मियावाकी पद्धति से बदलेगी उत्तराखंड के जंगलों की तस्वीर, जानिए इस पद्धति के बारे में
उत्तराखंड में जंगलों में हर साल होने वाले पारंपरिक पौधारोपण के उत्साहजनक नतीजे सामने न आने से परेशान वन महकमा अब नई रणनीति पर काम कर रहा है।
By Edited By: Updated: Fri, 07 Aug 2020 09:23 PM (IST)
देहरादून, राज्य ब्यूरो। जंगलों में हर साल होने वाले पारंपरिक पौधारोपण के उत्साहजनक नतीजे सामने न आने से परेशान वन महकमा अब नई रणनीति पर काम कर रहा है। इसके लिए मियावाकी पद्धति और सहायतित प्राकृतिक पुनरुद्धार (एएनआर) के जरिये जंगलों की तस्वीर संवारी जाएगी। विभाग की अनुसंधान विंग द्वारा हल्द्वानी, रानीखेत और मंडल में इन पद्धतियों से किए गए प्रयोग पूरी सफल रहे हैं।
हल्द्वानी में पौधों के जीवित रहने की दर सौ फीसद और रानीखेत में 86 फीसद रही। अब इस मुहिम को राज्य के दूसरे क्षेत्रों में अमल में लाया जाएगा। 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड के जंगलों में प्रतिवर्ष डेढ़ से दो करोड़ पौधे लगाए जाते हैं। इस लिहाज से तो राज्य में वनावरण कहीं आगे बढ़ चुका होता, लेकिन पिछले 20 वर्षों से यह 46 फीसद के आसपास ही सिमटा है। इसकी मुख्य वजह है परंपरागत ढंग से हो रहे पौधारोपण का पूरी तरह सफल न होना। दरअसल, पौधे तो लगाए जा रहे हैं, मगर इनके जीवित रहने की दर 50 फीसद भी नहीं है। इस सबको देखते हुए पौधारोपण को लेकर नई रणनीति के साथ काम करने पर जोर दिया जा रहा है। इसी के दृष्टिगत जिम्मा सौंपा गया वन विभाग की अनुसंधान विंग को।
इसके लिए हल्द्वानी और रानीखेत में मियावाकी पद्धति से जंगल पनपाया गया, जबकि चमोली के मंडल में एएनआर के जरिये। मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान वृत्त) संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि तीनों ही जगह प्रयोग सफल रहा है। पौधों के जीवित रहने की दर बहुत बेहतर रही। साथ ही विभिन्न प्रजातियों के पौधे तीनों जगह बड़े पैमाने पर उगे हैं। उन्होंने बताया कि अब दूसरे क्षेत्रों में यह मुहिम आगे बढ़ाई जाएगी, ताकि जंगलों की तस्वीर बेहतर हो सके।
क्या है मियावाकी पद्धति अनुसंधान वृत्त में मियावाकी पद्धति पर कार्य कर रहे वन क्षेत्राधिकारी नितिन पंत के अनुसार जापान के वनस्पति शास्त्री अकीरा मियावाकी ने 1980 में जंगल पनपाने की यह पद्धति दी। इसके तहत प्रकृति में जैसे पौधे उगते हैं, उसी प्रकार की परिस्थितियों को बढ़ावा दिया जाता है। कम क्षेत्र में घास, वनस्पतियां, विभिन्न प्रजाति के पौधों का सघन रोपण किया जाता है। यही पद्धति हल्द्वानी और रानीखेत में अपनाई गई।
यह भी पढ़ें: कालाबांसा की फांस से मुक्त होंगे उत्तराखंड के जंगल, पढ़िए पूरी खबरहल्द्वानी में पौधों की 58 प्रजातियां उगीं, जबकि रानीखेत में 40। हल्द्वानी में सभी पौधे जीवित हैं, जबकि रानीखेत में यह दर 86 फीसद रही है। सहायतित प्राकृतिक पुनरुद्धार अनुसंधान विंग ने चमोली के मंडल में सहायतित प्राकृतिक पुनरुद्धार (एएनआर) का प्रयोग किया गया। इसमें पौधों को प्राकृतिक रूप से उगने और पनपने में सहायक गतिविधियों को बढ़ावा दिया गया। इसके लिए वहां 0.5 हेक्टेयर क्षेत्र में फेंसिंग कर दी गई। फिर पौधे खुद उगे और अच्छे से पनप रहे हैं।
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