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गंगा में खनन पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का पेच, पढ़िए पूरी खबर

उत्तराखंड के हरिद्वार क्षेत्र में गंगा और उसकी सहायक नदियों में रेत-बजरी व बोल्डर के खनन और चुगान को लेकर मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 21 Apr 2019 08:27 PM (IST)
गंगा में खनन पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का पेच, पढ़िए पूरी खबर
देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड के हरिद्वार क्षेत्र में गंगा और उसकी सहायक नदियों में रेत-बजरी व बोल्डर (रिवर बेड मटीरियल) के खनन (रेत-बजरी) और चुगान (पत्थर निकालना) को लेकर मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में चल रहे मामले का निस्तारण होने के बाद अब पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ) ने उपखनिज चुगान के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति (ईसी) जारी करने को नई शर्त जोड़ दी है। एमओईएफ ने गंगा व उसकी सहायक नदियों में उपखनिज की उपलब्धता को लेकर उत्तराखंड वन विकास निगम द्वारा लगाई गई वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) की अध्ययन रिपोर्ट में यह बताने को भी कहा है कि वहां से कितना उपखनिज निकाला जा सकता है। एफआरआइ ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला करार दिया है। इससे वन विकास निगम पसोपेश में है।

उत्तराखंड वन विकास निगम को हरिद्वार में गंगा नदी में भोगपुर, बिशनपुर, श्यामपुर व चिडिय़ापुर और गंगा की सहायक नदी रवासन में प्रथम व द्वितीय के साथ ही कोटावली नदी में उपखनिज चुगान के लिए सात लॉट की लीज स्वीकृति मिली हुई है। 2017 में वहां से करीब 3.34 लाख घन मीटर रेत-बजरी व बोल्डर का चुगान किया गया था। बाद में इसे लेकर विरोध हुआ और मसला एनजीटी पहुंचा। पिछले वर्ष फरवरी में एनजीटी के आदेश पर उपखनिज चुगान का कार्य रोक दिया गया था।

गत वर्ष 21 दिसंबर को एनजीटी ने गंगा में खनन से संबंधित मामला निस्तारित कर दिया, जिससे निगम को उम्मीद बंधी कि जल्द ही चुगान के लिए ईसी जारी हो जाएगी। निगम ने एनजीटी के निर्देशानुसार वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) के गंगा व उसकी सहायक नदियों में रिवर बेड मटीरियल को लेकर कराए गए अध्ययन की रिपोर्ट के आधार पर ईसी के लिए एमओईएफ से आवेदन किया।

सूत्रों के मुताबिक मामले में नया मोड़ तब आया, जब हाल में एमओईएफ ने ईसी जारी करने के मद्देनजर निगम को अध्ययन रिपोर्ट में यह भी बताने को कहा कि गंगा व उसकी सहायक नदियों से कुल कितना उपखनिज निकाला जा सकता है। रिपोर्ट में इन नदियों में करीब 60 लाख घन मीटर उपखनिज की उपलब्धता का उल्लेख है। सूत्रों की मानें तो निगम को इससे भी बड़ा झटका तब लगा, जब एफआरआइ ने साफ किया कि इन नदियों से कितना उपखनिज निकाला जा सकता है, यह बताना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

इससे निगम की पेशानी पर बल पड़े हैं। साथ ही गंगा व उसकी सहायक नदियों में जल्द उपखनिज चुगान शुरू होने की उम्मीदों पर तुषारापात हुआ है। गौरतलब है कि पूर्व निगम को इन नदियों की सात लाट में 18 लाख घन मीटर उपखनिज चुगान की अनुमति थी, मगर बाद में केंद्रीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान की अध्ययन रिपोर्ट पर इसे 10.26 लाख घनमीटर कर दिया गया। फिर एमओईएफ ने इसमें भी कटौती कर दी थी।

हालांकि, इस मामले में निगम ने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है। निगम के प्रबंध निदेशक मोनीष मल्लिक के अनुसार एमओईएफ की नई शर्त के मद्देनजर एफआरआइ से आग्रह किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जल्द ही वह इस बारे में एफआरआइ के निदेशक से भी मुलाकात करेंगे।

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