सीएम डैशबोर्ड में मासिक परीक्षा के आंकड़ों पर सवाल, पढ़िए पूरी खबर
प्राथमिक से लेकर माध्यमिक के सभी विद्यालयों के पास मासिक पाठ्यक्रम विभाजन की जानकारी नहीं है। यानी उन्हें यही नहीं पता कि किस महीने तक उन्हें कितना पढ़ाना है।
By Edited By: Updated: Thu, 08 Aug 2019 02:25 PM (IST)
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। मासिक परीक्षा के बूते वाहवाही लूटने को तैयार सरकारी शिक्षा के आंकड़े सच से मुंह चुरा रहे हैं। सीएम डैशबोर्ड में दर्ज हो रहे इन आंकड़ों की वैधता जांचने को विद्यालयों के पास अभिलेख या रिकार्ड नहीं हैं। हकीकत यह है कि मासिक परीक्षा के संचालन और प्रश्नपत्र निर्माण की पूरी प्रक्रिया में ही खामियां हैं। प्राथमिक से लेकर माध्यमिक के सभी विद्यालयों के पास मासिक पाठ्यक्रम विभाजन की जानकारी नहीं है। यानी उन्हें यही नहीं पता कि किस महीने तक उन्हें कितना पढ़ाना है। प्रश्नपत्र की हालत ये है कि हर महीने एससीईआरटी से तैयार होने वाले प्रश्नपत्र सैकड़ों किमी दूर पर्वतीय क्षेत्रों के इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या से जूझने वाले विद्यालयों के पास व्हाट्सएप और ई-मेल के जरिए पहुंच रहे हैं। छात्रसंख्या की उपस्थिति को तरसने वाले विद्यालयों में हर महीने होने वाली परीक्षा में शत-प्रतिशत या 98 फीसद तक परीक्षार्थी शामिल हो रहे हैं। आश्चर्यजनक ये है कि सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के आंकड़े भले ही कुछ भी हों, लेकिन हर महीने मासिक परीक्षाफल उपलब्धि के मामले में ऊपर की ओर ही दौड़ रहा है। इससे इस परीक्षा के साथ ही सीएम डैशबोर्ड को उपलब्ध कराए जा रहे आंकड़ों की सत्यता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
मासिक परीक्षा के लिए अपनाया जा रहा शॉर्टकट और कामचलाऊ रवैया जारी रहा तो हर तीसरे वर्ष प्रदेश में प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों के राष्ट्रीय स्तर के शैक्षिक मूल्यांकन और मासिक परीक्षा के आधार पर मूल्यांकन के आंकड़ों में गहरी खाई सामने आ सकती है। बीते वर्ष 2018 से सरकारी विद्यालयों में कक्षा तीन से लेकर 12वीं तक मासिक परीक्षा अनिवार्य की गई है। यह प्रयोग भले ही शिक्षा की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर किया गया, लेकिन परीक्षा को लेकर शिक्षा विभाग की तैयारी खुद परीक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है। मासिक परीक्षा के पैटर्न में छात्रों की उपस्थिति से लेकर विद्यालयों में प्रश्नपत्रों के पहुंचने और उसके परिणाम में खामियों से शिक्षक परेशान हैं। सीएम डैशबोर्ड को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2018-19 में मासिक परीक्षा का महीनेवार परीक्षाफल हर महीने लगातार बेहतर होता गया है। अप्रैल माह में कक्षा तीन, चार और पांचवीं में यह क्रमश: 52.77 फीसद, 52.85 फीसद और 54.55 फीसद रहा, जबकि जनवरी तक यह बढ़कर क्रमश: 64.52 फीसद, 66.08 फीसद और 66.51 फीसद हो गया। अप्रैल से लेकर जनवरी तक करीब दस महीने के दौरान हर महीने परीक्षाफल में वृद्धि दर्ज हुई है। हालांकि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्तर से कराए जाने वाले राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण और असर संस्था के कक्षा तीन, पांचवीं और आठवीं के आंकड़ों से मेल नहीं खा रहे हैं।
ये हैं खामियां
- परीक्षा नकल या नकल विहीन हो रही है, इसकी विश्वसनीय जानकारी का अभाव
- मूल्यांकन के लिए उत्तरपुस्तिकाएं नजदीकी विद्यालयों में भेजी गईं, विद्यालयवार इसका सही डेटा विभाग के पास नहीं
- विकासखंडवार खंड शिक्षा अधिकारी परीक्षा के आंकड़ों का संकलन कर रहे हैं, लेकिन आंकड़ों की सत्यता जांचने का ठोस पैमाना नहीं
- सभी विकासखंडों ने मासिक परीक्षा में शिरकत की, यह पुख्ता जानकारी नहीं
- विद्यालयों में मासिक परीक्षा के अभिलेखों का रखरखाव नहीं
- शिक्षकों को ये पता नहीं कि मासिक परीक्षा में बच्चों को कोड दिए जाने हैं या अंक, जबकि कोड देने का है प्रावधान।
अरविंद पांडे (शिक्षा मंत्री उत्तराखंड) का कहना है कि मासिक परीक्षा की व्यवस्था अच्छी है, लेकिन इसमें किन स्तरों पर खामियां हैं, इसकी जांच कराई जाएगी, एससीईआरटी के अधिकारियों को इस बारे में पिछली बैठक में निर्देश भी दिए गए थे।
दिग्विजय सिंह (अध्यक्ष उत्तराखंड प्राथमिक शिक्षक संघ) का कहना है कि मासिक पाठ्यक्रम विभाजन की बड़ी संख्या में विद्यालयों और शिक्षकों को जानकारी नहीं है, एससीईआरटी के प्रश्नपत्र निर्माण में कई कमियों से शिक्षक परेशान हैं। जिलों में मुख्य शिक्षा अधिकारियों को व्हाट्सएप और ई-मेल से प्रश्नपत्र मुहैया कराए जा रहे हैं, इसके बाद विद्यालयों को भी ऐसे ही उपलब्ध कराए जा रहे हैं, प्रश्नपत्र पहुंच रहे हैं या नहीं, धरातल पर इसकी जानकारी विभागीय अधिकारी नहीं लेते। मासिक परीक्षा के नाम पर खानापूरी बंद होनी चाहिए।
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