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सत्ता के गलियारे से : विधानसभा सत्र में भी कोरोना की कदमताल

उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र 23 सितंबर को हो रहा है। पहले कार्यक्रम तीन दिन का था मगर कोरोना जो न कराए कम है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 21 Sep 2020 09:40 AM (IST)
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सत्ता के गलियारे से : विधानसभा सत्र में भी कोरोना की कदमताल
देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र 23 सितंबर को हो रहा है। पहले कार्यक्रम तीन दिन का था, मगर कोरोना जो न कराए, कम है। सत्र अब एक ही दिन में समेट दिया गया है। सत्तापक्ष के दर्जनभर विधायक तो संक्रमण की जद में आ ही चुके हैं, अब खुद स्पीकर भी संक्रमित पाए गए हैं। विपक्ष कांग्रेस भी पॉजिटिव दिख रही है। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश और विधायक हरीश धामी कोरोना संक्रमित हो गए हैं। पीपीसी चीफ और विधायक प्रीतम सिंह भी एकांतवास में चले गए हैं। महज 11 के आंकड़े वाली कांग्रेस की कमान सदन में उपनेता करण माहरा संभालेंगे। छह महीने के भीतर सत्र की बाध्यता है, लिहाजा आयोजन जरूरी है। सत्र की अवधि को लेकर विपक्ष कांग्रेस ने सरकार पर कितने भी आरोप मढ़े, मगर फिर उसे परिस्थितियों को समझना ही पड़ा। कोरोनाकाल में सत्र का आयोजन, विधानसभा सचिवालय के लिए यह भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं।

कभी भारी जमावड़ा, अब पास पर प्रवेश

कुंभ जैसा बड़ा आयोजन, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु पुण्य कमाने पहुंचते हैं, वह भी कोरोना संकट की छाया से अछूता नहीं रहा। कुंभ में प्रवेश के लिए सरकार को पास की व्यवस्था का निर्णय करना पड़ा। हालांकि, संत-महात्माओं से बातचीत के बाद सरकार ने साफ किया है कि कुंभ परंपरानुसार शुभ लग्न में होगा, लेकिन भीड़ के लिहाज से यह जरूर नियंत्रित होगा। वैसे भी सूबे में कोरोना के बढ़ते मामलों ने पेशानी पर बल डाले हुए हैं। फिर कोरोना के जल्दी से थमने की उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है। ऐसे में कुंभ में भारी भीड़ का उमडऩा कोरोना संक्रमण के लिहाज से जोखिमभरा हो सकता है। लिहाजा, सरकार ने तय किया कि कुंभ में पास के जरिये ही श्रद्धालुओं को प्रवेश मिलेगा। यह व्यवस्था कैसे अमल में लाई जाएगी, संत-महात्माओंसे विमर्श के बाद तय होगा। अब सबकी नजरें इस पर टिकी हैं कि व्यवस्था का क्रियान्वयन कैसे होगा।

हरदा के नहले पर त्रिवेंद्र का दहला

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के संबंध ऐसे हैं, कि लोग जानना चाहते हैं, ये रिश्ता क्या कहलाता है। सूबे में दोनों धुर विरोधी पाॢटयों के शीर्ष नेता, लेकिन इनके एक-दूसरे पर तंज कसने का अंदाज खट्ठा-मीठा सा होता है। हरदा पिछले साढ़े तीन साल में कई दफा त्रिवेंद्र की तारीफ कर चुके हैं। इस बार इसके बिल्कुल उलट कुछ हुआ। सियासी कद में इजाफे से प्रफुल्लित हरदा ने निशाना साधा। बोले, 'अगले चुनाव में श्मशान या कब्रिस्तान नहीं, वोट पड़ेंगे बेरोजगारी पर।' समझ गए न, सियासी ध्रुवीकरण की ओर इशारा। अब त्रिवेंद्र कैसे चुप्पी साध जाते, तड़ से जवाब उछाल दिया, 'हरीश रावत की याददाश्त कमजोर हो चली, उम्र का असर है। वोट तो हमें ही मिलेंगे, लेकिन यह तय है कि शुक्रवार को छुटटी नहीं करने जा रहे हैं।' दरअसल, पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान जुमे की नमाज के लिए कुछ खास इंतजाम किए गए थे।

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हाथी नहीं चढ़ा पहाड़, महावत पर गाज

शतरंज में हाथी अपनी सीधी चाल के कारण बड़ी अहमियत रखता है, लेकिन उत्तराखंड की सियासी बिसात पर बसपा का हाथी काबू में नहीं आ रहा है। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद, पहले तीन विधानसभा चुनाव में हाथी, कमल और हाथ से दो-दो हाथ करता दिखा। दो मैदानी जिलों में इतनी सीटें जीत लीं, कि उसकी भूमिका किंग मेकर की बन गई। चौथी विधानसभा के चुनाव क्या हुए, हाथी नदारद। वोटर का मोहभंग क्यों हुआ, यह तो बहनजी जानें, लेकिन जिम्मेदार इसके लिए महावत को ही ठहराया गया। आपको यकीं नहीं, ठहरिए बताते हैं। राज्य बने 20 साल हो रहे हैं, बहनजी ने पिछले ही महीने 17 वीं दफा सूबाई संगठन के मुखिया को बदला। बात यहीं नहीं थमी, अब प्रदेश प्रभारी भी बदल दिए गए। प्रभारी 20 साल के दौरान 13 बार फेंटे जा चुके हैं। शायद इसलिए, क्योंकि हाथी अब तक पहाड़ नहीं चढ़ पाया है।

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