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Coronavirus: विक्रम और बसों में कोरोना से बचाव के नहीं हो रहे हैं उपाय Dehradun News

बसों और विक्रमों में भीड़ यथावत है। इस बारे में न तो प्रशासन ने कोई आदेश दिया है और न बस-विक्रम महासंघ ने चालक-परिचालकों को मास्क व सैनिटाइजर ही उपलब्ध कराए हैं।

By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Updated: Tue, 17 Mar 2020 12:41 PM (IST)
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Coronavirus: विक्रम और बसों में कोरोना से बचाव के नहीं हो रहे हैं उपाय Dehradun News
देहरादून, जेएनएन। कोरोना वायरस से बचाव के लिए इन दिनों देश के कई राज्यों में विभिन्न आयोजन रद कर भीड़ जमा होने से रोकने की कोशिश की जा रही है। स्कूल-कॉलेज व अन्य संस्थान भी बंद करा दिए गए हैं। वहीं, बसों और विक्रमों में भीड़ यथावत है। इस बारे में न तो प्रशासन ने कोई आदेश दिया है और न बस-विक्रम महासंघ ने चालक-परिचालकों को मास्क व सैनिटाइजर ही उपलब्ध कराए हैं। वाहनों को सैनिटाइज भी नहीं किया जा रहा। दूसरा विकल्प न होने के कारण लोग न चाहते हुए भी हर दिन भीड़ के साथ इन वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं।

भीड़ वाली जगहों पर वायरस के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। निजी व सिटी बसें और विक्रम भी भीड़-भाड़ वाली जगहों में शामिल हैं। देश-दुनिया में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बावजूद इनमें ठूंस-ठूंसकर सवारियां भरी जा रही हैं। बता दें कि शहर के विभिन्न रूटों पर 794 विक्रम और 200 सिटी बसें चलती हैं। वहीं, विकासनगर रूट पर 250 निजी बसें चलती हैं। इन वाहनों में रोजाना दो लाख से ज्यादा लोग सफर करते हैं। 

यातायात नियमों की भी अनदेखी

सिटी और निजी बसों में मानक से कहीं ज्यादा सवारियां भरी जाती हैैं। विक्रम भी ओवरलोड होकर चलते हैं। पुलिस-प्रशासन को सब पता होने के बाद भी इसपर कार्रवाई नाममात्र की होती है। 

बसों में भी हो दवा का छिड़काव 

देहरादून महानगर सिटी बस सेवा महासंघ के अध्यक्ष विजय वर्धन डंडरियाल के अनुसार, स्वास्थ्य महानिदेशक को पत्र लिखकर मांग की गई है कि सिटी बसों में भी दवा का छिड़काव किया जाए। साथ ही सैनिटाइजर उपलब्ध कराए जाएं। हम मोटर मालिक सहयोग को तैयार हैं। 

मास्क मिलने के बाद भी नहीं लगाए 

परिवहन विभाग ने चालक-परिचालकों के साथ कर्मचारियों को भी सैनिटाइजर व मास्क उपलब्ध कराए हैं। आइएसबीटी पर अधिकांश चालक-परिचालकों ने मास्क नहीं पहने थे। कार्यालय में तैनात कर्मचारियों में भी कुछ ही मास्क पहने दिखे। वॉल्वो के देहरादून इंचार्ज कुलदीप शर्मा ने बताया कि अधिकारियों ने मास्क और सैनिटाइजर उपलब्ध कराए थे। यह भी कहा कि कुछ समय बाद नए खरीदकर वापस करना है।  

मास्क में दिखे अधिकांश यात्री

कोरोना वायरस से सुरक्षा को लेकर लोग गंभीर हो रहे हैं। आइएसबीटी परिसर हो या बसें, हर जगह अधिकांश यात्री मास्क पहने नजर आए। हालांकि, कई यात्रियों का यह भी कहना था कि आइएसबीटी परिसर पर मास्क की बिक्री होनी चाहिए। हरियाणा की रीता ने बताया कि जल्दबाजी में चलते वक्त मास्क साथ नहीं ला पाई। आइएसबीटी परिसर में भी मास्क की कोई दुकान नहीं मिली। फिलहाल मास्क की कोई दुकान तलाश रही हूं।

यात्री घटे, रोडवेज को हर रोज तीस लाख की चपत

कोरोना के खौफ से जहां पूरे देश में लोगों ने अपनी यात्राओं पर रोक लगा दी है, वहीं उत्तराखंड रोडवेज को भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। पिछले पांच दिनों में रोडवेज में यात्रियों की संख्या में करीब 30 फीसद गिरावट हुई है। जिसके चलते रोडवेज को रोजाना करीब तीस लाख रुपये की चपत लग रही। 

यात्रियों की संख्या घटने पर बसें खाली चल रहीं। खासकर, जो रूट सबसे अधिक मुफीद माना जाता था, वहीं बसों की संख्या में कटौती करनी पड़ रही। रोडवेज के लिए दिल्ली रूट सबसे ज्यादा मुनाफे वाला माना जाता है। करीब 1200 बसों के बस बेड़े में पूरे प्रदेश से रोजाना 650 बसें इसी रूट पर दौड़ती हैं। देहरादून मंडल से सर्वाधिक हर रोज 350 बसों का संचालन दिल्ली रूट पर होता है। 

रोडवेज प्रबंधन की मानें तो मार्च के सीजन में रोडवेज की औसत कमाई हर रोज एक करोड़ बीस लाख रुपये के समीप रहती है। पिछले पांच दिनों में कमाई घटकर अस्सी से नब्बे लाख रुपये के आसपास रह गई है। 

दिल्ली, फरीदाबाद, जयपुर, गुरुग्राम के साथ ही आगरा, अलवर, चंडीगढ़, हल्द्वानी जैसे लंबी दूरी के मार्गों पर यात्रियों में तीस फीसद गिरावट दर्ज की गई है। रोडवेज को अनुमान था कि मार्च में परीक्षाएं खत्म होने पर यात्रियों का ग्राफ बढ़ेगा, लेकिन कोरोना के मद्देनजर यह ग्राफ गिरता जा रहा। 

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यह भी माना जा रहा कि आने वाले दो सप्ताह में यह ग्राफ पचास फीसद तक गिर सकता है। पहले ही 200 करोड़ के सालाना घाटे में चल रहे रोडवेज को हर दिन तीस लाख की चपत बेहद भारी पड़ रही। वैसे ही घाटे के चलते रोडवेज में जनवरी से कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है, ऐसे में नए घाटे से रोडवेज की आर्थिक स्थिति और खराब हो सकती है। महाप्रबंधक संचालन दीपक जैन ने बताया कि यात्रियों की संख्या में गिरावट के चलते बसों के फेरे कम कर दिए गए हैं।

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