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Nagar Nikay Chunav : उत्तराखंड में टल सकते हैं नगर निकायों के चुनाव; सामने आई यह बड़ी वजह

प्रदेश में नगर निकायों (नगर निगम नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत) की संख्या 110 है। इनमें से तीन में चुनाव नहीं होते जबकि दो का कार्यकाल अगले वर्ष पूर्ण होना है। शेष निकायों का कार्यकाल नवंबर में खत्म होने जा रहा है। इनमें चुनाव होने हैं। निकाय अधिनियम में निकायों का कार्यकाल खत्म होने से 15 दिन पहले अथवा बाद में चुनाव कराने का प्रविधान है।

By kedar duttEdited By: Mohammed AmmarUpdated: Sat, 23 Sep 2023 08:53 PM (IST)
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Nagar Nikay Chunav : उत्तराखंड में टल सकते हैं नगर निकायों के चुनाव; सामने आई यह बड़ी वजह

राज्य ब्यूरो, देहरादून: उत्तराखंड में नगर निकायों के चुनाव फिलहाल टल सकते हैं। शासन ने चुनाव के दृष्टिगत भले ही 75 दिन की समय सारिणी प्रस्तावित की हो, लेकिन जैसी परिस्थितियां हैं, उसमें इसे अमल में लाना संभव नजर नहीं आ रहा है। कारण ये कि अभी तक नगर निकायों की मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण नहीं हो पाया है और इस कार्य में कम से कम से तीन माह का समय लगता है।

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इसके अलावा निकायों में ओबीसी आरक्षण के दृष्टिगत एकल समर्पित आयोग से रिपोर्ट भी शासन को उपलब्ध नहीं हुई है। ऐसे में माना जा रहा है कि निकाय चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद ही कराए जा सकते हैं।

नवंबर में खत्म होने जा रहा है कार्यकाल

प्रदेश में नगर निकायों (नगर निगम, नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत) की संख्या 110 है। इनमें से तीन में चुनाव नहीं होते, जबकि दो का कार्यकाल अगले वर्ष पूर्ण होना है। शेष निकायों का कार्यकाल नवंबर में खत्म होने जा रहा है। इनमें चुनाव होने हैं। निकाय अधिनियम में निकायों का कार्यकाल खत्म होने से 15 दिन पहले अथवा बाद में चुनाव कराने का प्रविधान है। चुनाव न होने की स्थिति में उनमें छह माह के लिए प्रशासक बैठाए जा सकते हैं।

यद्यपि, निकाय चुनाव के लिए कसरत चल रही है और इस क्रम में 75 दिन की समय सारिणी भी प्रस्तावित की गई है, लेकिन तमाम महत्वपूर्ण कार्य अभी पूर्ण नहीं हो पाए हैं। इनमें सबसे अहम है मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण, जिसमें सबसे अधिक समय लगता है और अभी तक इसके लिए पहल शुरू नहीं हो पाई है।

मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण के लिए घर-घर सर्वेक्षण के बाद अनंतिम मतदाता सूची तैयार की जाती है। इसके पश्चात छूटे व्यक्तियों के नाम शामिल करने के साथ ही नामों आदि में सुधार को आपत्तियां व दावे प्रस्तुत करने को समय दिया जाता है। इनके निस्तारण के बाद ही अंतिम मतदाता सूची तैयार होती है।

यही नहीं, निकायों में ओबीसी आरक्षण का निर्धारण भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। कारण ये कि सभी निकायों में ओबीसी की वास्तविक स्थिति के दृष्टिगत गठित एकल सदस्यीय वर्मा आयोग अपने कार्य में जुटा है। कुछ समय पहले ही सरकार ने आयोग का कार्यकाल बढ़ाया था।

आयोग की रिपोर्ट के आधार पर निकायों में ओबीसी आरक्षण तय होना है। इसके साथ ही अन्य आरक्षण भी निर्धारित किए जाने हैं। आरक्षण और परिसीमन तय होने की रिपोर्ट मिलने पर राज्य निर्वाचन आयोग मतदाता सूची के पुनरीक्षण की दिशा में कदम बढ़ाएगा।

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