चुनौतियों का सामना कर मीना ने लेह लद्दाख तक बुलेट से तय किया सफर
दून की हेमकुंज कॉलोनी निवासी 43-वर्षीय मीना पंत बुलेट से लेह-लद्दाख तक का सफर तय कर चुकी हैं। उन्होंने दो साल पहले अपने 19-वर्षीय भान्जे सार्थक के साथ बाइक से यह अनोखी सैर की।
By BhanuEdited By: Updated: Thu, 11 Oct 2018 01:13 PM (IST)
देहरादून, [दीपिका नेगी]: उत्तराखंड की बेटियों आज हर मुकाम पर सफलता के झंडे गाड़ रही हैं। एक ओर ऋषिकेश की रहने वाली लेफ्टिनेंट वर्तिका जोशी ने तीन महासागरों को पार कर अपने बुलंद इरादों का परचम लहराया, वहीं दून की हेमकुंज कॉलोनी निवासी 43-वर्षीय मीना पंत बुलेट से लेह-लद्दाख तक का सफर तय कर चुकी हैं। उन्होंने दो साल पहले अपने 19-वर्षीय भान्जे सार्थक के साथ बाइक से यह अनोखी सैर की।
पेशे से वकील मीना की दो बेटियां हैं। इनमें 15-वर्षीय गार्गी दसवीं और दस वर्षीय मैत्री पांचवीं कक्षा में पढ़ रही है। मीना को जानने वाले उन्हें प्यार से 'बुलेट मैडम' कहकर भी पुकारते हैं।मीना की परवरिश बचपन से ही लड़कों की तरह हुई। वह खेल गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करती थीं। खासकर बुलेट चलाना और ताइक्वांडो उनका पसंदीदा खेल रहा। इसके अलावा उन्हें पहाड़ों की सैर करना बेहद पसंद रहा है।
बकौल मीना, 'एक दिन मेरे मन में बुलेट से लेह-लद्दाख का सफर करने का विचार आया। भान्जे सार्थक को इस बारे में जानकारी मिली तो उसने भी साथ चलते की इच्छा जताई। बस! फिर प्लान बना और दोनों छह जून 2016 को निकल पड़े सफर पर।'
मीना के मुताबिक दून से वह पांवटा साहिब, नाहन, सोलन, मंडी व कूल्लू होते हुए लगभग 468 किमी का सफर तय कर मनाली पहुंचे। अगले दिन बुलेट का पॉल्यूशन सार्टिफिकेट और लेह तक का पास बनवाया। आठ जून को वह रोहतांग ला, कोकसार, सिस्सु, टांडी, केलांग व जिस्पा होते हुए बिस्की नाला पहुंचे। ऊंची पहाडिय़ों और छोटे-बड़े नदी-नालों को पार करते हुए रात एक टेंट में गुजारी।
यहां उनकी मुलाकात अन्य बाइकर्स से भी हुई और सभी ने अपने-अपने अनुभव साझा किए। अगले दिन वह तेगलांगला से लेह पहुंचे। बताया कि रास्ते में घना कोहरा था, ठंड से हाथ-पैर भी सुन्न हो गए थे। इन्हीं परिस्थितियों में वह लगभग 18360 फीट की ऊंचाई पर स्थित खारदुंगला पहुंचे।
कहती हैं कि यहां हम थोड़ी देर थकान बिसराने की कोशिश कर रहे थे कि तभी बर्फबारी होने लगी। लिहाजा, यहां से नीचे उतरते हुए जगह-जगह लैंड स्लाइड होने के कारण खासी दिक्कतें पेश आईं। खैर! जैसे-तैसे निक्कू, खालसी होते हुए हम कारगिल पहुंच गए। कारगिल से जोजिला, खन्नाबल, रामबल व चंडीगढ़ होते हुए जब वह 14 जून को वापस दून पहुंचे तो परिजनों ने जोरदार स्वागत किया। बेहद मिलनसार हैं लेह-लद्दाख के लोग
मीना बताती हैं कि इस सफर में उन्हें रोमांच के साथ लेह-लद्दाख की संस्कृति, बोली-भाषा, परंपरा, खान-पान से रू-ब-रू होने का भी मौका मिला। वहां के लोग बहुत ही मिलनसार हैं। वह बाइकर्स का सम्मान कर उनकी हौसलाफजाई करते हैं। भारतीय सेना के जवानों से भी उन्हें भरपूर सहयोग किया। लेकिन, नेटवर्क न मिलने के कारण कई दिनों तक परिवार से संपर्क कटा रहा।परिजनों से मिलता है भरपूर सहयोग
मीना बताती हैं कि उनके पति आरए पंत, माता-पिता जमुना पंत और चिंतामणि पंत समेत सभी परिजन उसे हरसंभव सहयोग करते हैं। जल्द ही वह अपनी नई बुलेट यात्रा की तैयारी में है। हालांकि, अभी यह तय नहीं कि सफर कितना लंबा होगा।यह भी पढ़ें: पति की मौत के बाद संभाली बच्चों की जिम्मेदारी, कंडक्टर बन जीता सबका दिल
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