देहरादून में 25 फीसद नक्शे अब आर्किटेक्ट ही कर देंगे पास, पढ़िए पूरी खबर
अब छोटे घर का निर्माण करने वाले लोग न सिर्फ आर्किटेक्ट से नक्शा तैयार करवाएंगे बल्कि उनसे ही नक्शा पास भी करा लेंगे। इसके बाद आर्किटेक्ट की ही जिम्मेदारी रहेगी।
By Edited By: Updated: Fri, 30 Aug 2019 06:00 AM (IST)
देहरादून, जेएनएन। दून में जिस तरह जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं, उसे देखते हुए अब बड़ी संख्या में भवनों का निर्माण 100 से 125 गज के भूखंड पर किया जाने लगा है। यानी कि लो-रिस्क श्रेणी (कम खतरे वाले) के भवनों के नक्शे पास करने में दी गई छूट का खासा असर नजर आएगा। क्योंकि 105 वर्गमीटर (करीब 125 गज) तक के आवासीय भवनों के नक्शे पास करने के लिए लोगों को मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। कम से कम 25 से 30 फीसद लोग अब इतने ही आकार के भूखंड पर आवासीय निर्माण कराने लगे हैं।
एमडीडीए के उपाध्यक्ष डॉ. आशीष श्रीवास्तव ने बताया कि अब तक की व्यवस्था में पहले लोग नक्शा तैयार कराने के लिए आर्किटेक्ट के पास जाते हैं और फिर आर्किटेक्ट एमडीडीए की साइट पर ऑनलाइन नक्शा दाखिल करते हैं। इसके बाद कई दफा लोगों को अनावश्यक रूप से एमडीडीए कार्यालय के चक्कर भी काटने पड़ते हैं। हालांकि, अब छोटे घर का निर्माण करने वाले लोग न सिर्फ आर्किटेक्ट से नक्शा तैयार करवाएंगे, बल्कि उनसे ही नक्शा पास भी करा लेंगे। इसके बाद आर्किटेक्ट की ही जिम्मेदारी रहेगी कि वह डेवलपमेंट चार्ज (विकास शुल्क) वसूल कर पास किया गया नक्शा एमडीडीए में दाखिल कराए। कैबिनेट के निर्णय के बाद शासनादेश जारी होते ही नई व्यवस्था के हिसाब से कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी।
तीन मंजिल तक के भवन आएंगे दायरे में
105 वर्गमीटर तक के भूखंड पर लो रिस्क श्रेणी में नौ मीटर यानी तीन मंजिल तक का भवन तैयार किया जा सकता है। इस तरह एक अच्छा-खासा भवन का नक्शा भी महज अर्किटेक्ट के माध्यम से ही पास कराया जा सकता है। इसके अलावा कवर्ड एरिया की बात करें तो प्रत्येक मंजिल पर अधिकतम 350 वर्गमीटर तक का निर्माण भी लो-रिस्क के दायरे में आता है। हालांकि, पर्वतीय क्षेत्रों में लो-रिस्क के लिए ऊंचाई का मानक 7.5 मीटर ही है।
10 डिग्री से अधिक नहीं होना चाहिए ढाल
लो-रिस्क भवनों के निर्माण के लिए इस बात का ख्याल रखना भी जरूरी है कि जमीन का ढाल 10 डिग्री से अधिक नहीं होना चाहिए।
आर्किटेक्ट की बढ़ी जिम्मेदारी, कार्रवाई भी तय
लो-रिस्क भवनों के नक्शे पास करने को लेकर अर्किटेक्ट पर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। उन्हें न सिर्फ अब भूपयोग का पूरा ध्यान रखना है, बल्कि यह सुनिश्चित भी करना है कि जहां का नक्शा पास किया जा रहा है, उस भूखंड का ले-आउट पास है या नहीं। क्योंकि किसी भी तरह की अनियमितता पर अर्किटेक्ट पर कार्रवाई भी की जा सकती है। उत्तराखंड इंजीनियर्स एंड आर्किटेक्ट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष डीएस राणा का कहना है कि अब आर्किटेक्ट को अपना काम और भी सतर्क रहकर करना होगा। क्योंकि उन्हें लोगों की सुविधा का ध्यान रखने के साथ नियमों को पालन भी हर हाल में पूरा करना है।
एमडीडीए ने की 38 बीघा प्लॉटिंग ध्वस्त और दुकान सीलमसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) ने अवैध निर्माण के खिलाफ अभियान जारी रखते हुए अलग-अलग क्षेत्र में 38 बीघा अवैध प्लॉटिंग को ध्वस्त कर दिया। बुधवार को एमडीडीए की तरफ से जारी प्रेस बयान में बताया गया कि मन्नू गोयल व दीपक नेगी ने रिंग रोड पर बिना ले-आउट पास कराए 30 बीघा भूमि पर प्लॉटिंग कर ली थी। अवैध प्लॉटिंग पर चालान भी काटा गया था और इसकी बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद भी प्लॉटिंग जारी रहने पर एमडीडीए की टीम ने जेसीबी से इसे ध्वस्त कर दिया। वही, वाणी विहार में नरेंद्र जैन, दिनेश जैन की करीब आठ बीघा भूमि पर की गई अवैध प्लॉटिंग को भी ध्वस्त कर दिया गया। इसके अलावा कंडोली में स्वीकृत नक्शे से इतर तैयार किए गए कमरे व एक दुकान को एमडीडीए की टीम ने सील कर दिया। एमडीडीए इन सभी कार्रवाई में सहायक अभियंता एमके जोशी, टीएस पंवार, प्रमोद मेहरा, अवर अभियंता प्रेमप्रकाश पैन्यूली, राकेश, अमरलाल, सतीश, ललित आदि शामिल रहे।शेल्टर फंड पूरा चुकाने पर ही कंप्लीशन सर्टिफिकेटएक तरफ राज्य सरकार ने गरीबों के आवास का निर्माण न करने वाले बिल्डरों को जहां किश्तों में शेल्टर फंड चुकाने की सुविधा दी है, वहीं इसके नियम भी कड़े कर दिए हैं। जो बिल्डर अपनी आवासीय परियोजना में ईडब्ल्यूएस आवास का निर्माण नहीं करते हैं, उन्हें उसके एवज में सरकार को शेल्टर फंड जमा करना होगा। हालांकि, इस राशि को किश्तों में विभाजित कर दिया गया है। तीन करोड़ रुपये तक के फंड के लिए चार किश्तें तय की गई हैं, जबकि तीन करोड़ रुपये से अधिक की राशि पर आठ किश्तें तय कर दी गई हैं। पहले इस राशि को अदा करने के लिए सिर्फ तीन किश्तों का ही विकल्प था। एमडीडीए उपाध्यक्ष डॉ. आशीष श्रीवास्तव ने बताया कि पहली किश्त नक्शा जमा करते समय ही अदा करनी होगी। इसके अलावा, शेल्टर फंड की पूरी राशि अदा करने के बाद ही कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा। तब तक यह प्रमाण पत्र देय नहीं होगा और रेरा के नियमों के अनुरूप बिल्डरों को कंप्लीशन सर्टिफिकेट अनिवार्य रूप से प्राप्त करना है, लिहाजा शेल्टर फंड को लेकर किसी तरह की हीलाहवाली भी नहीं की जा सकेगी।पुरातात्विक महत्व के भवन यथावत रखेंगेफसाड नीति के अनुसार पुरातात्विक महत्व के भवनों के स्वरूप को यथासंभव यथावत रखा जाएगा। ऐसे भवनों के लिए बाह़्य आवरण के लिए पूर्वकालिक भवन निर्माण कला के अनुरूप ही डिजाइन विकल्प प्रदान किए जाएंगे। इसके अलावा ऐसे भवन जो ऐतिहासिक विरासत व वास्तुकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, उनके आवरण को परिवर्तित करने की आवश्यकता नहीं होगी।यह भी पढ़ें: यातायात अभियान: संविधान में व्यवस्था, पुलिस-प्रशासन की आंखें बंद Dehradun Newsअब एक रूप-रंग में नजर आएंगे शहर-कस्बेशहरी क्षेत्र अब एक रूप-रंग में नजर आएंगे। राज्य के शहरी और अर्धशहरी क्षेत्रों में मुख्य मागों पर अनियंत्रित व अनियोजित रूप से बने भवनों के बाहरी आवरण में एकरूपता के लिए कैबिनेट ने बाहय आवरण (फसाड) नीति को मंजूरी दे दी है। इसे प्रोत्साहित करने के लिए उत्तराखंड की संस्कृति और पारंपरिक शैली अपनाने पर भवन में एक अतिरिक्त मंजिल की छूट प्रदान की जाएगी। इसके अलावा शहरों-कस्बों में मुख्य मार्गों पर साइन बोर्ड, नाम पट्टिका, फ्लैक्स, बैनर भी फसाड नीति के अनुसार ही लगाए जा सकेंगे।राज्य में नगरीय क्षेत्रों का विस्तार तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में शहरों-कस्बों पर बने भवनों के नियोजित विकास के मद्देनजर फसाड नीति लाई गई है। इसके तहत मुख्य मार्गों से लगे भवनों के रंग-रोगन, सूचना पट्टिकाएं और बाहय आवरणों को नियंत्रित व नियोजित किया जाना है। अभी तक इन भवनों के बाह्य आवरणों में एकरूपता नहीं है। अब नीति के तहत मुख्य सड़क की ओर बने व्यावसायिक प्रतिष्ठानों व आवासीय भवनों के बाह्य आवरण के लिए डिजाइन का विकल्प तैयार किया जाएगा। इसके तहत एक रूप एक रंग की सूचना पट्टिकाएं और स्थानीय वास्तुकला के अनुसार बाहय आवरण केा प्रोत्साहित किया जाएगा। नीति के अनुसार बाह्य आवरण का डिजाइन और रंगों का निर्धारण जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण अथवा अन्य प्राधिकरणों द्वारा स्थानीय हितधारकों से विमर्श के उपरांत किया जाएगा। बाह्य आवरण को उत्तराखंड की संस्कृति व पारंपरिक शैली के अनुरूप परिवर्तित करने पर भवन उपविधि मानकों के अनुसार एक अतिरिक्त तल की छूट प्रदान की जाएगी। इस अतिरिक्त तल के लिए पार्किंग जरूरी होगी। बाह्य आवरण नीति मुख्य सड़कों पर महायोजना मार्ग पर मैदानी क्षेत्र में उपलब्ध नौ मीटर अथवा इससे अधिक पर लागू होगी। पर्वतीय क्षेत्र में उपलब्ध मार्ग छह मीटर अथवा उससे अधिक और पैदल मार्ग दो मीटर व उससे अधिक की सड़कों पर लागू होगी। पर्यटन की गतिविधियों को बढ़ावा देने को क्षेत्र विशेष की संस्कृति के अनुरूप बाह्य आवरण की अनुमति प्राधिकरण बोर्ड द्वारा दी जा सकेगी।यह भी पढ़ें: यहां अब मुख्य मार्गों पर नहीं दौड़ते दिखेंगे ई-रिक्शा, जानिए किस रूट पर चलेंगे
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।