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गरीबों की योजना तकनीक में बेहद अमीर, जीआइएस से प्लानिंग पर जोर

मनरेगा में नवीनतम तकनीकी जीआइएस से प्लानिंग पर जोर दिया गया है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) राज्यों को इस तकनीक से लैस करने की मुहिम में जुटा है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 09 Jan 2020 07:15 AM (IST)
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गरीबों की योजना तकनीक में बेहद अमीर, जीआइएस से प्लानिंग पर जोर
देहरादून, राज्य ब्यूरो। योजना जरूर गरीबों के लिए है, मगर क्रियान्वयन की दृष्टि से तकनीक के तौर पर बेहद अमीर। चौंकिये नहीं, बात हो रही है महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की, जिसमें नवीनतम तकनीकी जीआइएस (ज्योग्राफिक इन्फार्मेशन सिस्टम) से प्लानिंग पर जोर दिया गया है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) राज्यों को इस तकनीक से लैस करने की मुहिम में जुटा है। इसी कड़ी में उत्तराखंड समेत आठ राज्यों की दो-दिवसीय क्षेत्रीय कार्यशाला नौ जनवरी से देहरादून में आयोजित की गई है। इसमें विशेषज्ञ मनरेगा में ग्राम पंचायत की जीआइएस आधारित प्लानिंग के गुर सिखाएंगे।

मनरेगा ऐसी योजना है, जिसके  क्रियान्वयन का सशक्त ढांचा है। इसमें नवीनतम सूचना तकनीकी का बेहतर ढंग से उपयोग हो रहा है। अब केंद्र सरकार ने एक और कदम उठाया है। इसके तहत मनरेगा के तहत योजनाओं को जीआइएस आधारित बनाने की प्रक्रिया चल रही है।

उत्तराखंड में वर्तमान में 190 ग्राम पंचायतों में मनरेगा में जीआइएस आधारित प्लांनिंग का लक्ष्य है। यह प्रक्रिया चल रही है, मगर इसकी गति धीमी है। इस सबको देखते हुए एमओआरडी ने जीआइएस आधारित तकनीक से संबंधित दिक्कतों को दूर कर इसके प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर दिया है। इसके तहत राज्यों की क्षेत्रीय कार्यशालाएं हो रही हैं।

उत्तराखंड में मनरेगा के समन्वयक मोहम्मद असलम बताते हैं कि उत्तराखंड समेत उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख व अंडमान-निकोबार की क्षेत्रीय कार्यशाला नौ व 10 जनवरी को देहरादून में होगी। इसमें जीआइएस तकनीक के फायदे और इसके क्रियान्वयन के बारे में मनरेगा व ग्राम्य विकास से जुड़े कार्मिकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। अगले वित्तीय वर्ष से मनरेगा में प्लानिंग जीआइएस आधारित ही होगी।

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क्या है जीआइएस

जीआइएस एक ऐसा सॉफ्टवेयर है, जिसकी मदद से किसी भी क्षेत्र के टारगेट एरिया की मैपिंग होती है। इसके जरिये किसी भी क्षेत्र की स्थिति को अद्यतन देखा जा सकता है। मसलन, यदि कहीं मनरेगा के तहत वनीकरण हुआ है तो वनीकरण से पहले और इसके तीन साल बाद की स्थिति जांची जा सकती है। इससे योजनाओं में फर्जीवाड़े की शिकायत भी दूर होगी।

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