एक बड़ा मिथक है कि सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही डॉक्टरों और अस्पतालों का अभाव है। अलबत्ता, शहरों में स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त हैं, दुर्भाग्य से यह बात सच नहीं है। शहरों में अधिकतर बड़े अस्पताल हैं, जहां गंभीर अवस्था में ही रोगी पहुंचते हैं।

असल में प्राथमिक स्तर की सुविधाएं जनस्वास्थ्य में सुधार में सबसे अहम भूमिका निभाती हैं, जो शहरों में भी जरूरत से बहुत कम हैं। देहरादून भी इससे अछूता नहीं है। जिन नर्सिंग होम को देखकर हमें लगता है कि बड़े शहरों में इलाज की सुविधा में कोई कमी नहीं है, वह प्राइवेट हैं और वहां उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाएं अत्यंत महंगी होने के कारण गरीबों की पहुंच से बाहर हैं।

बीमारियों की रोकथाम पर हो फोकस
शहर की बात करें तो यहां अब एक बड़ी आबादी मलिन बस्तियों में रहती है। जहां शौचालय, जलनिकास और कूड़ा निपटान की समुचित व्यवस्था नहीं है। इसके अलावा सीवर और सुरक्षित पीने के पानी का भी अभाव है। इन बस्तियों में आबादी अत्यंत घनी है, जिनमें सफाई, स्वास्थ्य और अन्य मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण संक्रामक रोगों की आशंका हमेशा बनी रहती है।

आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं कि लोग बीमारियों को लेकर उतने सजग नहीं रहते पर बीमार पड़ने के बाद कहीं ज्यादा खर्च कर डालते हैं। लिहाजा, हमें अपनी नीतियों में इस बात का समावेशन करना होगा कि हमारा खर्च रोगों के इलाज में कम रहे, जबकि बीमारियों की रोकथाम में अधिक। यदि सुनियोजित ढंग से शहरी स्वास्थ्य मिशन जैसे कार्यक्रम नहीं चलाए गए तो स्थिति विकराल हो सकती है।

विभागों में हो बेहतर तालमेल
डॉ. भट्ट कहते हैं कि शहरी क्षेत्र के गरीबों के स्वास्थ्य के लिए बहुत सी एजेंसियां जैसे कि स्वास्थ्य विभाग, आइसीडीएस, नगर पालिकाएं/नगर निगम, स्वयंसेवी संस्थाएं, अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसियां और कॉरपोरेट सेक्टर एक दूसरे से अलग बिना तालमेल के कुछ-कुछ कार्य करते हैं। इन तमाम संबधित विभागों एवं एजेंसियों के बीच ऊपर से लेकर जमीनी स्तर तक समन्वय सुनिश्चित करना होगा।

स्वास्थ्य केंद्रों पर हो फोकस
स्वयंसेवी संस्थाओं के अनुभवों और उपलब्ध संसाधनों द्वारा इस शहरी स्वास्थ्य मिशन को काफी मजबूत किया जा सकता है। हेल्थ सिस्टम को मजबूत बनाने लिए जरूरी है कि स्वास्थ्य उप केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को लगातार केंद्र में रखा जाए। स्वास्थ्य समस्याओं का तीन-चौथाई दरअसल प्राथमिक एवं उपचारात्मक स्वास्थ्य मुद्दों से ही जुड़ा है, लिहाजा अधिकारियों के लिए इन स्तरों पर संसाधनों को सशक्त बनाना जरूरी है।

- डॉ. आरपी भट्ट,
(उत्तराखंड के पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक हैं )

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